अन्ना जी की यह कैसी सोच ?
समाचार पत्र 'राजस्थान पत्रिका', दि. 9-2-14 में प्रकाशित अन्ना जी से सम्बन्धित समाचार में उनके विचार जानकर निराशा हुई। आश्चर्य हुआ कि कैसे इतना अनुभवी और निष्कपट व्यक्ति राजनैतिक पूर्वाग्रहों से ग्रस्त अन्य लोगों के समान सोच रख सकता है ? कहीं यह इस कुंठा का परिणाम तो नहीं कि अरविन्द केजरीवाल ने उनके मार्ग से पृथक मार्ग का चयन किया ? केजरीवाल स्पष्ट रूप से कह चुके हैं कि जिस प्रकार बिना कीचड़ में पांव रखे कीचड़ की सफाई नहीं की जा सकती, उसी प्रकार राजनीति में प्रवेश किये बिना राजनीति में आई गन्दगी भी साफ नहीं की जा सकती है। सत्याग्रह की भाषा आज की निरंकुश राजनीति नहीं समझती। यह सब-कुछ समझ कर ही अन्ना जी को कोई वक्तव्य जारी करना चाहिए। वह केजरीवाल से अपनी सारी उम्मीदें मात्र डेढ़-दो माह में पूरी कर देने की अपेक्षा क्यों रखते हैं- ऐसे कार्य जो पूर्व सरकारें पांच-पांच वर्षों में भी पूरा नहीं कर सकी हैं। नहीं भूलना चाहिए कि केजरीवाल के पास जादू की छड़ी नहीं है, उनकी अपनी सीमायें हैं, केन्द्र-सरकार का असहयोगपूर्ण रवैया और सीमित शक्तियां उनके मार्ग की सबसे बड़ी बाधाएं हैं।
अन्ना जी का यह कहना भी सही नहीं माना जा सकता कि भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए ज्यादा से ज्यादा लोग बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ें। निर्दलीय ईमानदार होंगे, इसकी क्या गारंटी है ? अब तक के अनुभव के अनुसार इससे तो भ्रष्टाचार और बढ़ेगा ही।
अन्ना जी के अनुसार भाजपा और कॉन्ग्रेस दोनों ही पार्टियाँ अक्षम हैं और केजरीवाल के प्रति समय-समय पर अपना असंतोष वह प्रकट कर ही चुके हैं तो क्या सपा, बसपा या कम्यूनिस्टों के हाथों में देश की बागडोर सौंप दी जाय ?
अन्ना जी की विचारधारा में जो असंतुलन इन दिनों दिखाई दे रहा है उसे देखकर विश्वास नहीं होता कि यह वही अन्ना हैं जिनके लिए 'आज के गांधी' का सम्बोधन दिया जा रहा था।
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