गुजरने के लिए जन-आंदोलन में कूद पड़ने वाला, अन्ना जी जैसे
भ्रमित व्यक्ति ( ममता बेनर्जी के साथ भी जिस शख्स ने विश्वासघात
किया) का साथ छोड़कर प्रगति की राह पर चल पड़ने वाला, अपने
आदर्शों के लिए मुख्यमंत्री जैसे पद (जिस पद के लिए सपने में भी कई
नेताओं की लार टपकती है) को ठोकर मार देने वाले व्यक्ति को कुछ तत्व
भगोड़ा कहते हैं। आश्चर्य है, उनकी जिव्हा लड़खड़ाती नहीं, लेखनी कांपती नहीं। कैसे अपनी आत्मा को मारकर कोई ऐसा सोच सकता है, कह सकता है ?
अरविन्द केजरीवाल को कुछ लोग पाकिस्तानी एजेंट कह रहे हैं।
कैसा पाकिस्तानी एजेंट है यह जो देश में महंगाई कम करने, गैस के दाम
कम करने और भ्रष्टाचार रोकने के लिए लड़ रहा है, जो हिंसा का जवाब अहिंसा से देता है।
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अगर अरविन्द केजरीवाल यह सब करने के बाद भी पाकिस्तानी एजेंट है तो मेरे इस भारत देश में देशभक्त कौन है ? देशहित के लिए जीने वाला यह हिंदुस्तानी क्या सत्तालोलुप तथाकथित राष्ट्रवादियों से कई गुना अधिक राष्ट्रवादी नहीं है ?
मन से अज्ञान की पट्टी हटाकर, दिमाग से 'असहिष्णुता' की ज़िद्दी सनक हटाकर अपनी आत्मा की गहराइयों से जरा कुछ सुनने की कोशिश करें तो मेरे नादान मित्रों की आँखों से भ्रम की पट्टी उतर जायेगी और वह
सुपरिणाम जल्द ही मिल जायेगा जिसको वह अंधेरों में तलाश रहे हैं।
झुठला दीजिये इस कहावत को कि 'रहिमन कारी कामरी चढ़े
न दूजो रंग'।
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