राजस्थान के जनजाति विकास मंत्री नन्दलाल मीणा के द्वारा ब्राम्हण-बनियों के विरुद्ध की गई अनर्गल टिपण्णी से दोनों वर्गों में जबर्दस्त आक्रोश है। स्वयं की नहीं तो कम से कम अपने संवैधानिक पद की गरिमा का तो ध्यान उन्हें रखना ही चाहिए था। जाट व क्षत्रिय समाज का साथ इस मुद्दे पर ब्राम्हण-बनिया वर्ग को नहीं मिल रहा है, आश्चर्य है। क्षत्रिय समाज को सिद्धांत और नैतिकता के इस गम्भीर विषय पर चिन्तन करना चाहिए और समझना चाहिए कि क्यों नन्दलाल मीणा ने अपने विष-वमन में क्षत्रियों का नाम नहीं उछाला। शायद मीणा जी ने जाटों व क्षत्रियों को इसलिए नहीं लपेटा क्योंकि इसमें मुख्यमंत्री राजे जी का लिहाज आड़े आ गया होगा।
इस विषय में प्रबुद्ध मीणा बंधुओं से भी मेरी अपेक्षा है कि हिन्दू-समाज को तोड़ने वाली नंदलाल मीणा के द्व्रारा की गई टिप्पणी के विरुद्ध आवाज़ उठाकर राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ बनाने में भागीदार बनें।
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