विपुल से विदा ले कर अर्चना घर पहुँची। दोपहर हो गई थी। उसके मम्मी-पापा लीविंग रूम में बैठे थे। उसकी मम्मी एक पत्रिका पढ़ रही थी और पापा किसी केस को देखने में व्यस्त थे। वह सीधी पापा के पास गई और अपने हाथ में पकड़ा स्टाम्प पेपर उनके सामने रख दिया। “क्या है यह? कहाँ गई थी तू?”, कहते हुए योगेश्वर प्रसाद ने स्टाम्प पेपर को उठा कर ध्यान से देखा और पुनः बोले- "यह क्या है अर्चू? तू कोर्ट मैरिज कर रही है?... देख लो शारदा, अपनी बेटी की करतूत!" शारदा ने चौंक कर अपने पति की ओर देखा और फिर अर्चना की तरफ आश्चर्य से देखने लगीं। "पापा, मैं कोर्ट से आ रही हूँ। आप मेरी शादी आशीष से करना चाहते हैं, जबकि विपुल उससे कहीं अधिक अच्छा लड़का है। वह पढ़ने में अच्छा है, स्वभाव से भी अच्छा है और एक चरित्रवान लड़का है। वह गरीब घर से है पापा, पर इसमें उसका तो दोष नहीं है न! आशीष पैसे वाले घर से सम्बन्ध अवश्य रखता है, किन्तु व्यक्तित्व में वह विपुल के आगे कहीं नहीं ठहरता। और फिर पापा, मेरी तक़दीर तो आपने नहीं लिखी है न? आपने अपने हिसाब से मेरी शादी पैसे वाले घराने में कर भी दी और फिर भी