सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

सोलहवीं लोकसभा और हमारे नये प्रधानमंत्री



 प्रधानमंत्री-पद पर निर्वाचन के बाद सोलहवीं लोकसभा के नव-निर्वाचित सांसदों को सम्बोधित करने के दौरान मोदी जी की भाषण-शैली में भाषा-सन्तुलन के साथ जो वैचारिक उदारता एवं संकल्प-शक्ति दिखाई दी वह मोदी जी के व्यक्तित्व के पृथक स्वरुप को उजागर करती है। अगर यह राजनीति है तो भी यह राजनीति का एक उज्ज्वल पक्ष है।
आज के उनके भाषण ने देश की जनता की आकांक्षाओं  के पहाड़ को आकाश की ऊंचाई दे दी है। आज़ादी के बाद से भारत के आम आदमी के जीवन-स्तर में निरन्तर उठाव तो आता रहा है लेकिन उसके चेहरे पर की मुस्कान अभी भी फीकी है। यदि उसकी मुस्कान को जीवन्त करने में मोदी जी सफल हो सके तो, यदि उसकी उम्मीदों के आसमान को धरती पर ला सके तो पांच वर्ष बाद लोग कह सकेंगे - फिर इस बार.....मोदी सरकार !
    लेकिन, यक्ष प्रश्न है कि क्या मोदी जनता की उम्मीदों पर खरा उतरेंगे ? सब जानते हैं कि मोदी लहर चली थी और खूब जोर से चली, तो जाहिर है कि लहर के साथ कूड़ा-कर्कट भी आना ही था, सो आया। इस लोक सभा में हर तीन में से एक सांसद अपराधिक पृष्ठभूमि का है और उनमे से कई गम्भीर अपराधों से सम्बन्ध रखते हैं (दोष उनका नहीं है कि वह चुन कर आये हैं, दोष उनका है जिन्होंने उन्हें चुना है)। ऐसी स्थिति में देश में पसरे व्यापक भ्रष्टाचार का उन्मूलन होगा या और अधिक वृद्धि ? इसके अलावा पिछली सभी लोकसभाओं के मुकाबले इस बार धन-कुबेरों की संख्या भी बहुत अधिक है। क्या यह करोड़पति सांसद जनता के गरीब तबके के प्रति संवेदनशील हो सकेंगे ?
  बहरहाल शतरंज की बिसात पर कुछ शक्तिशाली मोहरे मोदी जी के पास हैं और यदि उन्होंने पूरी सच्चाई और इच्छा-शक्ति के साथ उनका सही उपयोग किया तो बाजी जीतने में अधिक कठिनाई नहीं आएगी उन्हें। उनकी पारी सफल हो, इसके लिए शुभकामना !
  

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बेटी (कहानी)

  “अरे राधिका, तुम अभी तक अपने घर नहीं गईं?” घर की बुज़ुर्ग महिला ने बरामदे में आ कर राधिका से पूछा। राधिका इस घर में झाड़ू-पौंछा व बर्तन मांजने का काम करती थी।  “जी माँजी, बस निकल ही रही हूँ। आज बर्तन कुछ ज़्यादा थे और सिर में दर्द भी हो रहा था, सो थोड़ी देर लग गई।” -राधिका ने अपने हाथ के आखिरी बर्तन को धो कर टोकरी में रखते हुए जवाब दिया।  “अरे, तो पहले क्यों नहीं बताया। मैं तुमसे कुछ ज़रूरी बर्तन ही मंजवा लेती। बाकी के बर्तन कल मंज जाते।” “कोई बात नहीं, अब तो काम हो ही गया है। जाती हूँ अब।”- राधिका खड़े हो कर अपने कपडे ठीक करते हुए बोली। अपने काम से राधिका ने इस परिवार के लोगों में अपनी अच्छी साख बना ली थी और बदले में उसे उनसे अच्छा बर्ताव मिल रहा था। इस घर में काम करने के अलावा वह प्राइमरी के कुछ बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाती थी। ट्यूशन पढ़ने बच्चे उसके घर आते थे और उनके आने का समय हो रहा था, अतः राधिका तेज़ क़दमों से घर की ओर चल दी। चार माह की गर्भवती राधिका असीमपुर की घनी बस्ती के एक मकान में छोटे-छोटे दो कमरों में किराये पर रहती थी। मकान-मालकिन श्यामा देवी एक धर्मप्राण, नेक महिल...

तन्हाई (ग़ज़ल)

मेरी एक नई पेशकश दोस्तों --- मौसम बेरहम देखे, दरख्त फिर भी ज़िन्दा है, बदन इसका मगर कुछ खोखला हो गया है।   बहार  आएगी  कभी,  ये  भरोसा  नहीं  रहा, पतझड़ का आलम  बहुत लम्बा हो गया है।   रहनुमाई बागवां की, अब कुछ करे तो करे, सब्र  का  सिलसिला  बेइन्तहां  हो  गया  है।    या तो मैं हूँ, या फिर मेरी  ख़ामोशी  है यहाँ, सूना - सूना  सा  मेरा  जहां  हो  गया  है।  यूँ  तो उनकी  महफ़िल में  रौनक़ बहुत है, 'हृदयेश' लेकिन फिर भी तन्हा  हो गया है।                          *****  

"ऐसा क्यों" (लघुकथा)

                                   “Mother’s day” के नाम से मनाये जा रहे इस पुनीत पर्व पर मेरी यह अति-लघु लघुकथा समर्पित है समस्त माताओं को और विशेष रूप से उन बालिकाओं को जो क्रूर हैवानों की हवस का शिकार हो कर कभी माँ नहीं बन पाईं, असमय ही काल-कवलित हो गईं। ‘ऐसा क्यों’ आकाश में उड़ रही दो चीलों में से एक जो भूख से बिलबिला रही थी, धरती पर पड़े मानव-शरीर के कुछ लोथड़ों को देख कर नीचे लपकी। उन लोथड़ों के निकट पहुँचने पर उन्हें छुए बिना ही वह वापस अपनी मित्र चील के पास आकाश में लौट आई। मित्र चील ने पूछा- “क्या हुआ,  तुमने कुछ खाया क्यों नहीं ?” “वह खाने योग्य नहीं था।”- पहली चील ने जवाब दिया। “ऐसा क्यों?” “मांस के वह लोथड़े किसी बलात्कारी के शरीर के थे।” -उस चील की आँखों में घृणा थी।              **********