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तीन दृश्य : एक निष्कर्ष ! (तीन लघुकथाएँ)

 


 1)  एक जाने-माने वक़ील ने अपने मुवक्किल (जिसने क़त्ल किया था) को कोर्ट से बाइज्ज़त बरी करवा लिया और विपक्षी निर्दोष व्यक्ति के विरुद्ध सज़ा-ए=मौत का फैसला करवा दिया। कुछ लोगों ने इस पर वाह-वाही की तो कुछ लोगों ने थू-थू कर धिक्कारा। उस मुकद्दमे के दर्शक रहे एक संवेदनशील परिचित ने अगले दिन वक़ील को फोन कर पूछा- 'वक़ील सा., रात को नींद तो ठीक से आई न ?'
वक़ील ने कहा- 'अरे नहीं भाई, नींद कहाँ से आती। रात भर सोचता ही रहा।'
परिचित कुछ आश्वस्त हो बोला- 'शुक्र है, क्या ख़याल आते रहे ?'
 वक़ील- 'यही जनाब कि मेरे एक दूसरे मुवक्किल को बचाने के लिए मुझे क्या-क्या करना है जिसने बलात्कार के बाद एक नाबालिग की हत्या कर दी थी। कल उसके लिए जवाबदावा पेश करना है।'
                         
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  2)  एक महिला के सामने उसके पति की किसी ने हत्या कर दी। पुलिस अधिकारी ने महिला के बयान लिये और कुछ तफ्तीश के बाद हत्यारा पकड़ा गया। मुकद्दमा चला, इसी दौरान अपराधी के पक्ष के कुछ लोगों ने उस महिला को एक अच्छी सी पेशकश कर रकम सौंप दी। सुनवाई के दिन महिला ने बयान बदल दिये और हत्यारे को संदेह का लाभ देकर मुक्त कर दिया गया।

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  3)  एक सिपाही अपनी ड्यूटी के समय से कुछ पहले घर पहुंचा। उसने कमरे से आती खुसफुसाहट की आवाज़ सुनी और दरवाज़ा खटखटाया। दरवाज़ा खोल कर उसकी पत्नी ने उसे देखा तो सहम कर बोल पड़ी- 'आप ? अभी ?'
कमरे से बाहर आते हुए उसके वरिष्ठ अधिकारी ने उसके हाथ में पांच-पांच सौ के चार नोट थमाते हुए कहा- 'तुम आजकल अच्छा काम कर रहे हो। कल सुबह दफ़्तर में मुझे याद दिलाना तुम्हारे प्रमोशन की फाइल आगे चलाता हूँ।'
सिपाही ने मुस्करा कर सैल्यूट मारते हुए 'थैंक यू सर' कहा और अदब के साथ साहब को दरवाजे तक छोड़ कर आया।  

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      जगन्नियता भगवान अपने ही बनाये इंसान को पशु नहीं बना सकता, लेकिन पैसा ऐसा कर सकता है। 

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