समाचार पत्र 'दैनिक भास्कर' के अनुसार जाने-माने उपन्यासकार श्री चेतन भगत ने 'AAP' द्वारा दिल्ली में जनहित में लिए गए कुछ निर्णयों की आलोचना की है। चेतन भगत जी की विद्वता को पूरा सम्मान देते हुए कहना चाहूंगा कि उनकी कई बातों से सहमत नहीं हुआ जा सकता। पानी और बिजली में की गई रियायत कमज़ोर तबके के लिए ज़रूरी थी और इसमें जो धन व्यय होगा उसे 'नुक्सान' की संज्ञा देना अविवेक और जल्दबाजी कहा जायगा। कितना व्यय होगा, इसका सही आंकलन भी सांख्यिकीय विषय है। शासक-वर्ग को जनहित में कहाँ व्यय करना चाहिए और कहाँ नहीं, यह विवाद का बिंदु हो सकता है किन्तु इसके औचित्य का निर्णय जन-साधारण द्वारा नहीं किया जा सकता। जहाँ तक दिल्ली के विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध महाविद्यालयों में आरक्षण का मुद्दा है, निश्चित रूप से यह विषय न केवल विवादास्पद है अपितु अवांछनीय भी है। इस निर्णय पर पुनर्विचार कर इसे निरस्त किया जाना वांछनीय है। चेतन भगत जी ने भी इसे सही नहीं माना यह उचित है लेकिन उनहोंने जिस तरह से इस फैसले को प्रलयंकारी मान कर कथन किया है कि यह निर्णय भारत को विभालित करेगा, यह अत