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चलचित्र 'पद्मावती' का दूषित कथानक- एक समीक्षा

 

      प्राप्त जानकारी के अनुसार चलचित्र 'पद्मावती' में दर्शाए गये नराधम सुल्तान अल्लाउद्दीन और प्रातःस्मरणीया रानी पद्मिनी (पद्मावती) के अन्तरंग दृश्यों को कुत्सित विचारधारा वाले कुछ व्यक्ति यह कह कर समर्थन दे रहे हैं कि वह सभी दृश्य चलचित्र में अल्लाउद्दीन की कल्पना में होना दर्शाया गया है न कि हकीकत में।
     यह भी कहा जा रहा है कि पद्मिनी या पद्मावती की कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है, इस तरह की रानी का कोई वजूद होना इतिहास में प्रामाणिक नहीं है।
     इस सम्बन्ध में मेरा तर्क
यह है कि यदि पद्मिनी का अस्तित्व ही नहीं मानते, तो नाहक ही हिन्दुओं की आस्था और राजपूती गौरव की प्रतीक 'पद्मिनी' को अल्लाउद्दीन के साथ किसी भी रूप में सम्बद्ध कर उनकी पवित्र भावना का मखौल बनाने की कोशिश क्यों की जा रही है? यदि फिल्मकार अल्लाउद्दीन की कल्पना में ही पद्मिनी को दिखाना चाहते हैं तो इस तरह क्यों नहीं कि वह उसकी तरफ लोलुप दृष्टि डाल रहा है और उससे आक्रोशित होकर पद्मिनी उसके नापाक चेहरे पर थूक देती है।
     अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए अपनी सखियों व दासियों सहित अग्निकुंड में कूद कर अपने प्राणों की आहुति देने वाली रानी पद्मिनी के प्रति अपवित्र कल्पना भी किसी तरह से क्षम्य नहीं है, इसमें दो राय नहीं हो सकती।
 भारत देश का यह, वह राजस्थान है, जहाँ अपनी आन,मान और शान की रक्षा के लिए यहाँ के राजपूत वीर शत्रु के प्राण ले भी लेते थे तो हँसते-हँसते प्राण दे भी देते थे। इसके प्रमाण-स्वरुप निम्नांकित ऐतिहासिक कथा प्रस्तुत कर रहा हूँ। 

      { यह बात उन दिनों की है जब एक बार किन्ही कारणों से मेवाड़ के महाराणा लाखा बूंदी राज्य के हाड़ाओं से नाराज हो गए एवं इसी नाराजगी के चलते महाराणा लाखा ने प्रण लिया कि जब तक वे बूंदी नहीं जीत लेते अन्न जल ग्रहण नहीं करेंगे !
इस जिद को सुन महाराणा लाखा के सामंतों ने उन्हें बहुत समझाया कि इस तरह से बूंदी जैसे राज्य जिसके वीर हाड़ा राजपूतों के शौर्य का डंका हर कहीं बजता है को जीतना इतना आसान नहीं, परन्तु महाराणा लाखा के प्रण के चलते मेवाड़ के लोगों के सामने एक गंभीर समस्या ने जन्म ले लिया था जिसका कारण था कि न तो बूंदी के हाड़ा राजपूतों को इतनी सरलता से हराया जा सकता था और जिद्द पर अड़े महाराणा लाखा भी अपने प्रण से पीछे हटने वाले भी नहीं थे ! अतः मेवाड़ के सामन्तो ने एक बीच का रास्ता निकाला और महाराणा लाखा को एक मार्ग सुझाया कि अभी चितौड़ के किले के बाहर ही बूंदी का एक मिटटी का प्रतीकात्मक नकली किला बनवाकर उस पर आक्रमण कर उसे जीत लेते है और नकली बूंदी के किले पर विजय हासिल कर आप अपना भी प्रण पूरा कर लीजिये ! महाराणा ने उनकी यह बात माँ ली ! अब चितौड़ किले के ही बाहर बूंदी का एक प्रतीकात्मक मिटटी का नकली किला तैयार हुआ !
कुछ घुड़सवारों व अपने कुछ सामंतो के साथ महाराणा लाखा इस नकली बूंदी के किले को जीतने की ख्वाहिश लिए आक्रमण के लिए आगे बढे, अचानक न जाने कहाँ से दनदनाता तीर अचानक महाराणा लाखा के घोड़े को आकर लगा ! घोड़ा गश खाकर वहीं का वहीँ चित्त हो गया ! आश्चर्यचकित महाराणा आनन् फानन में घोड़े से कूद एक और जा खड़े हुए, अचानक एक दूसरा तीर आकाश को भेदता हुआ आया और एक सैनिक की छाती में समा गया गया ! अब किसी को भी समझ नहीं आ रहा था कि आखिर कौन है जो इस नकली बूंदी की तरफ से लड़ रहा है ? ये तीर आखिर चला कौन रहा है ?
बिना देर किये महाराणा ने एक सामंति को बूंदी के नकली किले की और रवाना किया ! नकली बूंदी के किले की तरफ जाकर दूत ने देखा कि वहां एक नौजवान केसरिया वस्त्र से सुसज्जित अपने कुछ मुट्ठी भर साथियों सहित अस्त्रों शस्त्रों को धारण किये उस नकली किले की रक्षा हेतु मौर्चा बांधे खड़ा है !
यह नौजवान बूंदी का एक आम हाड़ा राजपूत कुम्भा था जो कि महाराणा की सेना में नौकरी करता था जो आज अपने हाड़ा वंश की प्रतिष्ठा बचाने हेतु अपने दुसरे हाड़ा राजपूत वीरों के साथ मेवाड़ की सेना को जवाब देने के लिए उस नकली बूंदी को बचाने वहा आ खड़ा हुआ !
मेवाड़ के कई सामंतों ने कुम्भा को समझाया कि यदि महाराणा का प्रण पूरा नहीं हुआ तो बिना अन्न जल उनके जीवन पर संकट आ सकता है, और तुम स्वयं जो महाराणा के सेवक हो तुमने भी तो उनका नमक खाया है अतः उस नमक का फर्ज अदा करो और यहाँ से हट जाओ और महाराणा को नकली बूंदी पर प्रतीकात्मक विजय प्राप्त कर अपने प्रण का पालन करने दो !
तब कुम्भा ने कहा – में निसंदेह महाराणा का सेवक हूँ और मैंने उनका नमक खाया है इसीलिए उनका घोडा मारा गया न कि महाराणा, में एक हाडा राजपूत हूँ, बूंदी मेरी हाडा वंश की प्रतिष्ठा से जुडा हुआ है अतः आप महाराणा से कहिये बूंदी विजय का विचार त्याग दे ! मेरे लिए यह नकली बूंदी का किला भी असली से कम नहीं है, जो नकली बूंदी के लिए नहीं मर सकता वह असली बूंदी के लिए भी नहीं मर सकता है ! मैंने महाराणा का नमक खाया है इस कारण वह मेरे इस मस्तक के मालिक तो है पर मेरी मर्यादा के कतई नहीं ! यह प्रश्न हाड़ा वंश और अपनी मातृभूमि की इज्जत का है, इसलिए महाराणा मुझे क्षमा करें !
हाडा कुम्भा जी के विद्रोही तेवर देख गुस्साए महाराणा ने अपने सैनिको को नकली बूंदी पर आक्रमण का आदेश दिया ! तब कुम्भा जी ने महाराणा को कहा - " ठहरिये हुकम, आपके साथ सैनिकों की मात्रा बेहद कम है यह सैनिक इस नकली बूंदी को भी नहीं जीत पाएंगे अतः आप किले से एक बड़ी सैनिक टुकड़ी और मंगवा लीजिये, मेरी बूंदी की प्रतिष्ठा पर हर हाडा देशभक्ति से ओतप्रोत अपना सर्वस्व हँसते हँसते न्योछावर कर सकता है मे और मेरे साथियों के रहते आप इतनी सरलता से इसे नहीं जीत पायेंगे ?
चितौड़ के लोग दुर्ग की प्राचीर पर खड़े थे ! जो नकली बूंदी का विजय अभियान देख रहे थे ! अचानक उन्होंने देखा कि सैकड़ो घोड़े और हाथी सजधज कर नकली बूंदी की और बढ़ रहे है ! एक पूरी सेना बूंदी के नकली किले को घेर रही है ! चारों तरफ हर हर महादेव का उदघोष चितौड़ किले तक सुनाई दे रहा था ! अचम्भित लोग सोच में पड गए कि नकली बूंदी के लिए यह युद्ध कैसा ? कई लोगों के मन में संदेह उत्पन्न हो गया कि कहीं यह वास्तविक युद्ध तो नहीं, तो कई लोग उसे युद्ध का अभिनय समझ रहे थे !
यह युद्ध ज्यादा देर न हो सका ! हालांकि दोनों तरफ से तीरों की बौछारें हुई जहाँ एक और मेवाड़ के कई सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए तो सैकड़ों हताहत हुए वहीँ दूसरी और हडाओं की देशभक्ति व उनकी प्रतिष्ठा की रक्षा हुई ! कुम्भा हाड़ा व उसके साथी लड़ते लड़ते अपनी वीरता दिखलाते हुए वीरगति को प्राप्त हुए ! }

      यह दृष्टान्त क्या यह समझाने के लिए पर्याप्त नहीं है कि इस चलचित्र को इसमें समाविष्ट तमाम सांस्कृतिक विकृतियों को हटाने के बाद ही देश के छविगृहों में प्रदर्शित किया जाना चाहिए?

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