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पथ-विचलन …



    भारतीय राजनीति के पुरोधा, पक्ष और विपक्ष में समान रूप से सम्माननीय युग-पुरुष, कवि-ह्रदय वयोवृद्ध अटल बिहारी बाजपेयी आज शरीर के साथ ही राजनैतिक रूप से भी शक्तिविहीन हो गये हैं और यह बात वह बीजेपी अच्छी तरह से जान रही है जिसके प्राण कभी बाजपेयी जी की सांसों में ही बसते थे। यही तो कारण है  कि अब केवल अडवाणी और खंडूरी जी ही उनकी सुध लेने के लिए जाते हैं, जबकि बाजपेयी जी की कदमबोसी कर अपना भविष्य सँवारने वाले नेता अब अपना भविष्य कहीं और तलाश रहे हैं। परिवर्तन तो समय के साथ युगों-युगों से होता आया है पर बाजपेयी जैसे व्यक्तित्व को हाशिये पर डाल कर विस्मृत कर दिया जाना अनैतिकता ही नहीं, अमानवीयता की श्रेणी में भी आता है। डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी और बाजपेयी के आदर्शों को भूली, पथ्य-अपथ्य के विवेक को खो चुके रोगी वाली मानसिक स्थिति पा चुकी, बीजेपी के इस प्रकार के नवीनीकरण की कल्पना तो किसी ने भी नहीं की होगी…… 

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