सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

राजनीति लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

एक अच्छी शुरुआत हो ---

  समाचार पत्र 'दैनिक भास्कर' के अनुसार जाने-माने उपन्यासकार श्री चेतन भगत ने 'AAP' द्वारा दिल्ली में जनहित में लिए गए कुछ निर्णयों की आलोचना की है। चेतन भगत जी की विद्वता को पूरा सम्मान देते हुए कहना चाहूंगा कि उनकी कई बातों  से सहमत नहीं हुआ जा सकता। पानी और बिजली में की गई रियायत कमज़ोर तबके के लिए ज़रूरी थी और इसमें जो धन व्यय होगा उसे 'नुक्सान' की संज्ञा देना अविवेक और जल्दबाजी कहा जायगा। कितना व्यय होगा, इसका सही आंकलन भी सांख्यिकीय विषय है। शासक-वर्ग को जनहित में कहाँ व्यय करना चाहिए और कहाँ नहीं, यह विवाद का बिंदु हो सकता है किन्तु इसके औचित्य का निर्णय जन-साधारण द्वारा नहीं किया जा सकता।      जहाँ तक दिल्ली के विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध महाविद्यालयों में आरक्षण का मुद्दा है, निश्चित रूप से यह विषय न केवल विवादास्पद है अपितु अवांछनीय भी है। इस निर्णय पर पुनर्विचार कर इसे निरस्त किया जाना वांछनीय है। चेतन भगत जी ने भी इसे सही नहीं माना यह उचित है लेकिन उनहोंने जिस तरह से इस फैसले को प्रलयंकारी मान कर कथन किया है कि यह निर्णय भारत को विभालित करेगा, यह अत

अच्छी राजनीति ग्राह्य क्यों नहीं ?

  मैं समझ नहीं पा रहा कि किसी नए नेता या पार्टी का उदय लोग पचा क्यों नहीं पाते। क्यों पहले से जमे हुए राजनेता किसी नये को उभरने  देना नहीं चाहते ? क्या राजनीति और सत्ता केवल पूर्व में स्थापित कुछ नेताओं की बपौती है ? 'AAP' का अभ्युदय हुए कुछ ही दिन हुए हैं, उन्हें सत्ता पर काबिज़ हुए भी बमुश्किल दो सप्ताह हुए हैं और उनके काम-काज की आलोचना कुछ विघ्न-संतोषी इस तरह कर रहे हैं जैसे कि इस पार्टी को काम करते हुए चार-पांच साल हो गए हों। जो कुछ केजरीवाल जी की इस सेना ने किया है उसका दशांश भी तो पूर्व की दिल्ली-सरकार और अन्य हालिया चयनित सरकारें नहीं कर पाई हैं अब तक। शायद उनकी अकर्मण्यता का यही बोझ उनके अनुयायियों को अनर्गल प्रलाप के लिए प्रेरित कर रहा है। 'AAP' के कार्यालय पर कुछ अराजक तत्वों द्वारा आक्रमण तथा अमेठी में डॉ. कुमार विश्वास के साथ किया गया दुर्व्यवहार इसका ज्वलंत उदाररण हैं।   एक नये उत्साह और कुछ कर गुजरने की तमन्ना लेकर आये इन नौजवानों को कुछ करने का अवसर तो दो मित्रों ! यदि यह लोग भी निराश करते हैं तो जनता के पास शक्ति है न इन्हें भी उखाड़ फेंकने की। स्वस्थ

पथ-निर्माता के लिए दो शब्द...

     सड़ी-गली व्यवस्था में सुखद परिवर्तन की  बयार ( हवा ) भी कुछ लोगों के जुकाम का कारण बन जाती है और प्रारम्भ हो जाता है विरोध और मीन-मेख निकालने का नया सिलसिला। सही नेतृत्व का अनुसरण प्रारम्भ में बुद्धिमान लोग करते हैं, लेकिन यथास्थितिवादियों को भी कालान्तर में उनके पीछे चलना ही होता है। अतः हर अवरोध से अविचलित रह कर कर्म-पथ पर निरंतर चलते रहना ही श्रेयस्कर है, वांछनीय है। बढ़ते चलें, बढ़ते चलें, बढ़ते चलें.....

अरविन्द केजरीवाल जी के लिए एक सन्देश -

  प्रिय केजरीवाल जी, नव-वर्ष की शुभकामना ! आप की पार्टी 'आप' के उद्भव के साथ ही जागृति की जो चेतना झलकी थी वह क्रांति की लहर बन कर आज पूरे देश में छा गई है। बधाई !   एक विशेष बात आपसे शेयर करना चाहता हूँ।  जिस प्रकार नाव को डूबते देख उसमें सवार लोग कूद कर पास से निकल रहे मजबूत सहारे को थाम लेते हैं ठीक उसी प्रकार जैसे-जैसे आपकी पार्टी का विस्तार होगा (और कोई इसे रोक नहीं पाएगा ), नेता लोग दूसरी पार्टियां छोड़कर 'आप' में समाहित होने के लिए भागे चले आयेंगे। यहीं पर आपको इतना सतर्क रहने की आवश्यकता होगी जितनी आपको पार्टी के गठन के समय भी नहीं रही होगी। आपकी बौद्धिक क्षमता का लोहा तो देश की सभी पार्टियों के नेताओं ने माना है (भले ही प्रकट में कोई नहीं स्वीकारे ), लेकिन कुछ लोग कुटिलता के सहारे आपको पीछे धकेलने की कोशिश कर सकते हैं।  अतः मुझे लगता है, आपको एक ऐसी सतर्कता समिति का गठन करना चाहिये जो पूरी ईमानदारी से जाँच-परख करके ईमानदार और समर्पित व्यक्ति को ही 'आप' में प्रवेश दे चाहे वह व्यक्ति आम लोगों में से हो या किसी पार्टी से आया हो। सदस्य-संख्या के विस्त

दिल्ली में AAP-मंत्रीमंडल का शपथ-ग्रहण ---

     आज दिल्ली के रामलीला मैदान में 'आप' के नवगठित मंत्रीमंडल के सदस्यों ने पद व गोपनीयता की शपथ ली। केंद्र-सरकारों व विभिन्न राज्य-सरकारों द्वारा अब तक कितनी ही बार शपथें ली जाती रही हैं और तदर्थ समारोह भी आयोजित होते रहे हैं, लेकिन कई मायनों में आज का यह आयोजन अद्भुत और अनुकरणीय था। मंत्रियों का मेट्रो-ट्रेन में सफ़र करके समारोह स्थल पर जाना प्रतीकात्मक रूप से तो अच्छा कहा जा सकता है लेकिन इसे अधिक प्रभावकारी कदम नहीं माना जा सकता। ऐसा किया जाना इतना आवश्यक भी नहीं था क्योंकि सदैव इस तरह यात्रा करना न तो व्यवहारिक है और न ही सम्भव। फिर भी यह समारोह कई मायनों में प्रशंसा-योग्य था। निहायत ही सादगीपूर्ण ढंग से निर्वहित किये गए इस आयोजन में कोई व्यक्ति VIP नहीं था, पार्टी के नाम के अनुरूप ही मंत्री से लेकर सामान्य व्यक्ति तक हर व्यक्ति आम आदमी ही था। मंत्रियों एवं विधायकों के परिवार भी जनता के मध्य ही बैठे थे सामान्य लोगों की तरह। सभी के लिए एक जैसी कुर्सियां, एक-सी सुविधा थी इसलिए प्रवेश-पत्र का भी प्रावधान नहीं था। सही मायनों में लोकतंत्र आज देखा, न केवल दिल्ली-वासियों ने अ

दिल्ली के नये मुख्यमंत्री को शुभकामना-सन्देश -

    केजरीवाल जी को को उनके नए कार्य-क्षेत्र में प्रवेश के लिए बधाई !   आपको मेरी तथा तरक्की-पसंद हर भारतीय की ओर से शुभकामना कि 'AAP' सफलता के नए आयाम स्थापित कर सके। आपको सावधान भी रहना होगा सम्भावित कुचक्रों के विरुद्ध क्योंकि यह तो जानी-समझी हुई बात है कि पड़ौसी की उन्नति किसी से बर्दाश्त नहीं होती, फिर यह तो राजनीति-क्षेत्र है। राजनीति में तो बाप-बेटा भी एक-दूसरे के नहीं होते। वही लोग जो अब तक 'AAP' पर सरकार बनाने का दबाव डाल रहे थे, अब पानी पी-पी कर आपको कोस रहे हैं। कितना हास्यास्पद है यह सब....कोई दीन-ईमान-धर्म नहीं राजनीतिज्ञों और उनके पिछलग्गुओं का। आपके हर आदर्श कदम की आलोचना भी होगी क्योंकि लाल बहादुर शास्त्री और अटलबिहारी बाजपेयी तथा इन जैसे कुछ ही अन्य नेताओं के द्वारा अपनाई गई राजनीति से परे अब तक की भारतीय राजनीति में शुचिता और पारदर्शिता की संस्कृति कभी रही ही नहीं है।   केजरीवाल जी ! आप मूल रूप से 'राजनीतिज्ञ' नहीं हैं, इसलिए अब तक परम्परा में रही 'बदले की राजनीति' से भी परहेज रखना चाहिए आपको, क्योंकि यह तो तथाकथित राजनीतिज्ञों का ही

अभी उन्हें तपना है...

प्रजातंत्र भी क्या अजीब शै है ! तुकी-बेतुकी जो चाहे, जब चाहे, बोल ले। जो कहा गया है, सुना गया है- उसके स्रोत की विश्वसनीयता को परखने का प्रयास भी कोई नहीं करता। अफीमघर से निकली गप्पें भी क्रिया-प्रतिक्रियाओं के सहारे सत्य से अधिक आधार पा लेती हैं जन-मानस के मन-मस्तिष्क में।    अभी हाल ही सुनने में आया कि केजरीवाल जी ने मोदी जी को  चुनाव लड़ने की चुनौती दी है और वह भी गुजरात में। है न अफीमखाने की गप्प ? अब, आईआईटीयन केजरीवाल जी इतने भी नादान नहीं कि विश्व-भर में अपनी चमक बिखेरने वाली हस्ती मोदी जी को चुनौती दें। अगर इस ख़बर में तनिक भी सच्चाई है तो केजरीवाल जी ने अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल की है।    केजरीवाल जी आम आदमी के प्रतिनिधि हैं- सीधे और सच्चे। जो कुछ भी उन्हें सही लगता है, उस पर बेबाक टिपण्णी कर देते हैं चाहे किसी को बुरा लगे या भला और यही कारण है कि अपने ही गुरु आ. अन्ना जी को भी खरी-खरी कह देते हैं। केजरीवाल जी का कद फिलहाल मुख्यमंत्री की कुर्सी के लायक ही है। इस पद पर अपनी योग्यता प्रमाणित करने के बाद ही जनता उनकी  क्षमता को अगली कसौटी पर कसने के लिए तत्पर हो सकेगी। मोदी जी क

हो जाने दें नये चुनाव...

साँप-छछूंदर की गति हो गई है 'AAP' की ! यदि किसी का भी समर्थन नहीं लेकर सरकार बनाने से इन्कार करते हैं तो लोग कहेंगे कि जनता को नए चुनावों में धकेल दिया और यदि किसी भी एक का समर्थन लेकर सरकार बनाते हैं तो कहेंगे कि यह पार्टी आदर्शों का ढों ग कर रही थी। फिर भी AAP के द्वारा बिना किसी की परवाह किये दृढ़तापूर्वक सरकार बनाने से इन्कार कर दिया जाना उचित होगा, अन्यथा अन्य पार्टियों में और उसमे कोई अन्तर नहीं रह जाएगा। कुछ प्रतीक्षा करें, हो सकता है कॉन्ग्रेस में से कुछ विधायकों का हृदय-परिवर्तन हो जाय और वे BJP में शामिल हो जाएँ और तब BJP अपनी सरकार बना ले। दोनों पार्टियों की अब तक की संस्कृति तो यही रही है। यदि ऐसा कुछ नहीं होता है तो हो जाने दें नये चुनाव। नये चुनावों का खर्च किसी भी एक बड़े घोटाले से तो कम ही होगा।

विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र :

मैंने देखा है विश्व-पटल पर उभरते मेरे देश के समग्र विकास को -   सुदूर किसी गांव में कहीं एकाध जगह लगे हैंडपम्प से  निकलती पतली-सी धार और पास में घड़े थामे पानी के लिए आपस में झगड़ती ग्रामीण बालाओं की कतार में;  शहर में सर्द रात में सड़क के किनारे पड़े, हाड़ तोड़ती सर्दी से किसी असहाय भिखारी के कंपकपाते बदन में;  कहीं अन्य जगह ऐसी ही किसी विपन्न, असमय ही बुढ़ा गई युवती के सूखे वक्ष से मुंह रगड़ते, भूख से बिलबिलाते शिशु के रूदन में;  किसी शादी के पंडाल से बाहर फेंकी गई जूठन में से खाने योग्य वस्तु तलाशते अभावग्रस्त बच्चों की आँखों की चमक में;                                                                       और....…और इससे भी आगे, विकास की ऊंचाइयों को देखा है -  पड़ौसी मुल्कों की आतंकवादी एवं विस्तारवादी हरकतों के प्रति मेरे देश के नेताओं की बेचारगी भरी निर्लज्ज उदासीनता में;  चुनावों से पहले मीठी मुस्कराहट के साथ अपने क्षेत्र की जनता के साथ घुल-मिल कर उनके जैसा होने का ढोंग रचकर, किसी मजदूर के हाथ से फावड़ा लेकर मिट्टी खोदते हुए, तो किसी लुहार से हथौड़ी लेकर लोहा पीटते हु

वाह रे प्रजातंत्र --

  मुख्य मंत्री जी (राजस्थान) जनता को बाँट रहे हैं - अस्पतालों में मुफ्त दवाइयां और जांचें (अव्यवस्था से ग्रस्त), मुफ्त सी एफ एल बल्ब, सस्ता अनाज, छात्राओं को मुफ्त लैपटॉप, साइकिलें, छात्रवृत्तियाँ और भी न जाने क्या कुछ। पात्र-अपात्र सभी को मिल रहा है यह सब कुछ और पहचान-भ्रष्टाचार का योगदान पृथक से जुड़ रहा है इसमें। आ. मुख्य मंत्री जी के वेतन से तो निश्चित  ही नहीं बांटा जा रहा यह सब-कुछ। जनता की गाढ़ी कमाई से वसूले गए कर, आदि से अर्जित कोष का सरे-आम दुरूपयोग हो रहा है। निस्संदेह ही ज़रूरतमंद को सुविधा उपलब्ध कराना राजकीय धर्म है, लेकिन राज्य-कोष का अनुचित दोहन वांछनीय नहीं। राज्य-सरकार रोजगार के उपाय करने के विपरीत लोगों में कामचोरी एवं भीख की प्रवृति को जन्म दे रही है।  सन्देह है कि यह सभी अनुदान 'वोट' में तब्दील हो पायेंगे। मैंने लाभ उठाने वाले लोगों में से ही कई लोगों को व्यवस्था का उपहास करते देखा है।                                 राज-कोष की लूट है जितना लूट सके सो लूट,                                बाद इलेक्शन पछताएगा, फिर न मिलेगी छूट।    

"सिंघम"

 अभी स्टार प्लस पर फिल्म 'सिंघम' प्रदर्शित की जा रही थी  और मैं मंत्र-मुग्ध इसे देख रहा था। चार बार इस फिल्म को पहले भी देख चुका हूँ। अभी कुछ देर पहले पुलिस इंस्पेक्टर सिंघम और उसके अधीनस्थों द्वारा एक भृष्ट मंत्री की पिटाई होते देखा और ख़ुशी से मन प्रफुल्लित हो गया। एक क्षण के लिए भूल गया था कि मैं फिल्म देख रहा हूँ।  वास्तविक पुलिस में सिंघम जैसे ईमानदार अफसर हैं कहाँ और जो हैं वह तन से भले ही शाक्तिशाली हों, मन से बहुत ही कमज़ोर हैं। उनमें इतना साहस नहीं कि किसी भी राजनीतिज्ञ, चाहे वह कितना ही भृष्ट हो- के विरुद्ध आँख उठा सकें। अब तो विधानसभा और संसद में गुंडे-मवालियों के प्रवेश को लोकसभा में पक्ष और विपक्ष ने एकमत हो विधि-सम्मत करवा लिया है। सुप्रीम कोर्ट पर कार्य-पालिका ने अपनी महत्ता बना ली है फलतः पुलिस-विभाग और भी पंगु  होने वाला है। आमजन और न्याय-प्रणाली का भगवान  ही रक्षक है। एक बात फिल्म के अंतिम भाग में निराश मन को सान्त्वना दे गई कि सिंघम के हर कदम को बाधित करने वाले एक भृष्ट अफसर का अंत में ह्रदय-परिवर्तन हो जाता है। मेरी गुजारिश है समस्त पुलिस-कर्मियों से कि फिल

प्रधान मन्त्री से गुजारिश :-Posted on Facebook by me...on Dt. 20-4-13

Gajendra Bhatt April 20 माननीय प्रधान मन्त्री जी, मेरी आप से गुजारिश है :- 1) दिल्ली के पुलिस-महकमे को समाप्त करवा दीजिये क्योंकि अब इसकी ज़रूरत नहीं रही। पीड़ित को रूपया देकर मामला रफ़ा-दफ़ा करने की पेशक़श तो अपराधी के रिश्तेदार ही कर लेंगे जो अभी पुलिस के कुछ अधिकारी कर रहे हैं। 2) मानवाधिकार- संस्था को भी हटा दीजिये क्योंकि पीड़ित की पीड़ा से अधिक चिंता इसे अपराधी के लिए रहती है जब भी अपराधी को कठोर सज़ा देने की बात उठती  है। 3) ऐसे मुख्य मंत्रियों को सचिवालयों से हटाकर उनके घर भेज दीजिये जो आतंकवादियों / अपराधियों को सज़ा नहीं देने की वक़ालत करते हैं, ताकि वह अपनी खेती-बाड़ी सम्हालें। 4) हमारे देश का क़ानून बहुत कमज़ोर है इसलिए इसमें बदलाव करके कठोरतम बनवायें और ऐसा न कर सकें तो गुनहगारों को जनता को सुपुर्द करवा दें ताकि जनता उन दरिन्दों को उचित सजा दे; पांच वर्ष की मासूम बच्ची से दुष्कर्म करने वाले नर-पिशाच के शरीर में उसी तरह बोतल डाल सके जैसा उसने उस बच्ची के साथ किया। 5) अन्तिम प्रार्थना यह है कि कृपया अपना मौन त्यागें और कुछ ऐसा बदलाव व्यवस्था में कराएँ