मानवीय संवेदनाओं से जुड़े हुए रसों में से ही कोई एक रस शब्दों का आकार लेकर कविता को जन्म देता है। मेरी युवावस्था में इस रचना ने भी कुछ ऐसे ही जन्म लिया था। ख़ामोशी में रहने वाले, घुट-घुट आहें भरने वाले, नफ़रत सबसे करने वाले, प्यार तुझे सिखला दूँगा। क्यों चाह तुझे है नफ़रत की, कब तूने खुद को जाना है? तू क्या है, तुझमें क्या है, तुझको मैंने पहचाना है। होठों पर उल्लास बहुत है, आँखों में विश्वास बहुत है, तेरे दिल में प्यार बहुत है, यह भी मैं दिखला दूँगा। ‘‘ख़ामोशी में … ‘’ गर थोड़ा साहस तुझमें है, दुनिया जो चाहे कहने दे, पलकों की कोरों से अपनी, यों जीवन-...