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हकीकत तो यह है...

                                                                     हम स्वयं को इस बात का दिलासा कतई नहीं दे सकते कि हमारे तो 23 सैनिक ही शहीद हुए हैं जबकि उधर 43 चीनी सैनिक हताहत हुए हैं, क्योंकि एक बहादुर इन्सान की मौत के मुकाबले हज़ारों कीड़े-मकोड़ों की मौत भी कोई मायने नहीं रखती।

'सच्ची श्रद्धाञ्जलि' (कहानी)

    मैं अपने स्वास्थ्य के प्रति अधिक जागरूक कभी नहीं रहा हूँ, लेकिन जब डॉक्टर ने कहा कि अब बढ़ती उम्र के साथ मुझे कुछ सावधानियाँ अपने खान-पान में बरतनी होंगी तथा नित्यप्रति आधे घंटे का समय सुबह या शाम को भ्रमण के लिए निकालना होगा, तो मैंने पिछले एक सप्ताह से अपने शहर की झील 'फतहसागर' की पाल पर नियमित भ्रमण शुरू कर दिया। जुलाई माह समाप्ति की ओर था सो मौसम में अब गर्माहट नहीं रही थी। भ्रमण का भ्रमण होता, तो झील के चहुँ ओर प्रकृति की सायंकालीन छटा को निहारना मुझे बेहद आल्हादित करता था। मंद-मंद हवा के चलने से झील में उठ-गिर रही जल की तरंगों का सौन्दर्य मुझे इहलोक से परे किसी और ही दुनिया में ले जाता था। मन कहता, काश! डॉक्टर ने मुझे बहुत पहले इस भ्रमण के लिए प्रेरित किया होता!     मैं फतहसागर झील की आधा मील लम्बी पाल के दो राउण्ड लगा लेता था। इस तरह दो मील का भ्रमण रोजाना का हो जाता था। पिछले दो-तीन दिनों से मैं वहाँ टहलते एक बुजुर्ग को नोटिस कर रहा था। वह सज्जन, जो एक पाँव से थोड़ा लंगड़ाते थे, पाल के एक छोर से दूसरे छोर तक जाते, कुछ देर वहाँ विश्राम करते और फिर वापस लौट जाते

कश्मीरियत सुरक्षित रहे - 'एक चिन्तन'

                                                 हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर से सम्बंधित धारा 370 को समाप्त/अप्रभावी किये जाने के विषय पर साहसिक निर्णय ले ही लिया। दिनांक 5 अगस्त, 2019 को  देश की जनता की चिरप्रतीक्षित साध पूरी हुई। कुछ मंद-बुद्धि व भ्रमित या यूँ कहें कि निहित स्वार्थ से ग्रसित व्यक्तियों के अलावा भारत देश के हर शहर, हर गाँव में समस्त जन-समुदाय ख़ुशी से चहक रहा था, सब का चेहरा गर्व और सन्तोष की आभा से दसमक रहा था। अन्ततः पुरानी, परिस्थितिजन्य भूल का परिमार्जन हो गया व जम्मू-कश्मीर को धारा 370 के दूषित बन्धन से मुक्त कर उससे लद्दाख को पृथक किया गया तथा दोनों को केन्द्र-शासित राज्य का दर्जा देने का प्रस्ताव रखा गया जो राज्य-सभा में उसी दिन पारित हो गया। कल लोक-सभा में भी इसे बहस के बाद पारित कर दिया गया तथा राष्ट्रपति जी के हस्ताक्षर के बाद वैधानिक रूप से मान्य हो गया है।      धारा 370 के प्रभावी रहते देश के जम्मू-कश्मीर राज्य को कुछ ऐसी शक्तियाँ मिली हुई थीं कि भारत का राज्य होते हुए भी भारतीय संविधान के कई प्रावधान वहाँ अ

विपुल का टिफिन (कहानी)

     विपुल का ऑटो घर के दरवाज़े पर आ कर रुका। प्रतिष्ठा अपने कमरे में बैठी उपन्यास पढ़ रही थी, ऑटो की आवाज़ सुनते ही उपन्यास टेबल पर रख कर  मकान के गेट की ओर लपकी।  विपुल आते ही 'मम्मी' कह कर उससे लिपट गया। प्रतिष्ठा ने उसके हाथ से बैग लिया और प्यार से उसे चूम कर उसकी उंगली पकड़ कर भीतर ले आई। विपुल आ कर सीधे ही सोफे पर पसर गया। बैग आलमारी में रख कर प्रतिष्ठा ने उसके जूते-मौजे खोले और स्कूल-यूनिफॉर्म उतार कर घर के कपड़े पहनाये।           विपुल वापस सोफे पर बैठ गया और अपने स्कूल की रामायण शुरू कर दी- "मम्मी, आज तो मैम ने राहुल को खूब डाटा। पता है, उसे पूरे पीरियड तक खड़ा रहने का पनिश्मेंट भी दिया। ...और मम्मी, मुझे तो कॉपी में मैम ने गुड दिया।"   "बहुत अच्छा बेटे, शाबास! लेकिन, राहुल को मैम ने पनिश्मेंट क्यों दिया?"   "मम्मी, एक तो उसने कॉपी में गलत-गलत लिख दिया था फिर ऊपर से दूसरे लड़कों से बातें कर रहा था। वह वह मैम की बात ही नहीं सुनता। अरे मम्मी, छोड़ो न, मुझे भूख लग रही है, खाना दो मुझे।"     प्रतिष्ठा ने प्यार से विपुल के गालों को सहलाते हु

नज़रिया ( कहानी)

    प्रथमेश शनिवार को हाफ डे की ड्यूटी कर जैसे ही ऑफिस से घर आया, बेटे अनमोल व बेटी रुचिता ने मूवी देखने थिएटर जाने की फरमाइश कर दी। प्रथमेश ने समझाया कि कल रविवार है, कल चलेंगे, पर दोनों बच्चों ने ज़िद पकड़ ली कि नहीं, मूवी तो आज और अभी ही देखेंगे। गर्मी का मौसम था, अभी ढ़ाई बज रहे थे, बाहर धूप भी तेज थी पर बच्चों के आगे तो माता-पिता को झुकना ही पड़ता है सो आकांक्षा ने पति से आग्रह किया- "बच्चे कह रहे हैं तो मान जाओ न, 'रोज़ थिएटर' में मूवी भी अच्छी लगी है। अभी फर्स्ट शो में भीड़ भी कम होगी। मूवी देखने के बाद डिनर भी बाहर ही ले लेंगे।" "अच्छा भई, जब सारी जनता की एक ही आवाज़ है तो अकेला यह बन्दा क्या कर सकता है! चलो, चलते हैं।" थिएटर पहुँचे तो बला की भीड़ थी। तीन बज रहे थे, मूवी का समय हो चुका था। लाइन में लग कर टिकिट मिलना मुश्किल था, अतः आपस में विचार-विमर्श करने लगे कि शाम के शो में आ जायेंगे। लौटने लगे तो अनमोल उदास हो गया। सब लोग लौटने वाले ही थे कि 'पान्सो में बालकनी , पान्सो में बालकनी...' -किसी ब्लेकिये की हाँक सुनाई दी। आकांक्षा ने सुझाव दिया

बड़ा आदमी (लघु कथा)

     बहुत देर से नींद खुली मेरी। आज शनिवार था, सो कॉलेज में दो ही क्लास होनी थी इसलिए जल्दी ही घर आ गया था। खाना खाया और लम्बी तान के अपने कमरे में जा कर सो गया था। घडी देखी, पाँच बज रहे थे। 'उफ्फ़! बहुत देर सोता रहा मैं!' शाम छः बजे नवोदय रेस्तरां में दोस्तों ने पार्टी रखी थी। उछला मैं पलंग से और तुरत वॉश रूम में भागा।    तैयार होकर बाहर निकला, बाइक उठाई और पास में ही सामने सड़क किनारे बैठे श्यामू मोची से जूतों की पॉलिश कराने के इरादे से सड़क क्रॉस की। देखा तो महाशय पड़ोस में खड़े नाश्ते के ठेले वाले लड़के से भाव को ले कर जद्दो-जहद कर रहे थे। दो कदम बढ़ा कर ठेले के पास गया तो उसे कहते सुना- ''कल ही तो भेलपूरी खाई थी तुम्हारे यहाँ और आज एक दिन में ही भाव डेढ़ा कर दिया। देख भाई, मगजपच्ची मत कर, वैसे भी आज घर से दुफेर में निकल के आया हूँ काम पे। ले दे के दो-तीन कस्टमर आये हैं अब तक। भूख लग रही है, देना हो तो दे दे कल के भाव से।''   "अब जो भाव है सो है। नहीं चाहिए, तुम्हारी मर्जी।"   क्षुब्ध दृष्टि से ठेले वाले की ओर एक बार देखा श्यामू ने और 'लूट मचा रखी

डायरी के पन्नों से ... "सिमटी-सी वह खड़ी धरा पर..."

    मेरे देश के कुछ अहिन्दीभाषी क्षेत्रों में किसी हिन्दीभाषी व्यक्ति को ढूंढ पाना बहुत मुश्किल हो जाता है, जबकि हिन्दी हमारी मातृभाषा है। पूर्णतः वैज्ञानिक, तार्किक एवं साहित्यिक समृद्धि से परिपूर्ण हमारी हिंदी भाषा हमारे ही देश में इस तरह तिरस्कृत हो रही है, इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है! वहीं, यह बात कुछ सांत्वना देने वाली है कि अभी हाल के दिनों में 'हिन्दी' के प्रति रुझान बढ़ाने हेतु इसके प्रचार-प्रसार का उच्चतम प्रयास सरकारी स्तर पर किया जा रहा है।      आज खुशनुमा दिन है, आज 'हिन्दी-दिवस' है!      मेरे महाविद्यालयीय अध्ययन के प्रारम्भिक काल में मेरे द्वारा लिखी गई यह कविता आज यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ---                          ---०००---        सिमटी-सी वह खड़ी धरा पर                   मानो  चाँद  उतर आया।      पतझड़  मानो  बीत  चला हो,                   नया बसंत निखर आया।      या   ऊषा   ने   ली   अंगडाई,                   नया प्रभात उभर आया।      नदिया कोई  उमड़  पड़ी या                   झरना  कोई  झर आया।      परी  एक  उतरी  नभ स

'हमारा भारत महान'

  अक्सर यह व्यंग्य करते आये हैं लोग कि  '100 में से 99 बेईमान, फिर भी हमारा भारत महान!'- शायद कटु-सत्य है भी यह, लेकिन आज हम सच में ही सगर्व कह सकते हैं - "एशिया में सबसे पहले हमारी मंगल तक सफल उड़ान,  विश्व-गुरु, सबसे न्यारा, 'हमारा भारत महान'।"              वन्दे मातरम् !!!

सही समय, सही कदम.…

    प्रधानमंत्री मोदी जी के द्वारा राजकार्य में मातृभाषा हिंदी के अधिकतम प्रयोग पर बल दिया जाना स्वागत योग्य है। प्रारम्भ में जनता की सुविधा के लिए सम्बंधित क्षेत्र की क्षेत्रीय भाषा में अनुवाद संलग्न किया जाना भी वांछनीय है। कालान्तर में देश-विदेश के मंचों पर मात्र हिंदी का ही प्रयोग अनिवार्य किया जा सकेगा। जिस प्रकार कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष विदेशों में अपनी मातृभाषा का प्रयोग करते हैं व दुभाषिये उसका सम्बंधित देश की भाषा में या अंग्रेजी में रूपान्तरण कर देते हैं, ठीक उसी तरह हम भी हिंदी का प्रयोग अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आसानी से कर सकते हैं। हिंदी को गौरवान्वित करने वाले इस कदम की जितनी भी प्रशंसा की जाये, कम है। हाँ, क्षेत्र-विशेष में क्षेत्रीय भाषा या अंग्रेजी को द्वितीय भाषा के रूप में मान्यता दी जा सकती है। हिंदी का अधिकतम प्रयोग देश को एक सूत्र में बांधे रखने और मात्र क्षेत्रीय सोच की संकीर्णता के उन्मूलन में सहायक होगा। राष्ट्र-भाषा या ऐसा कोई भी मुद्दा जो राष्ट्र-भावना से सम्बन्धित हो, का विरोध करने वाले हर वक्तव्य को राष्ट्र-द्रोह के समकक्ष माना जाकर कार्यवाही की जानी चा

असमंजस में हूँ …

    अभी तीन-चार दिन पहले मैं अपने एवं मित्र-परिवार के साथ शहर की खूबसूरत झील फतहसागर पर रात्रि लगभग 10 बजे टहल रहा था। अनायास ही झील की पाल के नीचे इधर-उधर घूमते ड्यूटी कर रहे दो पुलिस-कर्मियों पर नज़र पड़ी। विचार आया कि यदि यह लोग अभी ड्यूटी पर नहीं होते तो शायद हमारी ही तरह अपने परिवार के साथ यहाँ टहलने का आनंद ले रहे होते। कैसी जटिल और नीरस ज़िन्दगी है इनकी- यह सोच मन में उनके प्रति करुणामिश्रित सम्मान जाग उठा।    आज लखनऊ में शिक्षकों के द्वारा अपनी मांगों के लिए किये जा रहे आंदोलन के दौरान पुलिस ने जिस अमानवीय तरीके से लाठी-चार्ज किया- वह सब टीवी पर देखा। लग रहा था मानो युद्ध में दुश्मनों पर पूरी शक्ति के साथ आक्रमण किया जा रहा है। हल्के और सांकेतिक प्रहारों से ही उन्हें तितर-बितर करना निश्चित रूप से असंभव नहीं था। इस पुलिसिया क्रूरता के प्रति मन आक्रोश और घृणा से भर उठा।    नहीं समझ पा रहा हूँ कि पुलिस के प्रति किस तरह के भाव को ह्रदय में स्थान दूँ ...   

सोलहवीं लोकसभा और हमारे नये प्रधानमंत्री

 प्रधानमंत्री-पद पर निर्वाचन के बाद सोलहवीं लोकसभा के नव-निर्वाचित सांसदों को सम्बोधित करने के दौरान मोदी जी की भाषण-शैली में भाषा-सन्तुलन के साथ जो वैचारिक उदारता एवं संकल्प-शक्ति दिखाई दी वह मोदी जी के व्यक्तित्व के पृथक स्वरुप को उजागर करती है। अगर यह राजनीति है तो भी यह राजनीति का एक उज्ज्वल पक्ष है। आज के उनके भाषण ने देश की जनता की आकांक्षाओं  के पहाड़ को आकाश की ऊंचाई दे दी है। आज़ादी के बाद से भारत के आम आदमी के जीवन-स्तर में निरन्तर उठाव तो आता रहा है लेकिन उसके चेहरे पर की मुस्कान अभी भी फीकी है। यदि उसकी मुस्कान को जीवन्त करने में मोदी जी सफल हो सके तो, यदि उसकी उम्मीदों के आसमान को धरती पर ला सके तो पांच वर्ष बाद लोग कह सकेंगे - फिर इस बार.....मोदी सरकार !     लेकिन, यक्ष प्रश्न है कि क्या मोदी जनता की उम्मीदों पर खरा उतरेंगे ? सब जानते हैं कि मोदी लहर चली थी और खूब जोर से चली, तो जाहिर है कि लहर के साथ कूड़ा-कर्कट भी आना ही था, सो आया। इस लोक सभा में हर तीन में से एक सांसद अपराधिक पृष्ठभूमि का है और उनमे से कई गम्भीर अपराधों से सम्बन्ध रखते हैं (दोष उनका नहीं है कि व

सरल, चर्चित व्यक्तित्व डॉ. मनमोहन सिंह

अपनी सरलता, सादगी पूर्ण शालीनता और विद्वता के लिए कभी नहीं भुलाये जा सकने वाले अद्वितीय  अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कल प्रधानमंत्री पद से त्याग-पत्र दे दिया। शासन की अपनी प्रथम पारी की प्रशंसनीय सफलता के कारण ही पुनः प्रधानमंत्री मनोनीत हुए डॉ. सिंह अपनी पहली सफलता को दोहराने में असमर्थ रहे। इस असफलता के नैपथ्य में कई स्थानीय तो कई वैश्विक कारण जिम्मेदार रहे हैं।     डॉ. सिंह के प्रथम कार्यकाल की अवधि में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जिस गति से विकास हुआ उससे भारत को अन्तर्राष्ट्रीय जगत में अत्यधिक प्रशंसा एवं सम्मान मिला। उनकी आर्थिक उदारीकरण की नीति ने कई क्षेत्रों में कामयाबी दिलाई तो कई में वह नाकाम भी रही। उनके शासनकाल में परमाणु मोर्चे पर सफलता की कड़ियाँ जोड़ने वाली उपलब्धि तो हासिल हुई, लेकिन बेरोजगारी और मंहगाई जैसी मूलभूत समस्याओं के निराकरण की कोई सार्थक नीति देश को नहीं मिल सकी। तथापि डॉ. सिंह की के समय की इस उपलब्धि को नहीं नकारा जा सकता कि उच्च आर्थिक विकास दर बनी रहने के कारण ही वर्ष 2007-08 के समय के वैश्विक आर्थिक संकट के दौर में भी देश की स्थिति अन्य कई वि

हम सब एक हैं.…

    मेरे अच्छे दोस्तों  (fb के भीतर व बाहर के, दोनों ही) !    जितना भी मेरे मन में आप सब के लिए प्यार है उसको एकबारगी अपनी पूरी शक्ति से एकत्र कर आपको समर्पित करते हुए पूरी नम्रता के साथ अपनी भावना आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ। कृपया पूर्वाग्रहों से मुक्त हो मेरे कथन को पढ़ें, समझें व इस पर मनन करें।    मित्रों, शहर में, देश में, जब हिन्दू-मुसलमनों को आपस में लड़ते-झगड़ते देखता हूँ, fb पर एक-दूसरे के विरुद्ध कटुता फैलाते देखता हूँ तो मेरा मन रो पड़ता है। सोचिये, हम भारतवासियों को अनगिनत शहीदों के जीवन की कीमत चुकाने पर कितने ही युगों की पराधीनता के बाद स्वतन्त्रता की सांसें नसीब हुई हैं। उन शहीदों में हिन्दू भी थे तो मुसलमान भी। मुग़ल साम्राज्य से लेकर अंग्रेजों के शासनकाल तक के समय में हिन्दू और मुस्लिम इस कदर आपस में मिले-जुले रहे हैं कि कुछ अपवादों के अलावा कहा जा सकता है कि भाइयों की तरह ही रहे हैं। जहाँ तक झगड़ने की बात है क्या भाइयों में झगड़ा नहीं होता ? दोनों सम्प्रदायों के लोगों की भाषा और संस्कृति भी इस कदर घुल-मिल गई है कि अब अलगाव करना सम्भव नहीं है। जब हमने एक-दूसरे के

जिस पर नाज़ है हिन्द को वह यहाँ है…

   देश के लिए  अपने उच्च-प्रतिष्ठित सरकारी पद का त्याग कर  कुछ कर  गुजरने के लिए जन-आंदोलन में कूद  पड़ने वाला, अन्ना जी जैसे  भ्रमित व्यक्ति ( ममता बेनर्जी के साथ भी जिस शख्स ने विश्वासघात  किया)  का साथ छोड़कर प्रगति की राह पर चल पड़ने वाला, अपने  आदर्शों के लिए मुख्यमंत्री जैसे पद (जिस पद के लिए सपने में भी कई  नेताओं की  लार टपकती है) को ठोकर मार देने वाले व्यक्ति को कुछ तत्व  भगोड़ा कहते हैं। आश्चर्य है, उनकी जिव्हा लड़खड़ाती नहीं, लेखनी कांपती नहीं। कैसे अपनी आत्मा को मारकर कोई ऐसा सोच सकता है, कह सकता है ? अरविन्द केजरीवाल को कुछ लोग पाकिस्तानी एजेंट कह रहे हैं।  कैसा पाकिस्तानी एजेंट है यह जो देश में महंगाई कम करने, गैस के दाम  कम करने और भ्रष्टाचार रोकने के लिए लड़ रहा है, जो हिंसा का जवाब अहिंसा से देता है।   . अगर अरविन्द केजरीवाल यह सब करने के बाद भी पाकिस्तानी एजेंट है  तो मेरे इस भारत देश में देशभक्त कौन है ? देशहित के लिए जीने वाला  यह हिंदुस्तानी क्या सत्तालोलुप तथाकथित राष्ट्रवादियों से कई गुना अधिक राष्ट्रवादी नहीं है ?     मन से अज्ञान की प

वह यादगार दृश्य ---

  कल TV पर एक मूवी देखी। दक्षिण भारतीय एक सुपर स्टार से सजी हुई यह मूवी यूँ तो एक साधारण फॉर्मूला मूवी थी, लेकिन इसके कथानक में जुड़ी दो आदर्शपरक बातें दिल की गहराइयों में बस गईं। 1)  फ़िल्म का नायक एक व्यक्ति की कुछ मदद करता है और जब वह व्यक्ति उसका शुक्रिया अदा करता है तो नायक उससे कहता है कि उसे धन्यवाद नहीं चाहिए बल्कि इस मदद के बदले में वह तीन आदमियों की मदद करे और उन्हें इसी तरह का सन्देश देकर अन्य तीन-तीन आदमियों की मदद करने के लिए कहे।  नायक से मदद प्राप्त करने वाला एक सुपात्र व्यक्ति था। उसने नायक के निर्देशानुसार कार्य किया और समयान्तर में इस सद्प्रेरणा के प्रचार-प्रसार से हज़ारों लोगों का मन-मस्तिष्क मदद की भावना से सुवासित होता चला गया। परिणामतः नायक के उस शहर में सत्कर्म लोगों की जीवनचर्या बन गया।  2)  पांवों से विकलांग कुछ बच्चों के उत्साहवर्धन के लिए उनकी दौड़-प्रतियोगिता आयोजित की गई थी। प्रतियोगी बच्चों में से चार-पांच बच्चे लक्ष्य के क़रीब ही थे कि कुछ पीछे रह गए बच्चों में से एक ट्रेक पर गिर पड़ा और चोट लगने से उसके मुख से चीख निकल पड़ी। जैसे ही लक्ष्य के समीप पहुँच

अरविन्द केजरीवाल जी के लिए एक सन्देश -

  प्रिय केजरीवाल जी, नव-वर्ष की शुभकामना ! आप की पार्टी 'आप' के उद्भव के साथ ही जागृति की जो चेतना झलकी थी वह क्रांति की लहर बन कर आज पूरे देश में छा गई है। बधाई !   एक विशेष बात आपसे शेयर करना चाहता हूँ।  जिस प्रकार नाव को डूबते देख उसमें सवार लोग कूद कर पास से निकल रहे मजबूत सहारे को थाम लेते हैं ठीक उसी प्रकार जैसे-जैसे आपकी पार्टी का विस्तार होगा (और कोई इसे रोक नहीं पाएगा ), नेता लोग दूसरी पार्टियां छोड़कर 'आप' में समाहित होने के लिए भागे चले आयेंगे। यहीं पर आपको इतना सतर्क रहने की आवश्यकता होगी जितनी आपको पार्टी के गठन के समय भी नहीं रही होगी। आपकी बौद्धिक क्षमता का लोहा तो देश की सभी पार्टियों के नेताओं ने माना है (भले ही प्रकट में कोई नहीं स्वीकारे ), लेकिन कुछ लोग कुटिलता के सहारे आपको पीछे धकेलने की कोशिश कर सकते हैं।  अतः मुझे लगता है, आपको एक ऐसी सतर्कता समिति का गठन करना चाहिये जो पूरी ईमानदारी से जाँच-परख करके ईमानदार और समर्पित व्यक्ति को ही 'आप' में प्रवेश दे चाहे वह व्यक्ति आम लोगों में से हो या किसी पार्टी से आया हो। सदस्य-संख्या के विस्त

दिल्ली में AAP-मंत्रीमंडल का शपथ-ग्रहण ---

     आज दिल्ली के रामलीला मैदान में 'आप' के नवगठित मंत्रीमंडल के सदस्यों ने पद व गोपनीयता की शपथ ली। केंद्र-सरकारों व विभिन्न राज्य-सरकारों द्वारा अब तक कितनी ही बार शपथें ली जाती रही हैं और तदर्थ समारोह भी आयोजित होते रहे हैं, लेकिन कई मायनों में आज का यह आयोजन अद्भुत और अनुकरणीय था। मंत्रियों का मेट्रो-ट्रेन में सफ़र करके समारोह स्थल पर जाना प्रतीकात्मक रूप से तो अच्छा कहा जा सकता है लेकिन इसे अधिक प्रभावकारी कदम नहीं माना जा सकता। ऐसा किया जाना इतना आवश्यक भी नहीं था क्योंकि सदैव इस तरह यात्रा करना न तो व्यवहारिक है और न ही सम्भव। फिर भी यह समारोह कई मायनों में प्रशंसा-योग्य था। निहायत ही सादगीपूर्ण ढंग से निर्वहित किये गए इस आयोजन में कोई व्यक्ति VIP नहीं था, पार्टी के नाम के अनुरूप ही मंत्री से लेकर सामान्य व्यक्ति तक हर व्यक्ति आम आदमी ही था। मंत्रियों एवं विधायकों के परिवार भी जनता के मध्य ही बैठे थे सामान्य लोगों की तरह। सभी के लिए एक जैसी कुर्सियां, एक-सी सुविधा थी इसलिए प्रवेश-पत्र का भी प्रावधान नहीं था। सही मायनों में लोकतंत्र आज देखा, न केवल दिल्ली-वासियों ने अ

सुविचार--Posted on Facebook by me...before a few days-मेरा आज का विचार -- 31 मई, 2013

हम किसी का अभिवादन करते हैं इसका कारण मात्र यह नहीं कि वह इसके योग्य है, अपितु यह भी है कि  हमने ऐसे संस्कार पाए हैं । -गजेन्द्र भट्ट