एक साहसी युवती के जीवन-संघर्ष की कहानी... 'डाकिया'- दरवाज़े की ओर से आई आवाज़ से मैं चौंक पड़ी। मैंने देखा, मेरी मेड, कांता दरवाज़े की तरफ जा रही थी। इधर मैं तेजी से बैड रूम की ओर बढ़ी और अपने बिस्तर पर निढाल हो कर पड़ गई। मुझे बैडरूम की ओर जाते देख कान्ता को निश्चित ही आश्चर्य नहीं हुआ होगा क्योंकि वह मेरी मनःस्थिति समझती थी। मन बेवज़ह आशंकित हो उठा था। मेरी आँखें पलकों का बोझ नहीं सह पा रही थीं। पलकें आँखों पर झुक आयीं और अनायास ही...बंद पलकों में मेरा अतीत तैरने लगा। .....मैं और राजेश एक ही कॉलोनी में रहते थे। राजेश का परिवार नया-नया ही उस कॉलोनी में आया था। मैं और राजेश दोनों एक ही कॉलेज में प्रथम वर्ष में पढ़ते थे, लेकिन सैक्शन अलग थे इसलिए दोनों एक-दूसरे से अपरिचित थे। उस दिन हमारे कॉलेज में 'वादविवाद प्रतियोगिता' का आयोजन था। इस प्रतियोगिता में कुल नौ प्रतिभागी थे और लड़की प्रतिभागी केवल मैं थी। मैं विषय के पक्ष में बोलने वाले प्रतिभागियों की पंक्ति में बैठी थी और विपक्षी चार प्रतिभागी हमारे स