सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

कोरोना पीड़ित (लघुकथा)


     
       लॉक डाउन में दो घंटे की सरकारी छूट थी सो कुछ खरीदारी करने मैं बाज़ार की ओर निकला। राह में एक छोटा-सा मन्दिर पड़ता था। वहाँ नज़र गई तो देखा, एक आदमी प्रार्थना में मग्न बैठा था। दर्शन करने की इच्छा से मैं भीतर गया तो अचानक वह व्यक्ति भगवान के सामने रोते हुए गिड़गिड़ाने लगा- "मेरे प्रभु, मेरे मालिक, दया करो मुझ पर! दो दिन से भरपेट नहीं खाया है। कितने ही दिनों से धन्धा चौपट हो गया है। अब तो कोरोना को ख़त्म करो दयालु ! मैं अपनी पहले दिन की पूरी कमाई आपके चरणों में अर्पित...।"
   मेरे मन में उसकी सहायता करने की इच्छा बलवती हुई, उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा- "भैया, शांत हो जाओ।"
  वह  कातर दृष्टि से मेरी ओर देखता हुआ उठ खड़ा हुआ। मैंने अपना वॉलेट निकाल कर 100 रूपये का एक नोट उसकी ओर बढ़ा दिया। उसने वह नोट भगवान के चरणों में रख दिया और हाथ जोड़ कर बोला-  "मेरी पहली कमाई स्वीकार करो प्रभु!"
  उसकी निष्ठा से प्रभावित हो कर मैंने एक और नोट उसे दिया और पूछा- " एक दिन में कितना कमा लेते हो भाई?"
  "कुछ निश्चित नहीं है। जितना भाग्य में होता है, मिल जाता है।"
 "ओह! क्या काम करते हो?"
 "आपको सुन कर अच्छा नहीं लगेगा साहब!... मैं चोरी करता हूँ, जेब काटता हूँ और ठगी करता हूँ।" -उसने जवाब दिया और मेरे पाँव छूकर चला गया।
  मुझे समझ में आ गया कि मेरे कदमों की आहट सुनते ही रोने का अभिनय करना उसकी ठग-विद्या का ही हिस्सा था, फिर भी उसके बेबाक़ जवाब ने मुझे पुनः प्रभावित किया और बरबस ही मैं मुस्करा दिया।
   भगवान को हाथ जोड़ कर मैं भी मंदिर से बाहर निकल आया और किराने की दुकान पर सामान लेने पहुँचा।  सामान का रु. 1800/- का बिल चुकाने के लिए जेब में हाथ डाला तो सिर पकड़ कर रह गया।... मन्दिर वाला बन्दा अपना काम कर गया था।
                                                               
                                                                   *********

टिप्पणियाँ

  1. ऑह!!!!!! स्तब्ध कर देने वाली घटना ! वाक् चातुर्य से मदद भी और जेब पर भी हाथ साफ !OMG, ऐसे प्रपंची लोगों की वजह से इंसानियत शर्मशार होती है औरलो लीग सही में जरूरतमंद हैं ,उनकी मदद से भी अच्छे लोग हाथ खीँच लेते हैं |एकदम कसी लघुकथा या संस्मरण !!!!!

    जवाब देंहटाएं
  2. संस्मरण नहीं, लघुकथा है रेणु जी! कथा आपके लिए रुचिकर रही, अच्छा लगा... आभार आपका!

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"ऐसा क्यों" (लघुकथा)

                                   “Mother’s day” के नाम से मनाये जा रहे इस पुनीत पर्व पर मेरी यह अति-लघु लघुकथा समर्पित है समस्त माताओं को और विशेष रूप से उन बालिकाओं को जो क्रूर हैवानों की हवस का शिकार हो कर कभी माँ नहीं बन पाईं, असमय ही काल-कवलित हो गईं। ‘ऐसा क्यों’ आकाश में उड़ रही दो चीलों में से एक जो भूख से बिलबिला रही थी, धरती पर पड़े मानव-शरीर के कुछ लोथड़ों को देख कर नीचे लपकी। उन लोथड़ों के निकट पहुँचने पर उन्हें छुए बिना ही वह वापस अपनी मित्र चील के पास आकाश में लौट आई। मित्र चील ने पूछा- “क्या हुआ,  तुमने कुछ खाया क्यों नहीं ?” “वह खाने योग्य नहीं था।”- पहली चील ने जवाब दिया। “ऐसा क्यों?” “मांस के वह लोथड़े किसी बलात्कारी के शरीर के थे।” -उस चील की आँखों में घृणा थी।              **********

व्यामोह (कहानी)

                                          (1) पहाड़ियों से घिरे हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में एक छोटा सा, खूबसूरत और मशहूर गांव है ' मलाणा ' । कहा जाता है कि दुनिया को सबसे पहला लोकतंत्र वहीं से मिला था। उस गाँव में दो बहनें, माया और विभा रहती थीं। अपने पिता को अपने बचपन में ही खो चुकी दोनों बहनों को माँ सुनीता ने बहुत लाड़-प्यार से पाला था। आर्थिक रूप से सक्षम परिवार की सदस्य होने के कारण दोनों बहनों को अभी तक किसी भी प्रकार के अभाव से रूबरू नहीं होना पड़ा था। । गाँव में दोनों बहनें सबके आकर्षण का केंद्र थीं। शान्त स्वभाव की अठारह वर्षीया माया अपनी अद्भुत सुंदरता और दीप्तिमान मुस्कान के लिए जानी जाती थी, जबकि माया से दो वर्ष छोटी, किसी भी चुनौती से पीछे नहीं हटने वाली विभा चंचलता का पर्याय थी। रात और दिन की तरह दोनों भिन्न थीं, लेकिन उनका बंधन अटूट था। जीवन्तता से भरी-पूरी माया की हँसी गाँव वालों के कानों में संगीत की तरह गूंजती थी। गाँव में सबकी चहेती युवतियाँ थीं वह दोनों। उनकी सर्वप्रियता इसलिए भी थी कि पढ़ने-लिखने में भी वह अपने सहपाठियों से दो कदम आगे रहती थीं।  इस छोटे

पुरानी हवेली (कहानी)

   जहाँ तक मुझे स्मरण है, यह मेरी चौथी भुतहा (हॉरर) कहानी है। भुतहा विषय मेरी रुचि के अनुकूल नहीं है, किन्तु एक पाठक-वर्ग की पसंद मुझे कभी-कभार इस ओर प्रेरित करती है। अतः उस विशेष पाठक-वर्ग की पसंद का सम्मान करते हुए मैं अपनी यह कहानी 'पुरानी हवेली' प्रस्तुत कर रहा हूँ। पुरानी हवेली                                                     मान्या रात को सोने का प्रयास कर रही थी कि उसकी दीदी चन्द्रकला उसके कमरे में आ कर पलंग पर उसके पास बैठ गई। चन्द्रकला अपनी छोटी बहन को बहुत प्यार करती थी और अक्सर रात को उसके सिरहाने के पास आ कर बैठ जाती थी। वह मान्या से कुछ देर बात करती, उसका सिर सहलाती और फिर उसे नींद आ जाने के बाद उठ कर चली जाती थी।  मान्या दक्षिण दिशा वाली सड़क के अन्तिम छोर पर स्थित पुरानी हवेली को देखना चाहती थी। ऐसी अफवाह थी कि इसमें भूतों का साया है। रात के वक्त उस हवेली के अंदर से आती अजीब आवाज़ों, टिमटिमाती रोशनी और चलती हुई आकृतियों की कहानियाँ उसने अपनी सहेली के मुँह से सुनी थीं। आज उसने अपनी दीदी से इसी बारे में बात की- “जीजी, उस हवेली का क्या रहस्य है? कई दिनों से सुन रह