कहते हैं कि मनुष्य ताउम्र मन से तो युवा ही रहता है (अपवादों को छोड़कर) और यह सही भी प्रतीत होता है, लेकिन मैं अपनी जो कविता यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ वह वास्तव में मेरे द्वारा उस समय लिखी गई थी जब
मैंने अपनी युवावस्था की दहलीज़ पर कदम रखा ही था। कल्पना लोक में विचरण करने की उम्र थी वह! मैं समझता हूँ, मेरी यह कविता उम्र के उस दौर को परिभाषित करती हुई सी प्रतीत होगी आपको भी।
मैंने अपनी युवावस्था की दहलीज़ पर कदम रखा ही था। कल्पना लोक में विचरण करने की उम्र थी वह! मैं समझता हूँ, मेरी यह कविता उम्र के उस दौर को परिभाषित करती हुई सी प्रतीत होगी आपको भी।
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