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विपुल का टिफिन (कहानी)

     विपुल का ऑटो घर के दरवाज़े पर आ कर रुका। प्रतिष्ठा अपने कमरे में बैठी उपन्यास पढ़ रही थी, ऑटो की आवाज़ सुनते ही उपन्यास टेबल पर रख कर  मकान के गेट की ओर लपकी।  विपुल आते ही 'मम्मी' कह कर उससे लिपट गया। प्रतिष्ठा ने उसके हाथ से बैग लिया और प्यार से उसे चूम कर उसकी उंगली पकड़ कर भीतर ले आई। विपुल आ कर सीधे ही सोफे पर पसर गया। बैग आलमारी में रख कर प्रतिष्ठा ने उसके जूते-मौजे खोले और स्कूल-यूनिफॉर्म उतार कर घर के कपड़े पहनाये।
      
   विपुल वापस सोफे पर बैठ गया और अपने स्कूल की रामायण शुरू कर दी- "मम्मी, आज तो मैम ने राहुल को खूब डाटा। पता है, उसे पूरे पीरियड तक खड़ा रहने का पनिश्मेंट भी दिया। ...और मम्मी, मुझे तो कॉपी में मैम ने गुड दिया।"
  "बहुत अच्छा बेटे, शाबास! लेकिन, राहुल को मैम ने पनिश्मेंट क्यों दिया?"
  "मम्मी, एक तो उसने कॉपी में गलत-गलत लिख दिया था फिर ऊपर से दूसरे लड़कों से बातें कर रहा था। वह वह मैम की बात ही नहीं सुनता। अरे मम्मी, छोड़ो न, मुझे भूख लग रही है, खाना दो मुझे।" 
   प्रतिष्ठा ने प्यार से विपुल के गालों को सहलाते हुए कहा- "हाँ मेंरे प्यारे-प्यारे बेटे, डाइनिंग रूम में तेरी चेयर पर आ जा। हम दोनों खाना खा लेते हैं।"
  
    विपुल के बैग से उसने टिफिन निकाला, खोल कर मांजने के लिए रखा और किचन से खाना ले कर डाइनिंग टेबल पर आ गई। माँ-बेटा दोनों  खाना खाने लगे। कभी-कभी प्रतिष्ठा अपने हाथ से भी उसे निवाला खिला देती। 
   खाना खाने के बाद कुछ देर तक विपुल टीवी में कार्टून का वीडियो देखता रहा और फिर जब उसे नींद आने लगी तो प्रतिष्ठा ने उसे बैड पर सुला दिया। अब प्रतिष्ठा ने उपन्यास वापस उठा लिया। उपन्यास समाप्ति पर था और बड़े ही रोचक मोड़ पर उसने पढ़ना छोड़ा था, सो आगे पढ़ने में व्यस्त हो गई। 

    प्रतिष्ठा का लगभग रोज का यही रुटीन था। सुबह उठते ही विपुल को स्कूल के लिए तैयार करती , उसका टिफिन बनाती और फिर स्कूल का ऑटो आते ही उसे ऑटो में बैठा कर आती। तब तक पतिदेव भी उठ जाते और फिर दोनों साथ-साथ चाय पीते। इसके बाद नित्य-कर्म से निवृत हो कर वह खाना बनाती। पति खाना खा कर अपने ऑफिस चले जाते और वह इधर-उधर का कोई काम होता तो उसे सम्हाल कर अपने कमरे में आ जाती। पढ़ने का बहुत शौक था उसे, सो विपुल के आने तक कुछ-न-कुछ पढ़ती रहती। विपुल को इसी साल स्कूल में एल.के.जी. में प्रवेश दिलवाया था। जैसे ही वह स्कूल से आता, वह फिर उसके साथ व्यस्त हो जाती। 
    
    उपन्यास खत्म कर के प्रतिष्ठा ने उसका टिफिन बैग से निकाला तो टिफिन भारी लगा, खोल कर देखा तो उसमें खाना ज्यों का त्यों पड़ा हुआ था। विपुल के जागने पर उसने पूछा- "बेटा, टिफिन में आज खाना कैसे पड़ा हुआ है?"
    "मम्मी, आज राहुल ने मेरे टिफिन का खाना खाया ही नहीं तो पड़ा रह गया।"
   प्रतिष्ठा उसका मुँह देखती रह गई, पूछा- "क्या मतलब? रोज तू  खाता है या राहुल को खिला देता है?"
   "रोज वही खाता है। उसको उसकी मम्मी टिफिन नहीं देती न इसलिए।"- विपुल ने मासूमियत से कहा। 
   "हे भगवान!" प्रतिष्ठा ने अपना सिर थाम लिया। वह हतप्रभ थी, तो उसका बेटा रोज स्कूल में भूखा ही रहता है। तभी तो आते ही बेसब्री से खाना मांगता है। उसके चोटिल मन की पीड़ा आँखों के रास्ते बाहर आने लगी। मासूम विपुल की कोमल भावनाओं को आघात नहीं पहुँचे, यह निश्चय कर उसने अपने आँसू पोंछे और उसे गोद में भर कर स्नेहसिक्त स्वरों में बोली-"बेटा, अब से तू स्कूल में भूखा मत रहना। मैं तेरे टिफिन में उसके लिए भी खाना रख दिया करुँगी।" 
   
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