प्रधानमंत्री मोदी जी के द्वारा राजकार्य में मातृभाषा हिंदी के अधिकतम प्रयोग पर बल दिया जाना स्वागत योग्य है। प्रारम्भ में जनता की सुविधा के लिए सम्बंधित क्षेत्र की क्षेत्रीय भाषा में अनुवाद संलग्न किया जाना भी वांछनीय है। कालान्तर में देश-विदेश के मंचों पर मात्र हिंदी का ही प्रयोग अनिवार्य किया जा सकेगा। जिस प्रकार कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष विदेशों में अपनी मातृभाषा का प्रयोग करते हैं व दुभाषिये उसका सम्बंधित देश की भाषा में या अंग्रेजी में रूपान्तरण कर देते हैं, ठीक उसी तरह हम भी हिंदी का प्रयोग अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आसानी से कर सकते हैं। हिंदी को गौरवान्वित करने वाले इस कदम की जितनी भी प्रशंसा की जाये, कम है। हाँ, क्षेत्र-विशेष में क्षेत्रीय भाषा या अंग्रेजी को द्वितीय भाषा के रूप में मान्यता दी जा सकती है। हिंदी का अधिकतम प्रयोग देश को एक सूत्र में बांधे रखने और मात्र क्षेत्रीय सोच की संकीर्णता के उन्मूलन में सहायक होगा। राष्ट्र-भाषा या ऐसा कोई भी मुद्दा जो राष्ट्र-भावना से सम्बन्धित हो, का विरोध करने वाले हर वक्तव्य को राष्ट्र-द्रोह के समकक्ष माना जाकर कार्यवाही की जानी चा