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भारत- 'विश्व का सरताज़'



    सही मायने में देखा जाये तो भारत में इस बार किसी पार्टी के सांसदों ने प्रधानमंत्री को नहीं चुना, सीधे ही जनता ने चुना है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी की आवाज़ में एक ताक़त है, उनके इरादों में मज़बूती है और कुछ कर गुज़रने का ज़ुनून भी दिखाई दे रहा है। अमेरिका में आज के उनके भाषण से तो यही लग रहा है। ईश्वर करे, मेरी यह सोच और समझ सही हो ! मोदी जी के नेतृत्व की संकल्प-शक्ति के सहारे हमारा भारत महात्मा गांधी के सपनों का भारत बन सके !! शहीद भगत सिंह और सुभाष चन्द्र बोस जैसे देश के सपूतों का त्याग और बलिदान सार्थक हो सके !!!
और…और मेरे देश का हर नागरिक निस्वार्थ भाव से राष्ट्र के उत्त्थान के लिए जो कुछ भी सम्भव है, यथाशक्ति करे। हर नागरिक मोदी का हाथ और दिमाग बन जाए, तब ही बन सकेगा भारत 'विश्व का सरताज़' !

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तन्हाई (ग़ज़ल)

मेरी एक नई पेशकश दोस्तों --- मौसम बेरहम देखे, दरख्त फिर भी ज़िन्दा है, बदन इसका मगर कुछ खोखला हो गया है।   बहार  आएगी  कभी,  ये  भरोसा  नहीं  रहा, पतझड़ का आलम  बहुत लम्बा हो गया है।   रहनुमाई बागवां की, अब कुछ करे तो करे, सब्र  का  सिलसिला  बेइन्तहां  हो  गया  है।    या तो मैं हूँ, या फिर मेरी  ख़ामोशी  है यहाँ, सूना - सूना  सा  मेरा  जहां  हो  गया  है।  यूँ  तो उनकी  महफ़िल में  रौनक़ बहुत है, 'हृदयेश' लेकिन फिर भी तन्हा  हो गया है।                          *****  

दलित वर्ग - सामाजिक सोच व चेतना

     'दलित वर्ग एवं सामाजिक सोच'- संवेदनशील यह मुद्दा मेरे आज के आलेख का विषय है।  मेरा मानना है कि दलित वर्ग स्वयं अपनी ही मानसिकता से पीड़ित है। आरक्षण तथा अन्य सभी साधन- सुविधाओं का अपेक्षाकृत अधिक उपभोग कर रहा दलित वर्ग अब वंचित कहाँ रह गया है? हाँ, कतिपय राजनेता अवश्य उन्हें स्वार्थवश भ्रमित करते रहते हैं। जहाँ तक आरक्षण का प्रश्न है, कुछ बुद्धिजीवी दलित भी अब तो आरक्षण जैसी व्यवस्थाओं को अनुचित मानने लगे हैं। आरक्षण के विषय में कहा जा सकता है कि यह एक विवादग्रस्त बिन्दु है। लेकिन इस सम्बन्ध में दलित व सवर्ण समाज तथा राजनीतिज्ञ, यदि मिल-बैठ कर, निजी स्वार्थ से ऊपर उठ कर कुछ विवेकपूर्ण दृष्टि अपनाएँ तो सम्भवतः विकास में समानता की स्थिति आने तक चरणबद्ध तरीके से आरक्षण में कमी की जा कर अंततः उसे समाप्त किया जा सकता है।  दलित वर्ग एवं सवर्ण समाज, दोनों को ही अभी तक की अपनी संकीर्ण सोच के दायरे से बाहर निकलना होगा। सवर्णों में कोई अपराधी मनोवृत्ति का अथवा विक्षिप्त व्यक्ति ही दलितों के प्रति किसी तरह का भेद-भाव करता है। भेदभाव करने वाला व्यक्ति निश्चित रूप से धिक्कारा जाने व कठो