ऐसी गलती प्रशिक्षु IPS अधिकारी से नहीं होती, यदि सही ट्रेनिंग इन्हें मिली होती। दोषपूर्ण प्रशिक्षण ही इस प्रकार के आचरण का जिम्मेदार है कि इस अधिकारी ने रुतबे वाले बड़े आदमियों पर हाथ डालने की जुर्रत कर दी थी। क्यों नहीं पदस्थापन के पहले इनको बताया गया कि समय देखकर ज़माने के हिसाब से अपने विवेक का प्रयोग कर काम करना होगा! क्यों नहीं इन्हें समझाया गया कि ड्यूटी के दौरान अतिउत्साह दिखाना इनको भारी पड़ सकता है! इसी तरह की अपनी दोषपूर्ण कार्यप्रणाली के लिए पूर्व में प्रताड़ित किये गये, दण्डित किये गये अन्य अधिकारियों के दृष्टान्त वाले पाठ इनके पाठ्यक्रम में रखे गये होते तो शायद इन्हें सही ढंग से काम करना आ जाता। व्यावहारिक ज्ञान की कमी के कारण ही इन्हें एपीओ होने का दंड मिला है। इनको कहाँ मालूम था कि सरकारी काम करने के दौरान कई बार अपनी आँखें बंद कर लेनी पड़ती हैं!
इन्हें एपीओ करने का आदेश देने वाले अधिकारी, संयुक्त शासन सचिव, जो आज बड़े अधिकारी हैं, ने भी अपनी सरकारी नौकरी के कार्यकाल में न जाने कितनी बार ऐसी स्थितियों को भोगा होगा और अब वह घुट-घुट कर महादेव बने हैं। एपीओ करने के आदेश पर हस्ताक्षर करना इनकी भी तो विवशता है क्योंकि यह भी इसी सिस्टम का हिस्सा हैं।
अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है, कुछ समय एपीओ रहने के बाद जब इस IPS अधिकारी को पुनः काम पर लगाया जाय तो वह अपने मातहतों तक को निर्देशित कर दे कि किसी बिना हेलमेट पहने शख्स को भी पकड़ने से पहले उसके सामाजिक/राजनैतिक रुतबे की जांच अवश्य करलें। ..... क़ानूनन यही जायज है शायद!
(मैं, इन उपरोक्त पंक्तियों का लेखक, नहीं बता सकता कि संलग्न समाचार को पढ़ते समय किस आक्रोश से जूझा हूँ मैं!)
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