आज गृहकार्य-सहयोगिनी 'बाई' हमारे घर पर कुछ देरी से आई। शहर के पास ही एक ग्रामीण बस्ती में रहती है वह। मेरी धर्मपत्नी ने देरी का कारण पूछा तो वह अनमनी-सी बोली - 'कईं करूँ मैडम जी, पाणी री घणी इल्लत वेई री ए। हवारे ऊँ हेडपम री लेन म ऊबी री, जद जाअर म्हारो नंबर लाग्यो। ईं खातर देर वेई गी' (क्या करूँ मैडम जी, पानी की बहुत दिक्कत हो रही है। सुबह से हैण्ड-पम्प पर लाइन में खड़ी रही तब जाकर मेरा नम्बर आया, इसीलिए देर हो गई )।
पानी की दिक्कत की बात सामने आने पर सशंक पत्नी ने पूछा- 'तुम लोगों ने शौचालय तो बनवाया है न ?'
बाई ने कहा- 'बणवायो तो है। थोड़ी-घणी मदद बी मिल गी ही' (बनवाया तो है। कुछ मदद भी मिल गई थी )।
अब मेरा ध्यान भी पूरी तरह उनकी बातों की ओर आकर्षित हो चला था।
पत्नी- 'उसमें सफाई के लिए फ्लश की व्यवस्था भी करवाई है ?
फ्लश का मतलब शायद वह समझती थी, बोली '(कशो फलश अर वलश मैडम जी ) किस फ़्लश की बात कर रहे हो आप ? हमारे पानी पीने के तो लाले पड़ रहे हैं तो शौचालय में पानी कहाँ से आएगा ?' (उसकी अपनी बोली में)
और फिर तो वह शुरू हो गई- 'एक छोटा-सा कच्चा शौचालय बनाया है और उसमें एक गड्ढा रख दिया है। वहां से होकर गन्दा पानी बाहर की ओर निकल आता है। इस तरह तो घर के पास गन्दगी और हो जाती है अतः उसका कभी-कभी इस्तेमाल करते हैं और चूँकि सफाई करने वाला कोई नहीं होता (आजकल मेला ढोने का काम कोई नहीं करता ) इसलिए अधिकांशतः पास में ही एकांत में समय-असमय निवृत हो आते हैं। सरकार का नाटक है और कुछ नहीं, सुविधाएँ तो कुछ दी नहीं और शौचालय की बातें करते हैं। कोई आकर गाँव का हाल देखता भी तो नहीं है। प्रधान मंत्री जी उदयपुर आये थे, सुना था, हमारे गाँव आकर देखते न हमारा हाल !'
पत्नी ने कुछ विचलित होकर पूछा- 'क्या सब घरों का यही हाल है ?'
बाई- 'हाँ जी, कुछ दो-चार घरों को छोड़कर जिनकी आर्थिक स्थिति कुछ अच्छी है। यहाँ तक कि कुछ लोगों ने तो अभी तक शौचालय नहीं बनाया है। बनाकर करेंगे भी क्या ?'
आगे उनके बीच क्या बात हुई, पता नहीं चला क्योंकि इस समस्त जानकारी से उद्विग्न होकर मैं अपने कमरे में चला आया था।
मेरे ज्ञान-चक्षु कुछ सक्रिय हो चले थे। कितना बड़ा सच कह गई यह अनपढ़ बाई ! इस 'सच' ने सरकारी लीपापोती को क्या उजागर नहीं कर दिया है ? अभिनेत्री विद्या बालन के द्वारा लम्बे समय तक एक विज्ञापन में कहलवाया जा रहा था- 'जहाँ सोच वहां शौचालय'! लेकिन...क्या सोच से ही स्वच्छ और 'स्मार्ट' बन जायगा हमारा शहर ?
पानी की दिक्कत की बात सामने आने पर सशंक पत्नी ने पूछा- 'तुम लोगों ने शौचालय तो बनवाया है न ?'
बाई ने कहा- 'बणवायो तो है। थोड़ी-घणी मदद बी मिल गी ही' (बनवाया तो है। कुछ मदद भी मिल गई थी )।
अब मेरा ध्यान भी पूरी तरह उनकी बातों की ओर आकर्षित हो चला था।
पत्नी- 'उसमें सफाई के लिए फ्लश की व्यवस्था भी करवाई है ?
फ्लश का मतलब शायद वह समझती थी, बोली '(कशो फलश अर वलश मैडम जी ) किस फ़्लश की बात कर रहे हो आप ? हमारे पानी पीने के तो लाले पड़ रहे हैं तो शौचालय में पानी कहाँ से आएगा ?' (उसकी अपनी बोली में)
और फिर तो वह शुरू हो गई- 'एक छोटा-सा कच्चा शौचालय बनाया है और उसमें एक गड्ढा रख दिया है। वहां से होकर गन्दा पानी बाहर की ओर निकल आता है। इस तरह तो घर के पास गन्दगी और हो जाती है अतः उसका कभी-कभी इस्तेमाल करते हैं और चूँकि सफाई करने वाला कोई नहीं होता (आजकल मेला ढोने का काम कोई नहीं करता ) इसलिए अधिकांशतः पास में ही एकांत में समय-असमय निवृत हो आते हैं। सरकार का नाटक है और कुछ नहीं, सुविधाएँ तो कुछ दी नहीं और शौचालय की बातें करते हैं। कोई आकर गाँव का हाल देखता भी तो नहीं है। प्रधान मंत्री जी उदयपुर आये थे, सुना था, हमारे गाँव आकर देखते न हमारा हाल !'
पत्नी ने कुछ विचलित होकर पूछा- 'क्या सब घरों का यही हाल है ?'
बाई- 'हाँ जी, कुछ दो-चार घरों को छोड़कर जिनकी आर्थिक स्थिति कुछ अच्छी है। यहाँ तक कि कुछ लोगों ने तो अभी तक शौचालय नहीं बनाया है। बनाकर करेंगे भी क्या ?'
आगे उनके बीच क्या बात हुई, पता नहीं चला क्योंकि इस समस्त जानकारी से उद्विग्न होकर मैं अपने कमरे में चला आया था।
मेरे ज्ञान-चक्षु कुछ सक्रिय हो चले थे। कितना बड़ा सच कह गई यह अनपढ़ बाई ! इस 'सच' ने सरकारी लीपापोती को क्या उजागर नहीं कर दिया है ? अभिनेत्री विद्या बालन के द्वारा लम्बे समय तक एक विज्ञापन में कहलवाया जा रहा था- 'जहाँ सोच वहां शौचालय'! लेकिन...क्या सोच से ही स्वच्छ और 'स्मार्ट' बन जायगा हमारा शहर ?
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