इन कीड़ों का कोई ईमान-धर्म नहीं होता। अब कल का वाक़या बताऊं आपको। श्रीमती जी ने आदेश दिया कि करेले सब्जी बनाने के लिए काट लो। बैठ गया करेले ले कर काटने के लिए। एक काटा, दूसरा काटा और तीसरे की अधफाड़ करते ही देखा तो अन्दर एक कीड़ा बिराजमान था। सोचा, इतने कड़वे करेले में कीड़ा कैसे हो सकता है, लेकिन वह जो भी था, हिल रहा था तो कीड़ा ही होगा न! करेले के डंठल से कीड़े को करेले में बने उसके बंगले से धीरे से, लेकिन जबरन निकाला। नामाकूल अपने बंगले से बड़ी मुश्किल से निकला। बाद में जब देखा तो पाया कि उसने अपने बंगले के आसपास की जगह को गन्दा और तहस-नहस कर डाला था। कीड़ा ही तो था...और करता भी क्या वह!