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पतनोन्मुख राजनीति

          हमारे देश भारत के प्रधान मंत्री, जो इस गौरवशाली राष्ट्र की जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं, के लिए अपशब्द कहने वाले लोग अच्छे खानदान के नहीं हो सकते। शासन की यह आश्चर्यजनक व विस्मयकारी उदारता है कि ऐसे लोगों के अपराधों को निरन्तर सहन किये जा रहा है। आज से दस वर्ष पहले के दिनों में ऐसी गन्दगी सत्ताधारियों का विरोध करने वाले किसी भी विपक्षी ने कभी नहीं की थी, क्योंकि उस समय के सत्ताधारी आज की तरह उदार नहीं थे। स्व. श्रीमती इन्दिरा गांधी, जिनका मैं भी प्रबल प्रशंसक रहा हूँ, की उनके राजनैतिक विरोधी स्व. अटल बिहारी बाजपेयी ने प्रशंसा करते हुए उन्हें 'देवी दुर्गा' कह कर सम्बोधित किया था। छिप गया है राजनीति का वह उज्ज्वल चेहरा आज के घिनौने राजनीतिज्ञों के अपवित्र अस्तित्व की ओट में। ऐसे निरंकुश नराधमों को देश की प्रबुद्ध जनता सिरे से अस्वीकार कर देगी, यह बात सम्भवतः वह एवं उनके पिछलग्गू नहीं जान रहे। जनता तो उन्हें दंडित करेगी ही, किन्तु उसके पहले कानून को भी अपनी आँख खोलनी चाहिए। हाँ, कानून को सत्य की परख करते समय यह नहीं देखना चाहिए कि अपराधी सत्तासीन दल का है या विपक्ष का। 

अनमोल उपहार

आज तक समझ नहीं सका हूँ कि मात्र एक साल पहले जो प्राणी इस दुनिया में आया है, कभी रो कर, कभी चिल्ला कर, कभी हाथ-पैर पटक कर कैसे अपनी बात वह हम सब से मनवा लेता है? कैसे मान लेता है कि जिस घर में वह अवतरित हुआ है, उस पर उसका असीमित अधिकार है? अभी हाल ही उसका प्रथम जन्म-दिवस हम सब ने मनाया, तो यही प्रश्न मेरे मस्तिष्क में उभरे हैं। मैं बात कर रहा हूँ अपने एक वर्षीय दौहित्र (नाती) चि. अथर्व की। जब उसकी इच्छा होती है, मेरी बाँहों में आने को लपक पड़ता है और जब निकलने की इच्छा होती है तो लाख थामो उसे, दोनों हाथ ऊँचे कर इस तरह लटक जाता है कि सम्हालना मुश्किल पड़ जाता है। जब भी उसका मूड होता है, अपनी मम्मी या पापा, जिस किसी के भी पास वह हो, हाथ आगे बढ़ा कर मेरे पास आ जाता है और जब उसकी इच्छा नहीं होती, तो कितनी भी चिरौरी करूँ उसकी, चेहरा और हाथ दूसरी तरफ घुमा देता है... और मैं हूँ कि उसके द्वारा इस तरह बारम्बार की गई इंसल्ट को हर बार भूल जाता हूँ और उसे अपने सीने से लगाने को आतुर हो उठता हूँ।  जो भी शब्द वह बोलता है, मैंने विभिन्न शब्दकोशों में ढूंढने की कोशिश की, मगर निदान नहीं पा सका हूँ। बस, समझ

अधिक प्यारा कौन?

मेरे एक मित्र ने मुझसे एक नितान्त व्यक्तिगत प्रश्न पूछ लिया- "तुम लोग अपने बेटे से अधिक प्यार करते हो या बिटिया से?" "यह कैसा प्रश्न है यार? हम तो दोनों से बराबर प्यार करते हैं।" -मैंने बेबाकी से जवाब दिया।  "फिर भी कुछ तो फर्क होगा, सही-सही बताओ न दोस्त!" "सही जानना चाहते हो तो सुनो! हम अपनी बिटिया को बेटे से अधिक प्यार करते हैं और..." "और...और क्या?" -मित्र के चेहरे पर संतोष की मुस्कान थी। उन्हें शायद अपना प्रश्न पूछना सार्थक लगा था। "और अपने बेटे को बिटिया से अधिक प्यार करते हैं।" -मैंने अपना वाक्य पूरा किया।  सुन कर मित्रवर असहज हो उठे और अनायास ही वार्तालाप का रुख राजनीति की तरफ कर लिया।  *****

बेरोज़गारी

     यह बीजेपी वाले खुद तो ढंग से लोगों को रोज़गार दे नहीं पा रहे हैं और जो लोग इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं, उनकी आलोचना करते रहते हैं। अब देखिये न, इस निराशा के चलते एक पार्टी के सैकड़ों लोग केवल एक आदमी को रोज़गार दिलाने के लिए उत्तर दिशा से दक्षिण दिशा तक गली-गली में पैदल चल कर अपने पाँव रगड़ रहे हैं। इसी तरह एक और पार्टी के कर्ता-धर्ता अपनी पुरानी रोज़ी-रोटी छिन जाने के डर से नया रोज़गार पाने के लिए गुजरात की ख़ाक छान रहे हैं। इन्हें रोज़गार मिलेगा या नहीं, यह तो ईश्वर ही जाने, किन्तु बेचारे कोशिश तो कर ही रहे हैं न! इनकी मदद न करें तो न सही, धिक्कारें तो नहीं 😏 । *****

क्या ईश्वर है?

क्या ईश्वर की सत्ता और उसके अस्तित्व के प्रति मन में संदेह रखना बुद्धि का परिचायक है? ईश्वर की सत्ता को नकारने वाला, कुतर्क युक्त ज्ञानाधिक्यता से ग्रस्त व्यक्ति वस्तुतः कहीं निरा जड़मति तो नहीं होता? आइये, विचार करें इस बिंदु पर।  मैं कोई नयी बात बताने नहीं जा रहा, केवल उपरोक्त विषय पर अपने विचार व्यक्त करना चाहता हूँ। हम जीव की उत्पत्ति से विचार करना प्रारम्भ करेंगे। इसे समझने के लिए हम मनुष्य का ही दृष्टान्त लेते हैं।  एक डिम्बाणु व एक शुक्राणु के संयोग से मानव की उत्पत्ति होती है। बाहरी संसार से पृथक, माता के गर्भ में एक नया जीवन प्रारम्भ होता है। जीव विज्ञान उसके विकास को वैज्ञानिक रूप से परिभाषित तो करता है, किन्तु जीवन प्रारम्भ होने के साथ भ्रूण का बनना और उससे शिशु के उद्भव की प्रक्रिया जितनी जटिल होती है, इसे पूर्णरूपेण स्पष्ट नहीं कर सकता। शिशु का रूप लेते समय विभिन्न अंगों की उत्पत्ति व उनका विकास प्रकृति का गूढ़ रहस्य है। शिशु के हाथ वाले स्थान पर हाथ निर्मित होते हैं व पाँव वाले स्थान पर पाँव। आँखें, कान व नाक भी चेहरे पर ही बनते हैं, किसी अन्य स्थान पर नहीं। यदि प्राणी जगत

संवेदना

   कदम-कदम पर जब हम अपने चारों ओर एक-दूसरे को लूटने-खसोटने की प्रवृत्ति देख रहे हैं, तो ऐसे में इस तरह के दृष्टान्त गर्मी की कड़ी धूप में आकाश में अचानक छा गये घनेरे बादल से मिलने वाले सुकून का अहसास कराते हैं। मैं चाहूँगा कि पाठक मेरा मंतव्य समझने के लिए सन्दर्भ के रूप में अख़बार से मेरे द्वारा लिए संलग्न चित्र में उपलब्ध तथ्य का अवलोकन करें। एक ओर वह इन्सान है, जिसने एक व्यक्ति के देहान्त के बाद उससे अस्सी हज़ार रुपये में गिरवी लिये मकान पर अपना अधिकार कर उसकी पत्नी सोनिया वाघेला को परिवार सहित सड़क पर  बेसहारा भटकने के लिए छोड़ दिया और दूसरी ओर वह दिनेश भाई, जिन्होंने उस पीड़ित महिला की स्थिति जान कर अपनी संस्था एवं वाघेला-समाज के लोगों की मदद से सेवाभावी लोगों से चन्दा एकत्र कर आवश्यक धन जुटाया और उस परिवार का  घर वापस दिलवाया। धन्य है यह महात्मा, जिसने अपने नेतृत्व में अन्य सहयोगियों को भी मदद के लिए उत्साहित कर यह पुण्य कार्य किया।  सोनिया बेन घरबदर होने के बाद छः माह से फुटपाथ पर रह कर कबाड़ बीन कर अपने चार बच्चों के साथ गुज़र-बसर कर रही थी। इस लम्बी अवधि में कई और लोग भी उस महिला के हा

ओमिक्रॉन

             कितना सुन्दर नाम है 'ओमिक्रॉन'! पढ़-सुन कर लगता है, जैसे किसी अच्छे ब्रैण्ड का मोबाइल या कम्प्यूटर हो, लेकिन कम्बख़्त है यह एक दुखदायी वायरस!... बेड़ा गर्क हो इस मुँहजले बहरूपिये जीवाणु का😞😠! *****

पड़ोसी की बदहाली (व्यंग्य लेख)

           पता नहीं, आप क्रिकेट के मैदान में रन कैसे बना लेते थे इमरान साहब! सियासत के मैदान पर तो आप लगातार क्लीन बोल्ड हो रहे हो। वैसे तो आपके मुल्क के अभी तक के सभी हुक्मरान उल्टी खोपड़ी के ही देखने में आए हैं। आप लोगों की हालत ऐसे आदमी जैसी है जिसके पास एक बीवी को खिलाने की औकात नहीं है और दो-तीन निकाह के लिये उतावला रहता है। तो, बड़े मियां, मानोगे मेरी एक सलाह? मौके का फायदा उठा कर ज़बरदस्ती कब्जाया POK लौटा दो हमारे भारत को। वैसे भी कड़की भुगत रहा इन्सान अपने घर की चीजें बेच कर अपनी ज़रूरतें पूरी करने को मजबूर हो जाता है। ... और फिर POK तो आपका अपना माल भी नहीं है, देर-सवेर हम वापस ले ही लेंगे आपसे। एक बात और कहूँ आप बुरा न मानें तो! देखिये, अमेरिका ने आपको घास डालनी बन्द कर दी है और आपको भी अच्छे-से पता है कि आपका वो गोद लिया पापा है न, क्या नाम है उसका, हाँ याद आया, 'चीन', तो वह तो मतलब का यार है आपका।...अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा आपके लिए! भुखमरी के आपके इन हालात में मैं आपको बमुश्किल दो-तीन हज़ार रुपये की अदद मदद कर सकता हूँ। सौ-पाँचसौ की बढ़ोतरी और भी करता, मगर क्या करूँ पें

'मेरी दूसरी रोटी?'

                         आज बहुत परेशान हूँ मैं। कल तक मैं दो चपाती सुबह और एक चपाती शाम को खाता था। आज सुबह मेरी प्लेट में एक चपाती ही रखी गई। चपाती ख़त्म कर ली तो मैंने दूसरी की मांग की। पत्नी जी ने साफ़ इन्कार कर दिया, कहने लगीं- "खाना सुबह-शाम मैं बनाती हूँ। आपसे इतना भी नहीं होता कि बर्तन मांजने और झाड़ू-पौंछा में ही कुछ मदद कर दो। अब आपको दोनों समय गुज़ारे लायक मात्र एक-एक रोटी ही मिलेगी।"   बची हुई सब्ज़ी ख़त्म की और हाथ धो कर उठ खड़ा हुआ। सोच रहा हूँ कि श्रीमती जी मेरी  व्यस्तता और ज़िम्मेदारियों को क्यों नहीं समझतीं। एक तरफ साहित्य की सेवा में कुछ अर्पण करना तो दूसरी तरफ फेसबुक और व्हाट्सएप्प से सम्बंधित ज़िम्मेदारियाँ निभाना। अकेली जान, आखिर क्या-क्या करूँ मैं? वह जानती हैं कि सुबह से रात तक हर समय मोबाइल और कंप्यूटर में सिर खपाता रहता हूँ, फिर भी उनका मन नहीं पसीजता।     मित्रों! आपके सिवा और कौन है, जिसे मैं अपना दुखड़ा सुनाऊँ? आप ही बताइये, आपका यह निरीह मित्र क्या करे? सुबह की मेरी दूसरी रोटी का जुगाड़ कैसे हो? पत्नी जी कोरोना के भय से मदद के लिए मेड नहीं रख पा रही हैं, इस

'नकली दवा के नासमझ निर्माताओं- एक उद्बोधन'

                                                                        नकली दवा के नासमझ निर्माताओं,   निवेदन है कि सिरदर्द या छोटी-मोटी अन्य बीमारियों के लिए तुम लोग नकली दवा बना कर बाज़ार में बिकवा देते हो और कई स्तरों पर कमीशन बाँट कर अपनी जेबें लबालब भर लेते हो, यहाँ तक तो फिर भी चल जाता है, किन्तु कृपा कर के गम्भीर बीमारियों के मामलों में जनता पर थोड़ा रहम किया करो। सोचो भाई, नकली दवा या इंजेक्शन का इस्तेमाल करने से कोई काल के गाल में समा जायगा तो उसके परिवार पर क्या गुज़रेगी? यदि घर में वह इकलौता कमाने वाला हुआ तब तो उसके समूचे परिवार की बर्बादी निश्चित हो जाएगी न! सोचो भाई सोचो, अगर तुम्हारी नकली ड्रग से किसी मासूम की जान चली गई तो उसकी माँ की आँखों से बह रहे आँसुओं को कौन सुखा पायेगा? उसके पिता की बेबस निगाहों को तसल्ली कौन देगा? उसकी बहन किसके हाथ में राखी बांधेगी? यदि तुम्हारे ही  मासूम बच्चे की जान ऐसी ही किसी ड्रग के प्रयोग से चली गई तो तुम पर क्या बीतेगी?  मैंने तो यहाँ तक सुना है कि पूरे विश्व में प्रलय ला रही कोरोना महामारी के इस जटिल समय में तुम लोग रेमडेसिविर और वैक्सीन

'रात्रि-कर्फ्यू'

                                                                      हमारे देश के कुछ प्रांतों के कुछ शहरों में कोरोना में हो रही बढ़ोतरी के कारण रात्रि का कर्फ्यू लगाया गया है। नहीं समझ में आ रहा कि रात्रि-कर्फ्यू का औचित्य क्या है? अब कर्फ्यू है तो आधी रात को बाहर जा कर देख भी तो नहीं सकते कि कौन-कौन सी दुकानें, सब्जी मंडियाँ व सिनेमा हॉल रात-भर खुले रहने लगे हैं या फिर लोग झुण्ड बना कर सड़कों पर कीर्तन कर रहे हैं। सरकार या प्रशासन, कोई भी जनता को इस रात्रि-कर्फ्यू का औचित्य या उपयोगिता नहीं बता रहा है।     जैसा कि टीवी में देखते हैं, दिन के समय पूरे देश में सड़कों पर, सब्जी मंडियों में और बाज़ारों में लोगों की रेलमपेल लगी रहती है। न तो लोगों के मध्य दो गज की दूरी होती है और न हर शख़्स ने मास्क पहना हुआ होता है। प्रशासन यह देख नहीं पाता, इसे रोक नहीं पाता। प्रशासन को लगता है, हमारे देश की जनता समझदार है, स्व-अनुशासित है। प्रशासन की इसमें शायद कोई ग़लती नहीं है क्योंकि यह देखने के लिए कि कोई कर्फ्यू तोड़ तो नहीं रहा है, वह रात को जागता है, परिणामतः दिन में उसे सोना पड़ता है। दिन-प्रतिदिन कोर

'KBC - एक हास्यान्वेषण'

                                                                 KBC के एपिसोड्स का गहन अध्ययन करने के बाद निष्कर्ष:-  1) जया बच्चन इन दिनों बहुत खुश नज़र आ रही हैं। सम्भवतः इसलिए कि KBC में इस बार कोरोना-काल के चलते महानायक अमिताभ बच्चन व महिला प्रतिभागी परस्पर गले नहीं लग पा रहे हैं 😜 ।                                                                        *********  2) KBC में हॉट सीट पर आने वाले कई प्रतिभागी या तो उच्च आदर्शों वाले व त्याग और सद्भावना की प्रतिमूर्ति हुआ करते हैं जो अपने द्वारा जीती गई राशि का अधिकांश भाग परोपकार में लगाने का निश्चय किये होते हैं या फिर अपनी आर्थिक समस्याओं से इतना ग्रसित होते हैं 😜  कि न केवल अमिताभ जी की सहानुभूति का लाभ पाते हैं, अपितु कुछ भोले दर्शक भी चाहने लगते हैं कि वह वहाँ से अच्छी राशि ले कर जाएँ।                                                                         ********* 3) इस सीजन में अभी तक में केवल महिलाएँ करोड़पति बनी हैं। सम्भवतः पुरुष-वर्ग बॉर्नविटा खा कर नहीं आता 😜 ।                                                           

यह कैसी बेबसी?

        कृपया इस पोस्ट को पूरी पढ़ें, आपके पास समय नहीं हो तो भी पढ़ें। ईश्वर करे आप या आपके परिवार का सामना कोरोना से नहीं हो, क्योंकि यदि ऐसा हो गया तो आप की रक्षा करने वाला ईश्वर के अलावा कोई भी नहीं है। बड़े-बड़े दावे करने वाली सरकार के किसी भी नेता के पास है कोई जवाब इस बात का कि जब इस पोस्ट के एक प्रभावशाली पत्रकार जैसे विशिष्ट नागरिक को कोरोना की जांच व इलाज के लिए यूँ ठोकरें खा कर भी निराशा हाथ लगी, तो एक सामान्य नागरिक का क्या हश्र होता होगा? सरकार ने ईश्वर व आप पर भरोसा कर के लॉक डाउन को कुछ पाबंदियों के साथ हटाया है क्योंकि शायद लॉक डाउन जारी रखने में सरकार कई कारणों से सक्षम नहीं है। लॉक डाउन हटने के बाद की घर से बाहर वाली दुनिया के हालात डराने वाले हैं। हम सब देख रहे हैं कि आवश्यक पाबन्दियों की किस तरह से धज्जियाँ उड़ रही हैं। इसी कारण इस एक सप्ताह में ही कोरोना पॉज़िटिव मामलों में ज़बरदस्त इजाफ़ा हुआ है। अब आपको यदि सुरक्षित रहना है तो आप और केवल आप ही स्वयं को सुरक्षित रख सकते हैं। कई मामलों में झूठ कहने के लिए बदनाम अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने भी यह तो सही ही कहा है कि भार

'नई चुनौती'

                                                                  अभी-अभी की ताज़ा खबर है कि लद्दाख में भारतीय व चीनी सैनिकों के पीछे हटने की प्रक्रिया के दौरान हुई एक झड़प में हमारी सेना का एक अफ़सर तथा दो सैनिक शहीद हो गये हैं। एक ओर दोनों देशों के फौजी उच्चाधिकारियों के मध्य स्थिति को सामान्य बनाने की प्रक्रिया के लिए बातचीत हो रही है वहीं दूसरी ओर लद्दाख में इस तरह की दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना होना चिंता का विषय है।    हमारा शान्तिप्रिय देश जहाँ एक ओर कोरोना के कारण उत्पन्न हुई विषम परिस्थितियों से जूझ रहा है तो दूसरी ओर सीमाओं पर विस्तारवादी चीन और आतंकपोषी पाकिस्तान जैसे कुटिल दुश्मनों के साथ एक नया नाम नेपाल का भी जुड़ गया है। वह नेपाल, जिसकी संस्कृति हमारे देश के अधिक निकट की रही है, गुमराह हो कर सम्भवतः चीन की शह पर ही हमें आँखें दिखाने लगा है।    स्थिति गम्भीर होती जा रही है। हमने देश के तीन सपूतों को खो दिया है। राजनैतिक स्तर पर हमारी सरकार व सीमा पर डटी हमारी बहादुर सेना, दोनों ही, स्थिति के समाधान के लिए मोर्चे पर डटी हुई हैं। अब हमें अपने स्तर पर यह सोचना चाहिए कि हम अपनी

तुम क्यों चले गये?

   टीवी में कहा जा रहा है कि अभी वर्षा हो रही है, लेकिन यह वर्षा नहीं है। यह तो आसमान रो रहा है क्योंकि तुम अपनी दीर्घ और अंतिम यात्रा पर जा रहे हो।   तुम ने यह निर्णय क्यों लिया, यह बताने के लिए तुम अब इस दुनिया में नहीं हो, लेकिन यह रहस्य लम्बे समय तक रहस्य नहीं रहेगा। कोई यूँ ही ऐसा कठोर निर्णय नहीं ले लेता। बहुत मुश्किल होता है अपने परिवार को बिलखता छोड़ कर यूँ चले जाने का निश्चय कर लेना, अपने लाखों प्रशंसकों को निराश छोड़ कर चले जाना। अपने सपनों को पूरा होते देखने का इन्तज़ार न कर किन परिस्थितियों के कारण तुम इस खूबसूरत दुनिया को छोड़ कर चले गये? आखिर इसके पीछे कुछ तो कारण रहा होगा सुशांत? अच्छा होता तुम बता कर जाते। तुम्हारे जाने के बाद कई लोग दर्द के, तो कई लोग घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं, किन्तु एक बात तो सभी लोग मान रहे हैं कि तुम एक प्रतिभाशाली अभिनेता मात्र नहीं थे, तुम एक बेहतरीन इंसान भी थे।   कुछ तो विपरीत स्थितियाँ रही ही होंगी कि पर्याप्त काम मिलने के बावज़ूद तुम्हें ऐसा कठोर निर्णय लेना पड़ा। रुपहले परदे के पीछे के घिनौने सच को उजागर करते हुए इंडस्ट्री की बोल्ड अभिनेत्र

'वह मानव तो नहीं था...'

        मेरे एक मित्र का अभी फोन आया, बोला- "भई, केरल में गर्भवती हथिनी के साथ इतनी भयङ्कर वारदात हो गई और आपने अभी तक इस विषय में कुछ भी नहीं लिखा? न ब्लॉग पर, न प्रतिलिपि पर और न ही फेसबुक पर! आप तो हर तरह के विषयों पर लिखा करते हो।   कैसे हो आजकल आप? आपका स्वास्थ्य तो ठीक है न?"   प्रिय मित्रों! आप ही बताएँ, क्या जवाब देता मैं उन्हें?   मेरे मित्र ने सही कहा है। मैंने मनुष्यों के विषय में लिखा है तो नरपिशाचों पर भी लिखा है, किन्तु उस लाचार और निरीह मूक प्राणी के विषय में लिखने में मेरी लेखन-क्षमता अपंग हो रही है। माँ सरस्वती मेरी लेखनी में आने को उद्यत नहीं हैं।... सृष्टिकर्ता ने स्वर्ग में देवता, पाताल में राक्षस और पृथ्वी पर मनुष्य व पशु-पक्षियों की रचना की है (यह बात पृथक है कि पृथ्वी पर यदा-कदा देवता तो कई बार राक्षस (नरपिशाच) भी दिखाई दे जाते हैं)। मैं समझ नहीं पा रहा कि विस्फोटक भरा अनानास खिला कर उस निरीह हथिनी के प्राण लेने वाले उस अधमतम अस्तित्व को ईश्वर ने किस लोक में रचा और इस पृथ्वी पर क्योंकर भेजा? ऐसे नारकीय जीवों की रचना करना ही क्या अब ईश्वर का काम

कोरोना पर विजय

   कोरोना से कैसे जीत सकेंगे ?.... शासन को मेरा सुझाव - मुख्य बिन्दु :- 1) चिकित्सकों व अन्य स्वास्थ्य-कर्मियों तथा पुलिस-कर्मियों को सुरक्षित रखने के लिए उन्हें सभी उपकरण व सुविधाएँ दी जाएँ क्योंकि एक चिकित्सक सौ व्यक्तियों को व एक पुलिस-कर्मी दस व्यक्तियों को संक्रमण से बचा सकता है। यह दोनों वर्ग जी-जान से अपने कार्य-क्षेत्र में जूझ रहे हैं। राजनीति व धर्म दोनों को एक ओर रखा जा कर दोनों वर्गों के कार्य में व्यवधान डालने का प्रयास करने वालों को तुरंत कठोर दण्ड दिया जाये।  2) दुग्ध-उत्पादकों तथा अन्य खाद्य व जीवनोपयोगी आवश्यक पदार्थों के उत्पादकों के उत्पादन उनसे क्रय किये जा कर जनता को उपलब्ध कराने की समुचित व्यवस्था की जावे। इस कार्य की सही पालना हो, इस बात का कठोरता से सुपरविज़न किया जावे।  3) लॉक डाउन की अवधि आवश्यक रूप से और आगे बढ़ाई जावे और इसकी सख्ती से पालना कराई जावे।  यह असम्भव नहीं है, यदि सरकार अपनी पूरी इच्छा-शक्ति से इस पर अमल करेगी तो कोरोना (कोविड-19) समूल रूप से नष्ट हो सकेगा।

'नया वायरस'

        धरती पर मानव-संख्या-संतुलन के मद्देनज़र चीन के महान वैज्ञानिकों  😜 ने एक और वायरस का आविष्कार कर लिया है - 'हन्ता वायरस'      चीन में बस में बैठ कर जा रहे एक व्यक्ति की हन्ता वायरस के संक्रमण से मौत हो गई। कहा जा रहा है कि यह वायरस कोरोना से अलग प्रकृति का है अतः बहुत अधिक चिंता की बात नहीं है। यह वायरस कोरोना की तरह मनुष्य से मनुष्य तक नहीं पहुँचता।   आप अपने घर में चूहों का प्रवेश रोक दें और यदि बरामदे में पेड़-पौधे लगे हुए हैं तो उन पर घूम रही गिलहरी से भी सावधान रहें। इन दोनों का मल-मूत्र 'हन्ता वायरस' का जनक है। यदि सावधानी के बावज़ूद आपके हाथ इनके मल-मूत्र के संपर्क में आ जाएँ तो अपने हाथों को साबुन से अच्छी तरह धो लें, अन्यथा आपके संक्रमित हाथ से कोरोना की तरह ही यह वायरस आपके मुँह, नाक या आँख के जरिये शरीर में प्रवेश कर जायेगा। इससे सम्भावित मृत्यु-दर 38% है। अतः सावधान रहें, सुरक्षित रहें। 🙏                                                                 ************

'देश मज़बूत होगा' (लघुकथा)

                                                                                                          "... तो भाइयों और बहिनों! मैं कह रहा था, हमें हमेशा सच्चाई के रास्ते पर चलना चाहिए। सच्चाई की राह में तकलीफें आती हैं पर फिर भी हमें झूठ और बेईमानी का साथ कभी नहीं देना चाहिए। आप तो जानते ही हैं कि  विधान सभा के चुनाव नज़दीक हैं। मैं मानता हूँ कि केन्द्रीय सरकार का सहयोग नहीं मिलने से हमारी पार्टी अब तक कुछ विशेष काम नहीं कर सकी है, लेकिन मेरा वादा है कि इस बार हम आपकी उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए एड़ी से चोटी तक का जोर लगा देंगे। मेरे विपक्षी उमीदवार फर्जी चन्द जी आप से झूठे वादे करेंगे, बहलाने की कोशिश करेंगे, लालच भी देंगे, किन्तु आप धोखे में नहीं आएँ। आपको सच्चाई का साथ देना है, मुझे अपना अमूल्य वोट दे कर जिताना है। मैं आपकी सेवा में अपनी जान...।"- मंत्री दुर्बुद्धि सिंह झूठावत अपने पहले चुनावी भाषण में अपने कस्बे के क्षेत्र-वासियों को सम्बोधित कर रहे थे कि अचानक उनका मोबाइल बज उठा। मोबाइल ऑन कर कॉलर का नाम देखा और "क्षमा करें, दो मिनट में लौटता हूँ"- कह क

कश्मीरियत सुरक्षित रहे - 'एक चिन्तन'

                                                 हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर से सम्बंधित धारा 370 को समाप्त/अप्रभावी किये जाने के विषय पर साहसिक निर्णय ले ही लिया। दिनांक 5 अगस्त, 2019 को  देश की जनता की चिरप्रतीक्षित साध पूरी हुई। कुछ मंद-बुद्धि व भ्रमित या यूँ कहें कि निहित स्वार्थ से ग्रसित व्यक्तियों के अलावा भारत देश के हर शहर, हर गाँव में समस्त जन-समुदाय ख़ुशी से चहक रहा था, सब का चेहरा गर्व और सन्तोष की आभा से दसमक रहा था। अन्ततः पुरानी, परिस्थितिजन्य भूल का परिमार्जन हो गया व जम्मू-कश्मीर को धारा 370 के दूषित बन्धन से मुक्त कर उससे लद्दाख को पृथक किया गया तथा दोनों को केन्द्र-शासित राज्य का दर्जा देने का प्रस्ताव रखा गया जो राज्य-सभा में उसी दिन पारित हो गया। कल लोक-सभा में भी इसे बहस के बाद पारित कर दिया गया तथा राष्ट्रपति जी के हस्ताक्षर के बाद वैधानिक रूप से मान्य हो गया है।      धारा 370 के प्रभावी रहते देश के जम्मू-कश्मीर राज्य को कुछ ऐसी शक्तियाँ मिली हुई थीं कि भारत का राज्य होते हुए भी भारतीय संविधान के कई प्रावधान वहाँ अ