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विक्रम और बेताल -दास्तान-ए-दोस्ती (कहानी)

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    विक्रम के पापा का स्थानांतरण गोविन्दगढ़  में हो गया था। ग्यारहवीं कक्षा (विज्ञान) में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ था विक्रम। एक सप्ताह पूर्व ग्रीष्मावकाश समाप्त हो गये थे। शहर के हायर सेकेंडरी स्कूल में 12 वीं कक्षा में उसका दाखिला हो गया। हाज़िरी लेते समय कक्षाध्यापक जी ने परम्परागत रूप से नवागंतुक छात्रों से परिचय पूछा तो विक्रम ने भी अपना परिचय दिया- ''मेरा नाम विक्रम शर्मा है। मेरे पापा का ट्रान्सफर नवलगढ़ से यहाँ हो जाने से दो दिन पहले ही इस शहर में आया हूँ।''
  पीरियड ख़त्म होने पर पिछली पंक्ति में बैठा एक लड़का उठकर उसके पास आया- ''हेलो, मेरा नाम बेताल सिंह यादव है। सोचा, विक्रम से तो दोस्ती बनती ही है। मुझसे दोस्ती करोगे?''
   ''हाँ भाई, विक्रम की बेताल से दोस्ती नहीं होगी तो किससे होगी!''- हँसा विक्रम।
  तो इस तरह से विक्रम का सबसे पहला दोस्त बन गया बेताल यादव। बाद में बेताल ने अपना पूरा परिचय देते हुए विक्रम को यह भी बताया कि वह अनुसूचित जाति से है। विक्रम ने सहजता से कहा- ''यार, यह क्या बात हुई? दोस्ती में यह जाति की बात कहाँ आती है! वी आर जस्ट फ्रेंड्स एंड ओनली फ्रेंड्स"
  अच्छे स्वाभाव का था बेताल और इस कारण विक्रम से काफी अच्छी बनती थी उसकी। दोनों दोस्त अब कक्षा में यथासम्भव पास-पास ही बैठते थे और खेल-कूद में भी हमेशा साथ-साथ ही रहते थे। आपसी सम्बोधन 'तुम' से 'तू' पर आ गया था।

   अर्धवार्षिक परीक्षा का परिणाम आया तो विक्रम के कुल प्राप्तांक 72% थे और बेताल ने 47% अंक प्राप्त किये थे। बेताल के विज्ञान व गणित में भी लगभग उत्तीर्णांक ही आये थे। बहुत नर्वस हुआ बेताल अपने परीक्षा-परिणाम से। वह भी विक्रम की तरह ही एन्जिनियरिंग में जाने की ख्वाहिश रखता था। विक्रम ने उसे सान्त्वना दी- "परेशान मत हो यार! अब अधिक मेहनत करना, मैं भी तुझे मदद करूँगा।''
   और उसके बाद सच में ही विक्रम उसकी पढाई में मदद करने लगा।
   बेताल के परीक्षा-परिणाम में वार्षिक परीक्षा में भी कुछ सुधार नहीं हुआ। बोर्ड की परीक्षा होने से 43.5% अंक ही आये उसके। उसके वर्ग के एक साथी, विनोद जीनगर ने उसे समझाया- ''क्यों चिंता करता है बेताल? मुझे तो केवल 42% अंक ही मिले हैं, फिर भी मुझे भरोसा है कि न केवल तेरा, बल्कि मेरा एडमिशन भी एन्जिनियरिंग में आरक्षण कोटे में हो जाएगा। हौंसला रख और RPET (एन्जिनियरिंग की प्रवेश-परीक्षा) की तैयारी कर।''
   विक्रम को यद्यपि 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में 67% मिले थे पर RPET में उसे कुछ अधिक अच्छा रैंक हासिल नहीं हुआ। बेताल का रैंक तो उससे बहुत ज्यादा पीछे था। विक्रम ने निकटस्थ शहर जयपुर में तीन एन्जिनियरिंग कॉलेज में फॉर्म भरे, लेकिन रैंक जनरल श्रेणी के अन्य अभ्यर्थियों से कुछ पीछे होने से उसे इच्छित विषय 'इलेक्ट्रिकल एन्जिनियरिंग' में कहीं भी प्रवेश नहीं मिला। किसी कॉलेज में डॉनेशन देकर पढ़ाने की उसके परिवार की हैसियत नहीं थी और विषय के मामले में वह कोई समझौता नहीं करना चाहता था। उसे सूचना मिल गई थी कि बेताल व विनोद जीनगर, दोनों को आरक्षण कोटे में 'कम्प्यूटर एन्जिनियरिंग' में एक कॉलेज में प्रवेश मिल गया था। अपने-अपने हाल में व्यस्त होने के कारण दोनों मित्रों का संपर्क नहीं हो पा रहा था।

   सात-आठ दिन बाद विक्रम को जानकारी मिली कि जयपुर एन्जिनियरिंग कॉलेज में किसी विद्यार्थी के अन्य किसी ब्रांच में चले जाने के कारण एक सीट इलेक्ट्रिकल की खाली हुई है तो उसने तु्रन्त वहाँ जाकर फॉर्म भर दिया। अगले सप्ताह ही यानी कि 23 मई को इंटरव्यू होना था। निर्धारित समय पर इंटरव्यू देकर विक्रम कक्ष से बाहर निकला और कॉलेज की कैन्टीन में चाय-नाश्ते के लिए गया। क्योंकि अभी कॉलेज में पढ़ाई चल रही थी अतः कैन्टीन में केवल दो लड़के ही बैठे मिले। विक्रम भी चाय का ऑर्डर देकर उनके पास ही एक कुर्सी पर बैठ गया। हाय-हेलो के बाद जब विक्रम ने उनको बताया कि वह इंटरव्यू देकर आया है तो उन्होंने भी कहा कि वह दोनों भी इंटरव्यू देकर आये हैं। दोनों में से एक लड़के ने, जो कुछ अधिक मुखर स्वभाव का था, विक्रम से पूछा- "तुम्हारा RPET में कौन सा रैंक आया था?"
   गोपनीय रखने जैसी बात नहीं लगी विक्रम को सो बिना झिझके अपना रैंक बता दिया। वही लड़का अपने साथी की आँखों में झांक कर नर्वस आवाज़ में बोला- "तो माई डियर, अपना पत्ता तो कट ही गया," फिर उसने विक्रम को बिना उसके पूछे ही बताया, "यार, तुम्हारा तो पूरा चांस है। विश यू गुड लक! हमारा रैंक तो तुमसे बहुत पीछे है। अपने अलावा एक और लड़का इंटरव्यू देने आया था, बस।"
  विक्रम अपने लिए कुछ आश्वस्त हुआ। 

     27 मई को परिणाम निकलना था, अतः विक्रम कॉलेज पहुंचा। कॉलेज के कॉरिडोर में अचानक उसे बेताल मिला। बेताल लपक कर उसकी ओर आया- "अरे विक्रम! तू यहाँ कैसे? यार, मेरा इस कॉलेज में इलेक्ट्रिकल ब्रांच में एडमिशन हो गया है, अभी चार दिन पहले इंटरव्यू दिया था। अब इंटरव्यू तो तू जानता ही है, नाम का था क्योंकि चार लड़कों ने इंटरव्यू दिया था और आरक्षित वर्ग का बन्दा मैं अकेला ही था। अब बता तू कहाँ पढ़ रहा है, क्या इसी कॉलेज में?"
   "अरे नहीं भाई, मुझे तो अभी तक कहीं भी एडमिशन नहीं मिला है। पर यार, तेरा तो किसी कॉलेज में कम्प्यूटर एन्जिनियरिंग में एडमिशन हो गया था न, फिर दुबारा यहाँ कैसे?"-  निराशा में डूबे विक्रम ने अपने मनोभाव छिपाते हुए प्रश्न किया।
   "भाई विक्रम, मुझे कम्प्यूटर में बिलकुल इंट्रेस्ट नहीं आ रहा था, फिर किसी ने बताया कि इलेक्ट्रिकल में बेहतर स्कोप है। इधर अचानक एक सीट इलेक्ट्रिकल में खाली भी हो गई थी सो फॉर्म भर दिया। पर यार तू बता, तेरा रैंक तो PET में बहुत अच्छा था, फिर क्यों नहीं मिला तुझे एडमिशन?"
   "मुझसे ज्यादा अच्छी रैंक वाले कैंडीडेट्स (अभ्यर्थियों) के कारण। छोड़ बेताल यह सब।... तुझे बधाई यहाँ एडमिशन की!- अपनी झुंझलाहट को दबा कर विक्रम बोला। आज पहली बार उसके मन में आरक्षण-सिस्टम व आरक्षित वर्ग के प्रति आक्रोश पैदा हुआ। वह यथाशीघ्र यहाँ से निकल जाना चाहता था।
   "थैंक्स विक्रम, चल फिर....फिर मिलते हैं। 
  विक्रम ने हार कर रेगुलर कॉलेज में थ्री ईयर डिग्री कोर्स (विज्ञान) के प्रथम वर्ष में प्रवेश ले लिया।
   
    इस घटना के बाद विक्रमऔर बेताल कभी-कभी मिल लेते थे पर अनचाहे ही विक्रम मानसिक रूप से बेताल से दूर होता चला गया। बेताल अपने प्रति विक्रम की बेरुखी से अन्जान नहीं था पर सही कारण भी उसकी समझ से बाहर था। उसने कई बार विक्रम को कुरेदा भी पर हर बार वह 'कोई भी तो बात नहीं है यार!'- कह कर वह हँस कर टाल देता।
   विक्रम इस बात को भुला नहीं पा रहा था कि एन्जिनियरिंग में प्रवेश का उसका सुनहरा अवसर बेताल के कारण ही चला गया था। कभी-कभी वह सोचता, बेताल नहीं तो किसी और के कारण भी तो उसे यह भुगतना पड़ सकता था, किन्तु फिर दिमाग में आता कि फिलहाल तो निमित्त बेताल ही बना है न! अपने एक वर्ष के नुक्सान को वह किसी भी तरह से पचा नहीं पा रहा था।
  
   एक वर्ष और निकला। विक्रम ने इस बार और भी अधिक परिश्रम किया, परिणामतः इस बार सभी वैधानिक प्रक्रियाओं के बाद उसे बेताल वाले कॉलेज में ही इलेक्ट्रिकल एन्जिनियरिंग में प्रवेश मिल गया। उसके पापा ने कुछ लोन, वगैरह की व्यवस्था कर उसका दाखिला कॉलेज-हॉस्टल में ही करवा दिया। वह अब एन्जिनियरिंग के प्रथम वर्ष में था जब कि बेताल द्वितीय वर्ष में। एक ही कॉलेज में होने से अब फिर विक्रम और बेताल अक्सर मिल लेते थे,लेकिन वह पहले वाली बात नहीं आ सकी। बेताल खुश था कि विक्रम भी इसी कॉलेज में आ गया है और शायद अब वही पुरानी दोस्ती फिर से परवान चढ़ेगी। कॉलेज का माहौल ...और फिर बेताल तो पहले से ही कभी-कभार पीने का शौकीन था, उसके साथ रहते विक्रम भी कभी-कभी पीने लगा।
  एक दिन देर शाम दोस्तों की मनुहार के चलते विक्रम को थोड़ी ज्यादा हो गई। बेताल ने भी अच्छी मात्रा में ली थी। होश में तो दोनों थे पर सरूर कुछ ज्यादा हो रहा था। बेताल ने आज पूछ ही लिया- "विक्रम! यार तुझे मेरी कसम, बता तो, तू मुझसे इतना खिंचा-खिंचा क्यों रहता है?"
  नशे की झौंक में विक्रम के मन की सारी पीड़ा बाहर उफन आई और इंटरव्यू का सारा वाकया बताने के बाद कह पड़ा कि उसके एक साल की बर्बादी बेताल के कारण हुई है। बेताल को चढ़ी तो थी पर इतनी नहीं कि उसकी संवेदना ही लुप्त हो जाये, बहुत दुःखी हुआ यह जान कर कि विक्रम की तकलीफ का कारण वह बना है।
   उस समय उसके मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला और सब से क्षमा मांग कर चुपचाप कमरे में जा कर सो गया।
   अगले दिन बेताल कॉलेज नहीं गया। विक्रम को पता लगा तो वह उसके कमरे में आया, देखा बेताल अकेला गुमसुम बैठा हुआ था।
   विक्रम को कल की घटना याद थी, बोला- "तूने तो दिल से ले लिया बेताल, मैं तुझे कभी कुछ नहीं कहना चाहता था यार! कल ऐसी हालत में जाने कैसे कह पड़ा वह सब! फिर सोच, तू न होता, किसी और के कारण भी तो मेरा ऐसा नुक्सान हो सकता था। भूल जा यार इस बात को।"
   बुझी निगाहों से उसे देखते, रुआंसे स्वर में कहा बेताल ने- "मुझे माफ़ कर दे विक्रम, मेरे कारण तेरा एक साल बिगड़ गया। मैंने लाभ ज़रूर उठाया है आरक्षण का पर सच कहूँ तो मैं दिल से इस व्यवस्था का विरोधी हूँ।"
   "मिट्टी डाल इन पुरानी बातों पर यार! अब हम इस पर कभी चर्चा नहीं करेंगे। चल, अब तू तैयार हो कर कॉलेज जा, क्लास अटेंड कर।''
   तो इस तरह निपटारा हुआ दोस्ती के बीच की गफ़लतों का और दोनों दोस्तों की ज़िन्दगी सही ढ़र्रे पर चलने लगी।

....चार वर्ष बाद  
  विक्रम अपने कोर्स के अंतिम वर्ष में था और बेताल का एन्जिनियरिंग कोर्स पूरा हो गया था। इस साल एन्जिनियरिंग कर के निकले लड़कों की भरमार थी सो नौकरी मिलना आसान नहीं था। लगभग तीन महीनों की जी-तोड़ कोशिश के बाद बेताल को एक प्राइवेट फैक्ट्री में ओवरसियर का जॉब मिल गया। उधर विक्रम एन्जिनियरिंग कर के निकला तब तक नौकरियों की स्थिति पहले से कुछ बेहतर थी। विक्रम ने खूब मेहनत की थी, परिणामस्वरुप  उसने बहुत अच्छे अंक प्राप्त किये थे और कॉलेज में प्रथम तथा पूरे जिले में द्वितीय रैंक थी उसकी।

   जयपुर में विद्युत विभाग में (सरकारी नौकरी) सहायक एन्जिनियर (A.En.) के दो पदों पर नियुक्ति (जिसमें से बैकलॉग के कारण एक पद अनुसूचित जाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित था) की विज्ञप्ति देख कर विक्रम ने भी आवेदन कर दिया। आवेदन करते समय वह मन में जान रहा था- 'यदि कोई अनुसूचित जाति का लड़का आवेदन करता भी है तो भी उसका चयन हो सकता है बशर्ते अन्य उम्मीदवारों में से कोई एक उम्मीदवार भी मुझसे अधिक अच्छी मेरिट वाला नहीं आये।'
  एक सप्ताह बाद इंटरव्यू होना था जो मात्र औपचारिक था क्योंकि उसके पापा बता रहे थे कि सरकारी विभागों में सामान्यतया मेरिट से ही चयन होता है।
   अक्सर देखा जाता है कि अनहोनी इंसान की सोच के आगे-आगे चलती है। वही हुआ जिसका विक्रम को डर था। विद्युत विभाग के कार्यालय के किसी गोपनीय सूत्र से उसके पापा को जानकारी मिली कि कुल सात उम्मीदवारों ने आवेदन किया था जिनमें से एक उम्मीदवार विक्रम से बेहतर मेरिट वाला था तथा एक अनुसूचित जाति का उम्मीदवार भी था। विक्रम की धुंधली आशा पर पानी फिर चुका था। उसने समझ लिया था कि इस नौकरी में उसके लिए कोई अवसर नहीं रहा है। पापा के बार-बार कहने पर कि इंटरव्यू तो उसे देना ही चाहिए, परिणाम जो भी हो, अनमने मन से वह सबसे आखिर में इंटरव्यू देने गया।
  
   इंटरव्यू के चार दिन बाद जब विक्रम 'रोजगार समाचार' नामक साप्ताहिक में विज्ञापनों को खंगाल रहा था, उसके घर के दरवाज़े की घंटी बजी। दरवाज़ा खोला तो सामने विनोद जीनगर खड़ा था- ''विक्रम, तुम्हारे लिए एक पत्र है। और सुनो, मैं अभी यहाँ रुक नहीं सकूंगा, कुछ ज़रूरी काम से मुझे कहीं जाना है।"
  विक्रम कुछ कहे उसके पहले ही जीनगर चला गया।
  अपने कमरे में जाकर विक्रम ने लिफाफा खोल कर देखा, बेताल का पत्र था। उसने पत्र पढ़ना प्रारम्भ किया-
इन्जिनियर साहब! सबसे पहले तो अपनी नियुक्ति की बधाई स्वीकार करो। आश्चर्य मत कर, मैं अभी यह बात विद्युत विभाग से कन्फर्म कर के आया हूँ। मेरे प्यारे दोस्त, 'विक्रम और बेताल' की कहानी हम पढ़ते रहे हैं न! बेताल विक्रम को अपनी कहानी में उलझा कर उसे लौटने को विवश करता रहता था, लेकिन अंत में वह हार मान कर विक्रम के साथ उसके चाहे अनुसार साधु के पास चला जाता है। तो यार, आज के बेताल ने भी विक्रम को जिता दिया। हाँ दोस्त, इंटरव्यू मेरा भी होना था पर मुझे पता लग गया था कि तूने भी वहाँ आवेदन दिया है तो मैंने फैसला कर लिया कि इंटरव्यू नहीं दूंगा। नतीजा यह रहा कि तेरा और एक और लड़के का चयन हो गया है और आज पोस्टिंग के आदेश भी हो जायेंगे।
  विक्रम, इस तरह से मैंने अपने द्वारा अनजाने में तेरे प्रति किये गए अपराध का प्रायश्चित कर लिया है आज मैं बहुत खुश हूँ। मेरे बारे में मत सोच यार, ओवरसियर तो हूँ न! जब भी अवसर मिलेगाA.En. के लिए फिर से प्रयास करूँगा।‘
   विक्रम पत्र पढ़ रहा था और उसकी आखों से आंसू झरना बन कर बह रहे थे- 'तू तो मन का बहुत बड़ा आदमी निकला रे बेताल, तूने मुझे बहुत छोटा सिद्ध कर दिया। तेरी ऊंचाइयों को तो मैं छू भी नहीं सकता। इतना बड़ा त्याग! तेरा और तेरे जैसे अन्य दलित भाइयों का तो इसमें कोई दोष ही नहीं है, दोषी है तो देश की सत्ता का गलियारा जहाँ बैठे वोट के लोभी राजनेताओं ने यह दूषित आरक्षण-व्यवस्था अभी तक देश पर लाद रखी है। तूने तो प्रायश्चित कर लिया उस अपराध का जो तूने किया ही नहीं था, लेकिन मैं तुझसे कैसे उऋण हो सकूंगा? कितना कोसता रहता था मैं तुझ निरपराध को! मुझे क्षमा कर मेरे अजीज दोस्त!'
... और दूसरे ही पल विक्रम के कदम बेताल के घर की ओर बढ़ चले।
                                                    
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                                                              समाप्त 
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