बहुत देर से नींद खुली मेरी। आज शनिवार था, सो कॉलेज में दो ही क्लास होनी थी इसलिए जल्दी ही घर आ गया था। खाना खाया और लम्बी तान के अपने कमरे में जा कर सो गया था। घडी देखी, पाँच बज रहे थे। 'उफ्फ़! बहुत देर सोता रहा मैं!' शाम छः बजे नवोदय रेस्तरां में दोस्तों ने पार्टी रखी थी। उछला मैं पलंग से और तुरत वॉश रूम में भागा।
तैयार होकर बाहर निकला, बाइक उठाई और पास में ही सामने सड़क किनारे बैठे श्यामू मोची से जूतों की पॉलिश कराने के इरादे से सड़क क्रॉस की। देखा तो महाशय पड़ोस में खड़े नाश्ते के ठेले वाले लड़के से भाव को ले कर जद्दो-जहद कर रहे थे। दो कदम बढ़ा कर ठेले के पास गया तो उसे कहते सुना- ''कल ही तो भेलपूरी खाई थी तुम्हारे यहाँ और आज एक दिन में ही भाव डेढ़ा कर दिया। देख भाई, मगजपच्ची मत कर, वैसे भी आज घर से दुफेर में निकल के आया हूँ काम पे। ले दे के दो-तीन कस्टमर आये हैं अब तक। भूख लग रही है, देना हो तो दे दे कल के भाव से।''
तैयार होकर बाहर निकला, बाइक उठाई और पास में ही सामने सड़क किनारे बैठे श्यामू मोची से जूतों की पॉलिश कराने के इरादे से सड़क क्रॉस की। देखा तो महाशय पड़ोस में खड़े नाश्ते के ठेले वाले लड़के से भाव को ले कर जद्दो-जहद कर रहे थे। दो कदम बढ़ा कर ठेले के पास गया तो उसे कहते सुना- ''कल ही तो भेलपूरी खाई थी तुम्हारे यहाँ और आज एक दिन में ही भाव डेढ़ा कर दिया। देख भाई, मगजपच्ची मत कर, वैसे भी आज घर से दुफेर में निकल के आया हूँ काम पे। ले दे के दो-तीन कस्टमर आये हैं अब तक। भूख लग रही है, देना हो तो दे दे कल के भाव से।''
"अब जो भाव है सो है। नहीं चाहिए, तुम्हारी मर्जी।"
क्षुब्ध दृष्टि से ठेले वाले की ओर एक बार देखा श्यामू ने और 'लूट मचा रखी है' बड़बड़ाता हुआ पलट कर लौटा। मुझ पर नज़र पड़ी तो बोला- "आओ बाबूजी, बोनी कराओ।"
मन ही मन हँसा मैं, अभी तो यह ठेले वाले से कह रहा था कि दो-तीन ग्राहक आ चुके हैं और अब 'बोहनी'...।
पॉलिश के बाद पचास का नोट दिया तो उसने बीस रुपये वापस किये। अभी पिछले सप्ताह तो बीस रुपये लिए थे और आज तीस! पट्ठा, अभी ठेले वाले को कह रहा था कि लूटता है....और खुद?
शायद मेरे मनोभाव पढ़ लिए उसने, स्वतः ही कहा- "बाबूजी, आदमी क्या तो नहाये और क्या निचोड़े! अभी कल ही खरीद के लाया हूँ 110 रुपये में पालिस की डब्बी और 70 रुपये में क्रीम। सब चीजें कितनी मेंगी हो गई हैं।"
आधी मुस्कराहट उस पर फेंकते हुए बाइक पर टिक कर किक लगाई और बीच सड़क पहुँचा ही था कि पीछे से आ रही एक कार ने ठोक दिया। बाइक के साथ ही सड़क पर आ गिरा मैं, तेज़ दर्द से कराह उठा और मुँह से एक चीख निकल पड़ी। दायें-बाँयें से आ कर कुछ लोग बाजू में इकट्ठे हो गए। कोई मेरी लापरवाही बता रहा था तो कोई कार की तेज़ रफ़्तार को। गिरा मैं था, चोट मुझे लगी थी तो वाजिब था कि मेरे पक्ष में बोलने वाले लोग ज़्यादा थे। कार में बैठे लोगों को भागने नहीं दिया भीड़ ने। इतने में पुलिस वाले आ गए- एक एएसआई था और एक कॉन्स्टेबल, शायद भीड़ में से किसी ने फ़ोन कर दिया था।। कार-चालक ने उतर कर एएसआई को धीरे-से कुछ कहा, शायद अन्दर बैठे साहब का परिचय दिया होगा।
एएसआई. ने कार के पास आकर एक गर्म सलाम ठोका और भीड़ को धमका कर कार को रवाना किया। दो-तीन लोगों ने ऐतराज किया तो एएसआई ने कुछ नर्मी दिखा कर समझा दिया- "साहब को एक ज़रूरी मीटिंग में जाना था भाई। गृह मंत्री जी के प्राइवेट सेक्रेटरी हैं। अब क्या बतायें, यह आजकल के छोरे बाइक चलाते नहीं, उड़ाते हैं सड़क पर। न इनको अपनी चिंता है न औरों की।"
अन्य कुछ वाहन साइड से होकर आगे निकल रहे थे तो कुछ दुपहिया वाले एक पाँव जमीन पर टिका कर, 'क्या हुआ, क्या हुआ...', कह-पूछ कर अपनी जिज्ञासा शान्त कर रहे थे, भीड़ बढ़ा रहे थे। मैं सड़क पर घायल पड़ा कराह रहा था, न पुलिस वालों को चिन्ता थी न भीड़ को।
इतने में मैंने सुना, कोई कह रहा था- "अरे भाई, इन्हें उठा कर ऑटो में बिठाने में मेरी थोड़ी मदद करो। इन्हें अस्पताल ले जाते हैं।"
मैंने नज़र घुमाई, वही श्यामू था जिससे अभी मैंने पॉलिश कराई थी, वह ऑटो साथ लेकर आया था। मुझसे खड़ा नहीं हुआ जा रहा था, एक भले आदमी की मदद से मुझे ऑटो में बैठा कर,सहारा देते हुए वह भी मेरे पास में ही बैठ गया। ओटो चला तो मैंने सुना, भीड़ में से ही कोई कह रहा था- "भई, भले लोग भी होते हैं इस दुनिया में! इस बेचारे को अस्पताल ले...।"
ऑटो अब तक आगे निकल गया था, शेष बात सुन नहीं पाया मैं। दिमाग में कोफ़्त-सी हुई. 'हुंह, मौखिक सहानुभूति दर्शाना भी कितनी अच्छी कला है!'
राह में श्यामू कह रहा था- "बाबूजी, मैंने नाश्ते के ठेले वाले से बोल दिया है, वह आपकी मोटर साइकल आपके घर पहुँचा देगा, आप बिल्कुल चिंता मत करना, बस एक बार डाक्टर आपको देख लेवे। हाँ, आप घर पे फ़ोन तो कर दो।"
"फ़ोन कैसे करूं भाई, मोबाइल तो जल्दी में साथ लाना ही भूल गया हूँ।"
"अपन देखते हैं, डाक्टर क्या बोलता है! नइं तो लौटते बखत मैं आपके घर पे बोल दूंगा। मैंने कार को टक्कर मारते और आपको गिरते देखा था, पर कार का नम्बर देखना भूल गया। कार वाले सा'ब को कई बार यहाँ से निकलते देखता हूँ। बड़े आदमी हैं, अक्सर इनकी गाड़ी तेज भागती हुई निकलती है मेरे सामने से।"
अस्पताल ज्यादा दूर नहीं था, पहुँचते ही श्यामू पहिये वाली कुर्सी लेकर आ गया और मुझे डॉक्टर के पास लाइन में छोड़ पर्ची बनवाकर ले आया। डॉक्टर ने प्रारम्भिक जाँच कर सम्भावना जताई- "हड्डी तो नहीं टूटी है, शायद लिगामेंट्स स्ट्रैच हो गए हैं, फिर भी एक्सरे तो करवा ही लो।"
मैंने श्यामू को अपने घर का नम्बर दे कर अस्पताल के फोन से सूचना करवाई। पापा ऑफिस से आ गए थे सो सुनते ही मम्मी-पापा दोनों तुरन्त अस्पताल आ गये। उनके आने पर श्यामू चलने को हुआ तो मैंने उसे ऑटो-खर्च के और ईनाम के पैसे देने चाहे तो वह बोला- "बाबूजी, इतनी भी बेइज्ज़ती मत करो। ईनाम तो क्या ऑटो के पैसे भी नहीं लेने वाला मैं। गरीब हूँ तो क्या हुआ, इतना भी बेगैरत नहीं कि सेवा का पैसा लूँ।"
पापा ने समझाना चाहा- "पर ऑटो का पैसा तो तुमने गाँठ से दिया है न! वह तो तुम्हें लेना ही पड़ेगा।"
"अरे सा'ब, कैसी बात करते हो आप? दो-चार बार पालिस कराएँगे बाबू तो वसूल हो जावेगा, आप चिंता ना करो।" ....और वह बिना कुछ और सुने निकल गया।
एक्सरे की टेबल पर लेटा मैं सोच रहा था, 'बड़ा आदमी वह कार में बैठा व्यक्ति था या यह श्यामू, जिसने भूखा होने के बावज़ूद महँगी होने से ठेले वाले से भेलपूरी नहीं खरीदी थी और अब अपनी ग्राहकी छोड़ कर, अपना पैसा खर्च कर मुझे अस्पताल लेकर आया था।'
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बहुत प्रेरक कथा है आदरणीय सर | सच कहूं तो शहर में तेईस साल से ऊपर रहने पर भी मैंने बहुत उदारमना किसी व्यक्ति को नहीं देखा , पर अक्सर अपने गाँव जाकर सरल सहृदय लोगों को देखती हूँ तो मैं भी सोचती हूँ कि बड़े होने की परिभाषा क्या है !!!!! श्यामू जैसे लोग ही मानवता को प्राणवायु दे रहे हैं , बस यही सच है | कथित बड़े लोगों ने तो इसका अस्तित्व ध्वस्त करने में कोई कसर नहीं छोडी |वैसे मैंने ये कहानी प्रतिलिपि पर भी पढ़ी थी | सादर प्रणाम और आभार |
जवाब देंहटाएंइस खूबसूरत टिप्पणी के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद रेणु जी!
हटाएंआपसे निवेदन है कि दूसरी थीम में अपना ब्लॉग संवारिये | जैसे मेरे ब्लॉग पर ही मेरे भाई ने यही थीम लगायी थी पर मैंने उसे WATERMARK थीम में बदल लिया | पर अभी कुछ दिन पहले मैंने उसे OSAMINK थीम में बनाया जो मुझे लगता है बहुत अच्छा दिख रहा है | एक बार कोशिश जरुर करें और अपने ब्लॉग पर फ़ॉलो का बटन भी लगायें | इससे आपका ब्लॉग बहुत लोगों तक पहुंचेगा | सादर
जवाब देंहटाएंसुझाव के लिए धन्यवाद रेनू जी! कृपया बताएँ कि यह थीम और फॉलो बटन किस जगह मिलेगा रेनू जी?
हटाएंबेहद मार्मिक व भावपूर्ण सजीव चित्रण।
जवाब देंहटाएंयथार्थ को आपने बड़ी ही ख़ूबसूरती से अपनी लेखनी के माध्यम से व्यक्त किया।
इस खूबसूरत कमेंट के लिए आभार आपका बंधुवर!
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