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पतनोन्मुख राजनीति

          हमारे देश भारत के प्रधान मंत्री, जो इस गौरवशाली राष्ट्र की जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं, के लिए अपशब्द कहने वाले लोग अच्छे खानदान के नहीं हो सकते। शासन की यह आश्चर्यजनक व विस्मयकारी उदारता है कि ऐसे लोगों के अपराधों को निरन्तर सहन किये जा रहा है। आज से दस वर्ष पहले के दिनों में ऐसी गन्दगी सत्ताधारियों का विरोध करने वाले किसी भी विपक्षी ने कभी नहीं की थी, क्योंकि उस समय के सत्ताधारी आज की तरह उदार नहीं थे। स्व. श्रीमती इन्दिरा गांधी, जिनका मैं भी प्रबल प्रशंसक रहा हूँ, की उनके राजनैतिक विरोधी स्व. अटल बिहारी बाजपेयी ने प्रशंसा करते हुए उन्हें 'देवी दुर्गा' कह कर सम्बोधित किया था। छिप गया है राजनीति का वह उज्ज्वल चेहरा आज के घिनौने राजनीतिज्ञों के अपवित्र अस्तित्व की ओट में। ऐसे निरंकुश नराधमों को देश की प्रबुद्ध जनता सिरे से अस्वीकार कर देगी, यह बात सम्भवतः वह एवं उनके पिछलग्गू नहीं जान रहे। जनता तो उन्हें दंडित करेगी ही, किन्तु उसके पहले कानून को भी अपनी आँख खोलनी चाहिए। हाँ, कानून को सत्य की परख करते समय यह नहीं देखना चाहिए कि अपराधी सत्तासीन दल का है या विपक्ष का। 

केन्द्र सरकार से गुज़ारिश

दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल के अनुसार उन्हें इस दीपावली पर एक अनूठा विचार आया और उस विचार के आधार पर उन्होंने केन्द्र सरकार के समक्ष एक प्रस्ताव रखा कि भारतीय मुद्रा (नोट) के एक ओर गाँधी जी की तस्वीर यथावत रखते हुए दूसरी ओर भगवान गणेश व माता लक्ष्मी की तस्वीर छपवाई जाए, ताकि देवी देवताओं का आशीर्वाद देश को प्राप्त हो (देश के लिए आशीर्वाद चाहते हैं या स्वयं के लिए, यह तो सभी जानते हैं 😉 )। इसके बाद आरजेडी दल की तरफ से एक प्रस्ताव आया कि मुद्रा (नोट) के एक तरफ गाँधी जी की तस्वीर और दूसरी तरफ लालू यादव व कर्पूरी ठाकुर की तस्वीरें छपवाई जाएँ, ताकि डॉलर के मुकाबले रुपया ऊँचा उठे और देश का विकास हो (यानी कि अधिकतम मुद्रा चारा खरीदने के काम आए 😉 )। अब जब इस तरह के प्रस्ताव आये हैं, तो मेरी भी केन्द्र सरकार से गुज़ारिश है कि मुद्रा (नोट) के एक तरफ गाँधी जी की तस्वीर तो यथावत रहे, किन्तु दूसरी तरफ मेरी तस्वीर छपवाई जाए, क्योंकि मेरी सूरत भी खराब तो नहीं ही है। मेरी दावेदारी का एक मज़बूत पक्ष यह भी है कि कल रात मुझे जो सपना आया, उसके अनुसार मैं पिछले जन्म में एक समर्पित स्वतंत्रता सैनानी था

बेरोज़गारी

     यह बीजेपी वाले खुद तो ढंग से लोगों को रोज़गार दे नहीं पा रहे हैं और जो लोग इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं, उनकी आलोचना करते रहते हैं। अब देखिये न, इस निराशा के चलते एक पार्टी के सैकड़ों लोग केवल एक आदमी को रोज़गार दिलाने के लिए उत्तर दिशा से दक्षिण दिशा तक गली-गली में पैदल चल कर अपने पाँव रगड़ रहे हैं। इसी तरह एक और पार्टी के कर्ता-धर्ता अपनी पुरानी रोज़ी-रोटी छिन जाने के डर से नया रोज़गार पाने के लिए गुजरात की ख़ाक छान रहे हैं। इन्हें रोज़गार मिलेगा या नहीं, यह तो ईश्वर ही जाने, किन्तु बेचारे कोशिश तो कर ही रहे हैं न! इनकी मदद न करें तो न सही, धिक्कारें तो नहीं 😏 । *****

पंजाब में

    आप पार्टी ने पंजाब में भी इतिहास रच दिया। साथ ही भगवंत मान की प्रतिभा देख कर उन्हें मुख्यमंत्री के लिए चुन लिया गया है। बधाई पंजाब के इस नये युवा मुख्यमंत्री को! इनके अभी के वक्तव्यों से तो लगता है कि वह कुछ कर दिखाएंगे, बस कुटिल राजनीति का रंग इन पर ना चढ़े। पंजाबियों की कृपा से अभिभूत केजरीवाल व मनीष सिसोदिया ने अब से सिख वेशभूषा धारण करने का निश्चय कर लिया है, ऐसा भगवंत मान के आज के शपथ ग्रहण समारोह की इस तस्वीर से प्रतीत हो रहा है। यह सब तो ठीक है, लेकिन एक झूठ (राजनैतिक आडम्बर) जो इसके साथ ही कहा गया है, उसे देख कर मन में विरक्त-भाव सा उपजा। दैनिक भास्कर में दिये गए इनके विज्ञापन के अनुसार पंजाब के तीन करोड़ लोगों को CM पद की इकठ्ठे शपथ लेनी थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं😜। देखते हैं, आगे क्या होता है😊! *********

वसुधैव कुटुम्बकम् 'व्यंग्य लघुकथा'

                                                                                                                                                      आज रविवार था, सो बाबू चुन्नी लाल जी शहर के चौपाटी वाले बगीचे में अपने परिवार को घुमाने लाए थे। कुछ देर इधर-उधर घूमने के बाद अचानक उन्हें बगीचे के किनारे पान की दूकान पर माधव जी खड़े दिखाई दे गए। माधव जी पहले इनके मोहल्ले में ही रहा करते थे, लेकिन अब दूसरे मोहल्ले में चले गए थे। तथाकथित समाज-सेवा का जूनून था माधव जी को, तो पूरे मोहल्ले के लोगों से अच्छा संपर्क रखते थे। मोहल्ले की कमेटी के स्वयंभू मुखिया भी बन गए थे। मोहल्ले के विकास के लिए चन्दा उगाहा करते थे और उस चंदे से समाज-सेवा कम और स्वयं की सेवा अधिक किया करते थे। वह कड़वा किसी से नहीं बोलते थे, किन्तु किस से कैसे निपटना है, भली-भांति जानते थे। वाकपटु होने के साथ कुछ दबंग प्रवृत्ति के भी थे, अतः किसी की हिम्मत नहीं होती थी कि उनसे चंदे का हिसाब मांग सके। एक चुन्नी लाल जी ही थे, जो उनसे कुछ कहने में झिझक नहीं रखते थे। चुन्नी लाल जी उनसे संपर्क करने का प्रयास पहले भी कर चुके थे, लेकिन उ

'एक पत्र दोस्तों के नाम'

     मेरे प्यारे दोस्तों, मैं अपने एक सहयोगी राजनैतिक मित्र के साथ मिल कर पिछले एक माह से एक नई राजनैतिक पार्टी बनाने की क़वायद कर रहा था। आपको जान कर खुशी होगी कि हम अपने इस अभियान में सफल हो गए हैं, खुशी होनी भी चाहिए😊। न केवल पार्टी की संरचना को मूर्त रूप दिया जा चुका है, अपितु इसका नामकरण भी किया जा चुका है।   मित्रों, हमारी इस नई राष्ट्रीय पार्टी का नाम है- 'अवापा'! कैसा लगा आपको हमारी पार्टी का नाम, बताइयेगा अवश्य। हमारी पार्टी का मुख्य उद्देश्य देशसेवा तो है ही, एक और महत्वपूर्ण उद्देश्य यह भी है कि जो राजनेता देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत हैं, जिन्हें अन्य पार्टियों द्वारा तिरस्कृत किया गया है, उचित अवसर नहीं दिया गया है, उन्हें हमारी इस पार्टी में सही स्थान दिया जाए। हाँ, सही समझा आपने! यदि आप में से किसी भी शख़्स को किसी पार्टी से निराशा हासिल हुई है तो आपका स्वागत करेगी हमारी यह नई पार्टी, आपके जीवन में नई आशा का संचार करेगी।     कल के अखबार में निम्नांकित समाचार जब मैंने देखा तो सिद्धू जी की राजनीतिगत पीड़ा देख मन विह्वल हो उठा।                 मैं सिद्धू जी को भी आमन

'नई चुनौती'

                                                                  अभी-अभी की ताज़ा खबर है कि लद्दाख में भारतीय व चीनी सैनिकों के पीछे हटने की प्रक्रिया के दौरान हुई एक झड़प में हमारी सेना का एक अफ़सर तथा दो सैनिक शहीद हो गये हैं। एक ओर दोनों देशों के फौजी उच्चाधिकारियों के मध्य स्थिति को सामान्य बनाने की प्रक्रिया के लिए बातचीत हो रही है वहीं दूसरी ओर लद्दाख में इस तरह की दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना होना चिंता का विषय है।    हमारा शान्तिप्रिय देश जहाँ एक ओर कोरोना के कारण उत्पन्न हुई विषम परिस्थितियों से जूझ रहा है तो दूसरी ओर सीमाओं पर विस्तारवादी चीन और आतंकपोषी पाकिस्तान जैसे कुटिल दुश्मनों के साथ एक नया नाम नेपाल का भी जुड़ गया है। वह नेपाल, जिसकी संस्कृति हमारे देश के अधिक निकट की रही है, गुमराह हो कर सम्भवतः चीन की शह पर ही हमें आँखें दिखाने लगा है।    स्थिति गम्भीर होती जा रही है। हमने देश के तीन सपूतों को खो दिया है। राजनैतिक स्तर पर हमारी सरकार व सीमा पर डटी हमारी बहादुर सेना, दोनों ही, स्थिति के समाधान के लिए मोर्चे पर डटी हुई हैं। अब हमें अपने स्तर पर यह सोचना चाहिए कि हम अपनी

कल क्या होगा...???

                                                                मानव-समाज के विनाश के लिए कोविड-19 का विष-पाश जिस तरह से सम्पूर्ण विश्व को जकड़ रहा है उससे उत्पन्न होने वाली भयावह स्थिति की कल्पना मैं कर पा रहा हूँ। विशेषतः मैं अपने देश भारत के परिप्रेक्ष्य में अधिक चिंतित हूँ, क्योंकि यहाँ कई लोग इस महामारी की गम्भीरता का सही आंकलन नहीं कर पा रहे हैं।    ईश्वर करे, मेरा यह चिन्तन निरर्थक प्रमाणित हो, किन्तु कहीं तो अज्ञानवश व कहीं धर्मान्धता के कारण जो हठधर्मिता दृष्टिगत हो रही है वह एक अनियंत्रित दीर्घकालीन विनाश के प्रारम्भ का संकेत दे रही है।    कोरोना-संक्रमण के परीक्षण के अपने नैतिक कर्तव्य की पालना के लिए कार्यरत स्वास्थ्यकर्मियों और उनकी सुरक्षा के लिए सहयोग कर रहे पुलिस कर्मियों पर बरगलाये गए एक धर्मविशेष के कुछ लोगों द्वारा जिस तरह से पथराव कर आक्रमण किया गया, वह घटना कुछ ऐसा ही संकेत देती है। दिल्ली में निजामुद्दीन में  एकत्र हुए तबलीग़ी   जमात के लोग, जिनमें से 1०० से अधिक लोग कोरोना-संक्रमित चिन्हित भी हुए, देश के अन्य राज्यों में अनियंत्रित रूप से प्रवेश कर गए हैं। क

'देश मज़बूत होगा' (लघुकथा)

                                                                                                          "... तो भाइयों और बहिनों! मैं कह रहा था, हमें हमेशा सच्चाई के रास्ते पर चलना चाहिए। सच्चाई की राह में तकलीफें आती हैं पर फिर भी हमें झूठ और बेईमानी का साथ कभी नहीं देना चाहिए। आप तो जानते ही हैं कि  विधान सभा के चुनाव नज़दीक हैं। मैं मानता हूँ कि केन्द्रीय सरकार का सहयोग नहीं मिलने से हमारी पार्टी अब तक कुछ विशेष काम नहीं कर सकी है, लेकिन मेरा वादा है कि इस बार हम आपकी उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए एड़ी से चोटी तक का जोर लगा देंगे। मेरे विपक्षी उमीदवार फर्जी चन्द जी आप से झूठे वादे करेंगे, बहलाने की कोशिश करेंगे, लालच भी देंगे, किन्तु आप धोखे में नहीं आएँ। आपको सच्चाई का साथ देना है, मुझे अपना अमूल्य वोट दे कर जिताना है। मैं आपकी सेवा में अपनी जान...।"- मंत्री दुर्बुद्धि सिंह झूठावत अपने पहले चुनावी भाषण में अपने कस्बे के क्षेत्र-वासियों को सम्बोधित कर रहे थे कि अचानक उनका मोबाइल बज उठा। मोबाइल ऑन कर कॉलर का नाम देखा और "क्षमा करें, दो मिनट में लौटता हूँ"- कह क

डायरी के पन्नों से..."मेरे आँगन में धूप नहीं आती..."

     समर्पित है मेरी यह कविता, CRPF के उन वीर जवानों को जो पुलवामा (कश्मीर) में  कुछ गद्दारों व आतंककारियों के कुचक्र की चपेट में आकर  काल-कवलित हो गये , जो चले गए यह कसक लेकर कि काश, जाने से पहले दस गुना पापियों को ऊपर पहुँचा पाते ! 'मेरे आँगन में धूप नहीं आती...'     मेरे आँगन के छोटे-बड़े पौधे जिन्हें लगाया है पल्लवित किया है  मेरे परिवार ने, बड़े जतन से, जो दे रहे हैं  मुझे जीवन। चिन्ताविहीन हूँ  कि वह जी रहे हैं  मेरे लिए।  वह जी रहे हैं मेरे लिए, पर उन्हें भी तो चाहिए  मेरा  प्यार, दुलार  और संरक्षण।  मैं नहीं दे रहा जो उन्हें चाहिए                मुझे तो   बस उन्हीं से चाहिए,                              अपेक्षा है  तो उन्हीं से।  अपनी पंगुता पर, अपनी विवशता पर झुंझलाता हूँ जब, तो  दोषी ठहराता हूँ  दूर गगन के  बादलों को।  हाँ,  दोषी हैं वह भी, ढँक लेते हैं  सूरज को और  नहीं मिल पाती धूप, मेरे आँगन के पौधों को।  कुम्हला जाते हैं मेरे पौधे, गिर जाते हैं कभी-कभी  सूख कर धरती पर। मेरी नज़र

मैंने उसके बदन पर हाथ रखा! (प्रहसन)

    रास्ता कुछ ज्यादा ही तंग था। मैं अपना दृष्टि सुधारक यंत्र (चश्मा) घर पर भूल गया था और ऊपर से रात का अँधेरा गहरा आया था। स्कूटर की हैडलाइट ने भी अभी पांच मिनट पहले ही नमस्ते कर दी थी। नगर निगम इस इलाके में ब्लेक-आउट जैसी स्थिति रखता है सो बिजली की भी कोई व्यवस्था नहीं थी। ऐसे में राह में आगे क्या-कुछ है, जानना बहुत सहज नहीं था....सो मंथर गति से चल रहा मेरा स्कूटर संभवतः किसी के शरीर से हलके से छू गया। घबराहट के मारे मेरे कान सतर्क हो गये कि अब कुछ न कुछ मेरे पुरखों का गुणगान होगा। लेकिन ऐसा कुछ न हुआ, शायद स्कूटर उसे न ही छुआ हो, मैंने सोचा।      अब भी स्कूटर को मैं धीरे-धीरे ही आगे बढ़ा रहा था क्योंकि वह बंदा, जो कोई भी था, जगह देने का नाम ही नहीं ले रहा था। अब मैं थोड़ा और सतर्क हो गया। अवश्य ही यह सिरफिरा, मगरूर शख्स, सत्ता-पक्ष या विपक्ष के किसी दबंग नेता का मुँहलगा प्यादा होगा और इसीलिए 'हम चौड़े, सड़क पतली' वाले अहसास के चलते इस अंदाज़ में बेफिक्र चल रहा था। गुस्सा तो ऐसा आ रहा था कि चढ़ा दूँ स्कूटर उसके ऊपर, किन्तु ऐसा करने का कलेजा कहाँ से लाता!       'साहब मेहरबान तो

राजनीति में दो दलीय प्रणाली

    विश्व में ऐसे कुछ देश हैं जहाँ मात्र दो राजनैतिक दल हैं और इसका सबसे अच्छा उदाहरण अमेरिका है। कितना अच्छा हो अगर हम भी इसी प्रणाली का अनुसरण कर सकें। इस प्रणाली को हमारे देश में बाध्यकारी बना लिया जाना निश्चित ही हितकारी सिद्ध होगा, ऐसी मेरी मान्यता है।    यदि मात्र दो दलों  की अवधारणा स्वीकार कर ली जाय तो वह दल कौन से हों इसका निर्धारण भी करना होगा। इन दो दलों को चुनने की प्रक्रिया यह हो सकती है कि वर्त्तमान में जो राजनैतिक दल मौज़ूद हैं उनमें से अधिक स्वीकार्य दो दलों का चयन चुनाव पद्धति से देश की जनता द्वारा किया जावे। शेष सभी राजनैतिक दल या तो इच्छानुसार इन दोनों दलों में स्वयं का विलय कर दें या उन्हें राजनीति छोड़नी पड़ेगी।      अब इस तरह चयनित दो दल 'राइट टु रिकॉल' के नियम से बंधे रहकर स्थायी रूप से देश की राजनीति  का केन्द्र बनेंगे। दो दलीय व्यवस्था के साथ देश की वर्त्तमान प्रणाली ही कायम रखी जा सकती है या फिर अमेरिका के समान डायरेक्ट डेमोक्रेसी प्रणाली के द्वारा राष्ट्रपति-पद्धति अपनाई जा सकती है।     इन दिनों एक-दो दल अपना भावी प्रधानमंत्री घोषित कर तक़रीबन

कब जागेंगे हम ?

अन्ना जी के  रूप में  आई राजनैतिक परिवर्तन की आंधी अब थम चुकी है। दिशाहीनता के कारण अन्ना जी की प्रासंगिकता पूरी तरह ख़त्म हो चुकी है। देश की जनता दिग्भ्रमित है और राजनीति में स्वच्छता अब भी मृग-मरीचिका बनी हुई है।  निर्भीक रावण  शक्ति-प्रदर्शन कर रहे हैं और राम (जनता) ने अपने लिए शस्त्रविहीनता के विकल्प का चयन किया हुआ है।      हर कोई जप रहा है-  'होइहु कोउ नृप, हमें का हानि'…लेकिन हानि होगी और पीढ़ियों को बर्बाद कर देगी, अगर समय रहते नहीं जागे तो।     अन्ना जी की अभी की हक़ीकत बयान करता राजस्थान पत्रिका, दि. 24-2-14   के 'मिर्च मसाला' से लिया गया कॉलम -                                     

यह क्या बोल गये भाई ?

       पढ़ने-सुनने में आता है कि राष्ट्रीय स्वयम् सेवक संघ राजनीति से  स्वयम् को परे रखता है, फिर इसके  सदस्य इन्द्रेश कुमार यह क्या कह गए ? राजस्थान पत्रिका, दि. 12- 2-14 में पृष्ठ 14 पर प्रकाशित एक  समाचार के अनुसार जोधपुर में    कल एक गोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में इन्द्रेश जी ने मुसलमानों को  हिंदुस्तान का मालिक बता दिया। भाई इंद्रेश जी, क्या आप धतूरा खा के बोल रहे थे ? भारत एक धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र है और जब यहाँ के बहुसंख्यक हिन्दू ही देश के मालिक नहीं हैं तो मुसलमान भला इस देश के मालिक कैसे हो गए ? पता नहीं इन्द्रेश जी ने यह कुटिल राजनैतिक वक्तव्य क्योंकर दिया, लेकिन उनका यह दिमागी दिवालियापन आर.एस.एस. की प्रतिष्ठा को आँच पहुंचाने वाला अवश्य है।

अन्ना जी की यह कैसी सोच ?

     अन्ना जी की यह कैसी सोच ? समाचार पत्र 'राजस्थान पत्रिका', दि. 9-2-14 में प्रकाशित अन्ना जी से सम्बन्धित समाचार में उनके विचार जानकर निराशा हुई। आश्चर्य हुआ कि कैसे इतना अनुभवी और निष्कपट व्यक्ति राजनैतिक पूर्वाग्रहों से ग्रस्त अन्य लोगों के समान सोच रख सकता है ? कहीं यह इस कुंठा का परिणाम तो नहीं कि अरविन्द केजरीवाल ने उनके मार्ग से पृथक मार्ग का चयन किया ? केजरीवाल स्पष्ट रूप से कह चुके हैं कि जिस प्रकार बिना कीचड़ में पांव रखे  कीचड़ की सफाई नहीं की जा सकती, उसी प्रकार राजनीति में प्रवेश किये बिना राजनीति में आई गन्दगी भी साफ नहीं की जा सकती है। सत्याग्रह की भाषा आज की निरंकुश राजनीति नहीं समझती। यह सब-कुछ समझ कर ही अन्ना जी को कोई वक्तव्य जारी करना चाहिए।  वह केजरीवाल से अपनी सारी उम्मीदें मात्र डेढ़-दो माह में पूरी कर देने की अपेक्षा क्यों रखते हैं- ऐसे कार्य जो पूर्व सरकारें पांच-पांच वर्षों में भी पूरा नहीं कर सकी हैं। नहीं भूलना चाहिए कि केजरीवाल के पास जादू की छड़ी नहीं है, उनकी अपनी सीमायें हैं, केन्द्र-सरकार का असहयोगपूर्ण रवैया और सीमित शक्तियां उनके मार्ग की स

'AAP', "AAP' और 'AAP' ---

     'AAP' के सदस्यों के विरुद्ध  झूठी-सच्ची बातें प्रसारित कर उन्हें आलोचना का केंद्र-बिंदु बनाने की हौड़-सी मची हुई है इन दिनों विरोधियों में। विपक्षियों ने बिन्नी जैसे अभद्र एवं महत्तवाकांक्षी व्यक्ति के सम्बन्ध में केजरीवाल जी के दो बयानों को विरोधाभासी बताकर खूब बवाल मचाया। केवल दो-चार व्यक्तियों को छोड़कर जनता से उभरे कुछ नेताओं से बनी नई पार्टी की सरकार में आपस में कुछ असहमति के क्षण आ सकते हैं जो यदा-कदा मनमुटाव का रूप भी ले सकते हैं। मामलों को निपटने के लिए कभी-कभी कूटनीतिक व राजनीतिक वक्तव्य जारी करना पार्टी-हित में ही नहीं शासन-हित में भी ज़रूरी हो जाता है। क्या हमने अपने और केवल अपने हित में अपनी ही कही बात से बदल जाने की प्रवृत्ति अभी तक की स्थापित पार्टियों के नेताओं में नहीं देखी-सुनी ? इस विषय में हम इकतरफा सोच क्यों रखें ? जहाँ तक केजरीवाल जी का प्रश्न है, बिना किसी विपरीत प्रमाण के उनके व्यकित्व व आचरण के प्रति संदेह व्यक्त किया जाना न्यायोचित होगा ? एक पुराना आईआईटीयन जो अतिरिक्त आयुक्त, आयकर जैसे पद को छोड़कर जनता के बीच उसका दर्द बांटने चला आया, जो देश में

राजनीति का यह कैसा खेल ?

   सुनने में आया है कि कॉन्ग्रेस समर्थित सम्पत पाल नामक महिला अपनी महिला गुलाबी गेंग की मदद से डॉ कुमार विश्वास को अमेठी और रायबरेली में घुसने पर डंडे मारने की धमकी दे रही है। क्या उम्दा प्रजातंत्र है यह ! क्या इन दोनों क्षेत्रों में कानून का शासन नहीं है या वहाँ  इंसाफ-पसंद कोई मानव-समूह नहीं है कि यह सब हो पायेगा ? क्या भीष्म पितामह के सामने शिखंडी को खड़ा कर विजय प्राप्त करने की कूटनीति आज के समय में भी काम आ जायेगी ? क्या इस तरीके से कॉन्ग्रेस लोकसभा की चुनाव-वैतरणी पार कर सकेगी ? क्या लोकसभा में केवल इन दो सीटों के साथ प्रवेश करना चाहती है कॉन्ग्रेस ? क्या महात्मा गांधी की कॉन्ग्रेस है यह ?  और सबसे बड़ा प्रश्न- क्या मैं, इन पंक्तियों का लेखक अब से कुछ वर्षों पहले तक इसी कॉन्ग्रेस का समर्थक हुआ करता था ?

आखिर कब तक ?

  भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी मोदी जी ने गृहमंत्री शिंदे के बयान ( अल्पसंख्यक युवकों की गिरफ़्तारी के सम्बन्ध में ) को लेकर प्रधानमंत्री जी को लिखे पत्र में कहा है- " अपराध अपराध होता है। धर्म के आधार पर तय नहीं हो कि वह दोषी है या बेगुनाह। हमें सुनिश्चित करना होगा कि बिना भेदभाव के इन्साफ मिले। अपराधी का कोई धर्म नहीं होता। इस सियासत से तो देश नीचे चला जायगा।"    मोदी जी ने इस मामले में तुरंत दखल की मांग की है।   कितनी विचित्र और भयावह स्थिति है कि जिस बात की गम्भीरता को मोदी जी ही नहीं, हर आम आदमी समझ रहा है, क्यों प्रधानमंत्री जी को वह बात समझाने की ज़रूरत पड़ रही है। छद्म धर्म-निरपेक्षता का ताना-बाना जो इस शासक-वर्ग ने बुना है, उसमें स्वयं ही उलझकर इनकी पार्टी रहा-सहा जनाधार भी शीघ्र ही खो देगी - ऐसा प्रतीत हो रहा है। परिणामत: कॉन्ग्रेस में कुछ जो अच्छे नेता हैं उन्हें भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। गृहमंत्री जी को अपना बयान वापस ले देश से क्षमा मांगनी चाहिए।    आश्चर्य इस बात का है कि नवोदित पार्टी 'AAP' ने इस विषय में अपनी नीति अभी तक स्पष्ट नहीं की