'पन्ना धाय' राजस्थान में ही नहीं, सम्पूर्ण भारत में गर्व और श्रद्धा से लिया जाने वाला वह नाम है जिसके समकक्ष विश्व में कोई भी नाम बौना हो जाता है जब चर्चा होती है स्वामिभक्ति व त्याग की।
पन्ना धाय, एक माता, जिसने राजद्रोही बनवीर के सम्मुख अपने स्वामी-पुत्र (राजकुमार उदय सिंह) की रक्षा हेतु अपने ही पुत्र को मरने के लिए प्रस्तुत कर दिया। ऐसा उदहारण विश्व में न कभी इससे पहले देखा गया है और सम्भवतः न ही कभी देखा जा सकेगा। भारतीय इतिहास को जानने वाले महानुभाव इस पवित्र नाम से अपरिचित नहीं हो सकते, अतः मेरा यह आलेख 'पन्ना धाय' से अनभिज्ञ जिज्ञासु व्यक्तियों के लिए केवल पठनीय ही नहीं होगा, अपितु वह उस महान अलौकिक आत्मा का परिचय पाकर स्वयं को धन्य भी समझेंगे।
यहाँ, मेरे शहर उदयपुर में गोवर्धन सागर तलैया किनारे सन् 1914 में निर्मित एक भवन में पन्ना धाय की गाथा कहती स्थायी प्रदर्शनी स्थापित की गई है। इस प्रकोष्ठ में पन्ना धाय से सम्बंधित एक डॉक्यूमेंट्री मूवी भी प्रदर्शित की जाती है। कल मैंने वहाँ जाकर पन्ना धाय को पुनः जानने का प्रयास किया, जबकि उस देवी की सम्पूर्ण कहानी मैं पहले से जानता था। जैसा कि मैंने कहा, कहानी तो मैं जानता था और कल पुनः जानने का प्रयास भी किया, पर क्या उसे सही में जाना जा सकता है? किस मिट्टी से बनी थी वह दिव्यात्मा, कैसे अपनी छाती पर पत्थर रखकर ऐसा दुरूह कार्य, अपने ही पुत्र को बलि की वेदी पर चढाने का निर्णय ले सकी होगी वह? समझना तो दूर की बात है, क्या इसकी कल्पना भी की जा सकती है?
मैं चला गया पांच सौ वर्ष पहले के उस अतीत में, जहाँ मैंने हिमालय को भी कम्पायमान कर देने वाला, उस त्यागमयी स्त्री, उस माता का वह अलौकिक कृत्य देखा। बिलख रहा था उसका अन्तर, लेकिन उसके मुखमण्डल पर शून्यजड़ित दृढता थी। हतप्रभ हुई मेरी आँखें नहीं देख सकती थीं त्याग और समर्पण से आलोकित उसके मुख-प्रदेश के तीव्र आभापुंज को!.....हठात् लौट आया मैं पुनः मेरे वर्तमान में।
प्रस्तुत कर रहा हूँ पन्ना धाय के जीवन से जुड़े उस अलौकिक अध्याय के कुछ पृष्ठ, उस प्रकोष्ठ से मेरे द्वारा लिए गए कुछ चित्रों (photos) के रूप में।
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