जो किशोरवय युवा अभी यौवनावस्था से गुज़र रहे हैं वह इसी काल को जीते हुए और जो इस अवस्था से आगे निकल चुके हैं वह तथा जो बहुत आगे निकल चुके हैं वह भी, कुछ क्षणों के लिए उस काल को जीने का प्रयास करें जिस काल को मैंने इस प्रस्तुत की जा रही कविता में जीया था।…
कक्षा-प्रतिनिधि का चुनाव होने वाला था। रीजनल कॉलेज, अजमेर में प्रथम वर्ष में प्रवेश लिया था मैंने उन दिनों। कक्षा के सहपाठी लड़कों से तो मित्रता (अच्छी पहचान ) लगभग हो चुकी थी, लेकिन लड़कियों से उतना घुलना-मिलना नहीं हो पाया था तब तक। अब चुनाव जीतने के लिए उनके वोट भी तो चाहिए थे, अतः उनकी नज़रों में आने के लिए थोड़ी तुकबंदी कर डाली। दोस्तों के ठहाकों के बीच एक खाली पीरियड में मैंने कक्षा में यह कविता सुना दी। किरण नाम की दो लड़कियों सहित कुल 12 लड़कियां थीं कक्षा में और उन सभी का नाम आप देखेंगे मेरी इस तुकबंदी वाली कविता में (अंडरलाइन वाले शब्द )। ... और मैं चुनाव जीत गया था।
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