आज तक समझ नहीं सका हूँ कि मात्र एक साल पहले जो प्राणी इस दुनिया में आया है, कभी रो कर, कभी चिल्ला कर, कभी हाथ-पैर पटक कर कैसे अपनी बात वह हम सब से मनवा लेता है? कैसे मान लेता है कि जिस घर में वह अवतरित हुआ है, उस पर उसका असीमित अधिकार है? अभी हाल ही उसका प्रथम जन्म-दिवस हम सब ने मनाया, तो यही प्रश्न मेरे मस्तिष्क में उभरे हैं।
मैं बात कर रहा हूँ अपने एक वर्षीय दौहित्र (नाती) चि. अथर्व की। जब उसकी इच्छा होती है, मेरी बाँहों में आने को लपक पड़ता है और जब निकलने की इच्छा होती है तो लाख थामो उसे, दोनों हाथ ऊँचे कर इस तरह लटक जाता है कि सम्हालना मुश्किल पड़ जाता है। जब भी उसका मूड होता है, अपनी मम्मी या पापा, जिस किसी के भी पास वह हो, हाथ आगे बढ़ा कर मेरे पास आ जाता है और जब उसकी इच्छा नहीं होती, तो कितनी भी चिरौरी करूँ उसकी, चेहरा और हाथ दूसरी तरफ घुमा देता है... और मैं हूँ कि उसके द्वारा इस तरह बारम्बार की गई इंसल्ट को हर बार भूल जाता हूँ और उसे अपने सीने से लगाने को आतुर हो उठता हूँ।
जो भी शब्द वह बोलता है, मैंने विभिन्न शब्दकोशों में ढूंढने की कोशिश की, मगर निदान नहीं पा सका हूँ। बस, समझने के भाव में सिर हिला कर अच्छा,अच्छा कह देता हूँ। शायद मेरी इस नासमझी को वह जान लेता है, तभी तो उसके चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान तैर जाती है।
कैसे बचाऊँ मन को उसके मोह-पाश से? मोहक मुस्कान के साथ इतनी जालिम निगाह से वह देखता है कि हमारी आत्मा तक को बाहर खींच लेता है। इस प्यारे बच्चे की माँ, यानी कि मेरी बिटिया और इसके मामा यानी कि मेरा बेटा, दोनों ने अपने-अपने छुटपन में अपनी बाल-लीलाओं द्वारा जो स्वर्गिक सुख हमें दिया था, ईश्वर की असीम अनुकम्पा से हमें उसकी पुनरावृत्ति देखने व भोगने को मिल रही है। हमारी प्यारी बिटिया और पुत्रवत् प्यारे दामाद तो ईश्वर प्रदत्त इस अनमोल उपहार के हकदार हैं ही, हमारे लिए भी यह एक अनुपम उपलब्धि है।
कहने की आवश्यकता नहीं कि मेरी पत्नी, यानी चि.अथर्व की नानी भी ऐसे ही सुन्दर अहसासों से रूबरू हो कर आनन्दित हो रही हैं।
नन्हा अथर्व (हम सब का दुलारा टिमटिम) सदैव स्वस्थ रहे, आयुष्मान हो एवं एक आदर्श जीवन जीये, यही कामना व आशीर्वाद है हमारा।
इस अतुलनीय कृपा के लिए जगन्नियता के चरणों में हम सब का कोटि-कोटि नमन🙏🙏.........🙏!
*****
आदरनीय सर, सबसे पहले तो आपकी नाना जी के रूप में पदोन्नति पर ढेरों बधाइयाँ और शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंस्वीकार करें।नन्हें अथर्व यानि टिमटिम को बहुत प्यार, दुलार और आशीष!।
आपने आकंठ उल्लसित हृदय से नन्हे-मुन्ने शिशु के लिए जो स्नेहिल उद्गार व्यक्त किये हैं वो बहुत ही भावपूर्ण हैं।सच तो यह है कि संसार में सबसे मोहक और चुम्बकीय होती है एक नन्हे शिशु की मुस्कान! शिशु कहाँ अभिनय जानता है।उसके पास जो भी है मौलिक है!!और ये ही वंशबेल का सुन्दरतम पुष्प है जिसके सहारे सृष्टि चल रही।परिवार में एक नन्हे बच्चे का आगमन सबसे बड़ा उत्सव है तो क्यों इतना सोचना।इस आनन्द में लीन को जीवन के सर्वश्रेष्ठ समय को जीते रहिये।आज के युग में ये आनन्द सबके नसीब में नहीं।नन्हे बाबू के मम्मी- पापा और नाना- नानी को एक बार फिर बधाई।बाबू यशस्वी और चिरंजीवी रहे यही कामना है 🙏🌺🌺
मेरी प्रसन्नता की सहभागी बनने के लिए हृदयतल से आपका आभारी हूँ स्नेहमयी रेणु जी! बच्चे के लिए आपके आशीर्वचन अवश्य ही फलीभूत होंगे, क्योंकि यह आशीष एक सरलमना विदुषी द्वारा प्रदत्त है। आपकी टिप्पणियाँ मन मोह लेती हैं आदरणीया! आपकी लेखनी यूँ ही समृद्ध बनी रहे, यही सतत अभिलाषा रहेगी मेरी।
हटाएंबहुत प्यारे हैं नन्हे राजकुमार ❤❤❤♥️🙂
जवाब देंहटाएं😊🙏
हटाएंमेरी पुस्तक में प्रकाशित एक रचना प्रिय अथर्व के लिए ----
जवाब देंहटाएंक्या जानों तुम अभिनय करना
जानों बस मन आनंद भरना !
हैं अबूझ अस्फुट से स्वर
मुखरित केवल भाव तुम्हारे
करुणा भरी दृष्टि से झरते
अबोध पेंच और दाव तुम्हारे
सीखे कोई हृदय से लग
तुमसे पीर हिया की हरना!
निर्मल हृदय का प्रतिबिंब
सरल ,निश्छल ,उज्जवल नयना
अनायास तृप्त करते मन
निर्दोष स्मित ,अव्यक्त बयना,
अंतस में विस्मय भरता
तुम्हारा संभल -संभल पग धरना !
जीवन बगिया के नव किसलय
अनमोल धरोहर तुम कल की
अनभिज्ञ धूप-छाँव,ज्ञान से
समझते ना बातें छल की,
फिर भी कैसे सीख गए
खुद ही प्रेम की भाषा पढ़ना ?
क्या जानों तुम अभिनय करना
जानों बस मन आनंद भरना !
♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️🙂
'जीवन बगिया के नव किसलय
हटाएंअनमोल धरोहर तुम कल की
अनभिज्ञ धूप-छाँव,ज्ञान से
समझते ना बातें छल की,
फिर भी कैसे सीख गए
खुद ही प्रेम की भाषा पढ़ना ?' - सुन्दर कविता की श्रेष्ठतम पंक्तियाँ! बहुत ही सुन्दर और स्वाभाविकता से परिपूर्ण सृजन हुआ करता है आपका आ. रेणु जी!
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०१-०१-२०२३) को 'नूतन का अभिनन्दन' (चर्चा अंक-४६३२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
विदेश में हूँ और पिछले चार दिनों से भ्रमणरत था, अतः समय पर उपस्थित नहीं हो सका, तदर्थ खेद है आ. अनीता जी! आज चर्चामंच पर आ सका हूँ। मेरी अभिव्यक्ति को मंच पर स्थान देने के लिए आपका बहुत आभार!
हटाएंमोहपाश से बचने की क्यों सोचते हैं. बंध जाइये. बधाइयाँ नाना जी को
जवाब देंहटाएंजी, हार्दिक धन्यवाद!
हटाएंबहुत प्यारी पोस्ट। मूल से ब्याज ज्यादा प्यारा होता है। चि. अथर्व को खूब सारा प्यार।
जवाब देंहटाएंजी, धन्यवाद! आभारी हूँ महोदया मीना जी!
हटाएंबहुत अच्छी पोस्ट ❗️ बच्चों की मुस्कान की निश्चलता अद्भुत होती है... हार्दिक साधुवाद!--ब्रजेन्द्र नाथ
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, नमस्कार महोदय!
जवाब देंहटाएं