यदि कोई महिला किसी पुरुष पर अपहरण और दुष्कर्म का झूठा आरोप लगाकर उस पर मुकद्दमा कर दे और बाद में तफ़तीश में यह प्रमाणित हो जाय कि आरोप झूठा था तो क्या उस महिला को मात्र दिन भर कोर्ट में खड़े रहने तथा रु100/- जुर्माने की सज़ा दी जाना पर्याप्त है ? राजस्थान पत्रिका, दि. 12-2-14 में प्रकाशित एक समाचार के अनुसार जोधपुर में महानगर मजिस्ट्रेट ने उक्त महिला को ऐसी ही सज़ा दी। यह कार्यवाही भी सम्भवतः पहली बार हुई। महिला ने मामला झूठा दर्ज करवाना स्वीकार भी किया। क्या महिला होने मात्र से वह मात्र इतनी ही सज़ा की हक़दार थी ?
यहाँ प्रश्न यह उठता है कि पुरुष खुदा-न-खास्ता यदि स्वयम् को बेक़सूर साबित नहीं कर पाता तो क्या होता ? क्या उसे अपनी ज़िन्दगी का कुछ बेहतरीन समय जेल की कोठरी में बर्बाद नहीं करना पड़ता और उससे भी बढ़कर क्या उसकी इज्ज़त मटियामेट न हो गई होती ? कैसे वह और उसके परिवार के अन्य सदस्य समाज को अपना मुंह दिखाते ?
कानूनविदों को इस पर गहन चिंतन करना होगा कि क्या दुष्कर्म का झूठा आरोप लगाना दुष्कर्म के समान ही गम्भीर अपराध नहीं है ?
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