सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

सिसकता-दहकता प्रजातन्त्र...

      कश्मीर में जल रहे अंगारे अभी शान्त भी नहीं हुए थे कि हरियाणा के पंचकूला व सिरसा सुलग उठे। शासकीय उदासीनता और अकर्मण्यता या यूँ कहिये कि जानबूझ कर आमन्त्रित की गई अराजकता ने
वह तबाही मचाई कि मानवता सिसक उठी। डेरा सच्चा सौदा प्रमुख, एक स्थापित बदमाश के सामने, जिसने धर्म का पाखण्डी मुखौटा लगा रखा था, प्रशासन बौना हो गया। अदालत द्वारा तथाकथित बाबा गुरमीत राम रहीम सिंह के मुजरिम करार होते ही प्रशासनिक लापरवाही के चलते  वहाँ पहले से ही एकत्र हुए हज़ारों जरखरीद गुंडे अनुयायियों ने सरकारी, गैरसरकारी सम्पत्तियों (इमारतें, दुपहिया-चौपहिया वाहन, आदि ) को जला कर वह  दृश्य उपस्थित कर दिया कि कोई हॉरर मूवी या एनिमेटेड ड्रेकुला अथवा डायनासोर की मूवी भी इतनी भयावह नहीं हो सकती थी। तीस से अधिक इंसान भी इस हिंसा में काल-कवलित हुए।
     इन हादसों के लिए उत्तरदायी हरियाणा के अकर्मण्य मुख्यमंत्री खट्टर को बर्खास्त करने की विपक्ष की जबरदस्त मांग के बावज़ूद केन्द्रीय नेतृत्व क्यों अभी तक खामोश है, ईश्वर ही जानता है। मरने वाले लोग जिन परिवारों के आधार-स्तम्भ रहे होंगे, उनका रूदन और हाहाकार प्रशासनिक व राजनैतिक अमले की संवेदनाओं को जगाने में कामयाब नहीं हो सका। टीवी पर यह सब अनहोनी होते देखना और अपने आक्रोश को वश में रख पाना हर दर्शक के लिए संभव नहीं हो पा रहा था।
    मीडिया के प्रति उपकृत हैं हम जिनके जांबाज संवाददाताओं ने अपनी जान पर खेल कर हमें जो कुछ घटित हो रहा था वह सब लाइव दिखाया जब कि पुलिस को भी कई जगह से भागना पड़ गया था। मीडिया इसलिए भी धन्यवाद का पात्र है कि उसके जरिये जनता को यह भी पता लगता रहा है कि इस बलात्कारी बाबा के अनुयायियों- जो लाखों-करोड़ों की संख्या में हैं, के वोट प्राप्त करने के लिए मंत्री और अन्य राजनेता बाबा की चरण-वन्दना करते रहे हैं और इसी कारण प्रशासन की छत्रछाया में यह लम्पट बाबा भोले या कहें कि मूर्ख धर्मान्ध लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करता रहा, जबरन बनाई गई साध्वियों की अस्मत लूटता रहा और करोड़ों-अरबों की संपत्ति का मालिक बन बैठा। एक साध्वी ने तो बाकायदा शिकायत भी दर्ज कराई।
    राजनीति का स्तर इस कदर गिर चुका है कि बीजेपी के सांसद साक्षी महाराज ने तो यह तक कह दिया- 'एक साध्वी के आरोप को महत्व दिया जा रहा है जो गढ़ा हुआ झूठ भी हो सकता है और बाबा के लाखों अनुयायियों को कोई नहीं देख-सुन रहा। यह तो भारतीय संस्कृति की छवि को धूमिल करने का षड्यंत्र है। इस हिंसा के लिए कोर्ट ज़िम्मेदार है।'
     ऐसे सांसद को निलंबित क्यों नहीं किया जाना चाहिए ?
     नहीं समझ में आता कि लोग पढाई-लिखाई में लाखों रुपये क्यों बर्बाद करते हैं जब कि दसवीं-बारहवीं तक की पढ़ाई भी बहुत हो जाती है राजनीति-व्यवसाय के लिए। एक बार घुस जाओ इसमें और कुछ हथकंडे सीखने के बाद सात पीढ़ियों तक की जीविका-व्यवस्था कर लो। लेकिन इस व्यवसाय से भी अधिक उपजाऊ व्यवसाय तो यह है कि बाबा बन जाओ और आसाराम, गुरुमीत, राम रहीम या राधे माँ बन जाओ, लाखों करोड़ों कमाओ और रंगीन ज़िन्दगी जीते हुए ऐश करो। क़ानून-रक्षकों की आँख कभी भूले से खुल भी गई तो उनके आका, राजनीतिज्ञों की झोली में कुछ डाल दो और ऐश जारी रखो। हाँ, जनता में से किसी ने फुफकारा और उसे मीडिया की लाठी का सहारा मिल गया, तब बात बिगड़ेगी। लेकिन फिर भी आपके पोषित गुंडे आपकी अय्याशी की उम्र कुछ तो बढ़ा ही देंगे और ऐसा न हो पाया तो भी क्या, आपने अपने जीवन का एक लम्बा हिस्सा तो ऐश करते गुज़ार ही लिया है, अब जेल भी हो जाय तो क्या फ़िक्र!
     बहरहाल गुरमीत राम रहीम को उसके पापों की सज़ा (बीस वर्ष की कैद व तीस लाख रुपया आर्थिक दंड) मिल ही गई और अब उसे अपनी शेष ज़िन्दगी जेल की कोठरी में ही गुज़ारनी होगी। अब उसके साथ होंगी मात्र उसकी पापों से सनी (हनी, नहीं ) हसीन यादें।
     यहाँ एक प्रश्न ज़रूर मेरे ज़ेहन में उठता है कि क्या यह सिसकता-दहकता प्रजातन्त्र मेरे देश को कल्पना का राम-राज्य या बापू के सपनों का भारत बनने की दिशा में ले जा सकेगा ? क्या आज के भ्रष्ट व बिकाऊ राजनीतिज्ञ प्रजातन्त्र के सच्चे प्रहरी कहलाने योग्य हैं ? यह यक्ष-प्रश्न यदि अनुत्तरित ही रहे तो देश की जनता को, जनता के प्रबुद्ध वर्ग को, शासन के अन्य प्रभावी विकल्प के विषय में सोचना ही होगा। 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"ऐसा क्यों" (लघुकथा)

                                   “Mother’s day” के नाम से मनाये जा रहे इस पुनीत पर्व पर मेरी यह अति-लघु लघुकथा समर्पित है समस्त माताओं को और विशेष रूप से उन बालिकाओं को जो क्रूर हैवानों की हवस का शिकार हो कर कभी माँ नहीं बन पाईं, असमय ही काल-कवलित हो गईं। ‘ऐसा क्यों’ आकाश में उड़ रही दो चीलों में से एक जो भूख से बिलबिला रही थी, धरती पर पड़े मानव-शरीर के कुछ लोथड़ों को देख कर नीचे लपकी। उन लोथड़ों के निकट पहुँचने पर उन्हें छुए बिना ही वह वापस अपनी मित्र चील के पास आकाश में लौट आई। मित्र चील ने पूछा- “क्या हुआ,  तुमने कुछ खाया क्यों नहीं ?” “वह खाने योग्य नहीं था।”- पहली चील ने जवाब दिया। “ऐसा क्यों?” “मांस के वह लोथड़े किसी बलात्कारी के शरीर के थे।” -उस चील की आँखों में घृणा थी।              **********

व्यामोह (कहानी)

                                          (1) पहाड़ियों से घिरे हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में एक छोटा सा, खूबसूरत और मशहूर गांव है ' मलाणा ' । कहा जाता है कि दुनिया को सबसे पहला लोकतंत्र वहीं से मिला था। उस गाँव में दो बहनें, माया और विभा रहती थीं। अपने पिता को अपने बचपन में ही खो चुकी दोनों बहनों को माँ सुनीता ने बहुत लाड़-प्यार से पाला था। आर्थिक रूप से सक्षम परिवार की सदस्य होने के कारण दोनों बहनों को अभी तक किसी भी प्रकार के अभाव से रूबरू नहीं होना पड़ा था। । गाँव में दोनों बहनें सबके आकर्षण का केंद्र थीं। शान्त स्वभाव की अठारह वर्षीया माया अपनी अद्भुत सुंदरता और दीप्तिमान मुस्कान के लिए जानी जाती थी, जबकि माया से दो वर्ष छोटी, किसी भी चुनौती से पीछे नहीं हटने वाली विभा चंचलता का पर्याय थी। रात और दिन की तरह दोनों भिन्न थीं, लेकिन उनका बंधन अटूट था। जीवन्तता से भरी-पूरी माया की हँसी गाँव वालों के कानों में संगीत की तरह गूंजती थी। गाँव में सबकी चहेती युवतियाँ थीं वह दोनों। उनकी सर्वप्रियता इसलिए भी थी कि पढ़ने-लिखने में भी वह अपने सहपाठियों से दो कदम आगे रहती थीं।  इस छोटे

पुरानी हवेली (कहानी)

   जहाँ तक मुझे स्मरण है, यह मेरी चौथी भुतहा (हॉरर) कहानी है। भुतहा विषय मेरी रुचि के अनुकूल नहीं है, किन्तु एक पाठक-वर्ग की पसंद मुझे कभी-कभार इस ओर प्रेरित करती है। अतः उस विशेष पाठक-वर्ग की पसंद का सम्मान करते हुए मैं अपनी यह कहानी 'पुरानी हवेली' प्रस्तुत कर रहा हूँ। पुरानी हवेली                                                     मान्या रात को सोने का प्रयास कर रही थी कि उसकी दीदी चन्द्रकला उसके कमरे में आ कर पलंग पर उसके पास बैठ गई। चन्द्रकला अपनी छोटी बहन को बहुत प्यार करती थी और अक्सर रात को उसके सिरहाने के पास आ कर बैठ जाती थी। वह मान्या से कुछ देर बात करती, उसका सिर सहलाती और फिर उसे नींद आ जाने के बाद उठ कर चली जाती थी।  मान्या दक्षिण दिशा वाली सड़क के अन्तिम छोर पर स्थित पुरानी हवेली को देखना चाहती थी। ऐसी अफवाह थी कि इसमें भूतों का साया है। रात के वक्त उस हवेली के अंदर से आती अजीब आवाज़ों, टिमटिमाती रोशनी और चलती हुई आकृतियों की कहानियाँ उसने अपनी सहेली के मुँह से सुनी थीं। आज उसने अपनी दीदी से इसी बारे में बात की- “जीजी, उस हवेली का क्या रहस्य है? कई दिनों से सुन रह