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डायरी के पन्नों से ... "आधुनिक मित्र" (हास्य कविता)

रीजनल कॉलेज, अजमेर में प्रथम वर्ष के अध्ययन-काल में लिखी गई मेरी इस हल्की-फुल्की हास्य कविता को उस समय के मेरे साथियों-परिचितों ने बहुत सराहा था। प्रस्तुत कर रहा हूँ इस कविता को आप सब के लिए---                "आधुनिक मित्र" सोचा  मैंने  मिलूँ  मित्र से, मौसम  बड़ा  सुहाना  था। कृष्ण-सुदामा के ही जैसा, रिश्ता  बड़ा  पुराना  था। मज़ा लिया तफरी का मैंने, टैक्सी को  रुपया दे कर। भौंहें उसकी चढ़ी हुई थीं, जब पहुंचा मैं उसके घर। मैंने समझा उन साहब को मेरा  आना  अखरा  था। पर उनके गुस्से का कारण, एक  जनाना  बकरा  था। पूछा मैंने जरा सहम कर. 'हो  उदास  कैसे  भाई ?' जरा तुनककर वह भी बोला, 'आफत अच्छी  घर आई।' चौंक पड़ा मैं, बोला उससे, 'अमां यार, क्या बकते हो! अरसे से मिलने आया हूँ, मुझको आफत कहते हो!' तब वह बोला थोड़ा हँसकर, 'तुम  यार,  बड़े  भोले  हो। बस  उल्लू के पट्ठे  हो  या, कुछ  दिमाग़  के पोले  हो। मेरी बकरी ही आफत है, बस  घाटे  का  सौदा  है। दस रुपये कुछ पैसे देकर, मैंने   उसे    ख़रीदा   है। दूध छटांक दिया करती है, द

भावी पीढ़ी के बारे में सोचें

     प्राप्त जानकारियात के अनुसार पृथ्वी पर उपलब्ध जल-राशि में से पेयजल मात्र 1% है और उसमें से भी उपयोग करने योग्य आसानी से उपलब्ध जल मात्र 0.03%  है। ऐसी दयनीय स्थिति से अवगत होते हुए भी हम बेपरवाह हैं। हम आने वाले समय की भयावहता को नहीं देख पा रहे हैं।      इंसान रिहायिशी बस्तियाँ बनाने के लिए

न्यायाधीशों की नियुक्ति सरकार करे !

    हमारे घर में घर के छुट-पुट काम में मदद के लिए एक मेड रखी हुई है। वह एक आदिवासी महिला है। इससे पहले कि दलितों का कोई तथाकथित मसीहा इस पर ऐतराज करे कि हमने एक दलित (ST-SC) वर्ग की महिला को सेवा में क्यों रखा है और यह कि यह तो उसका शोषण

इसलिए आवश्यक था...

'      इसलिए आवश्यक था माननीय उच्च न्यायलय का ST-SC Act से सम्बंधित हाल में जारी आदेश, क्योंकि इस एक्ट के प्रावधानों के अंतर्गत यदि बिना उचित जांच के सवर्ण को गिरफ्तार कर लिया जाय और उनकी जमानत भी स्वीकार नहीं की जाए तो कभी द्वेषवष और कभी बदले की भावना से

आज का 'भारत-बन्द' आयोजन

           आरक्षण के विरोध में आज 10 अप्रेल, 18 को आहूत 'भारत बन्द' की सफलता के लिए कामना करता हूँ। हमारे दलित भाइयों द्वारा माननीय सुप्रीम कोर्ट के न्यायोचित आदेश का विरोध करने हेतु 2 अप्रेल को उनके द्वारा आयोजित भारत बन्द में जिस तरह से हिंसा व उपद्रव किये गए थे, उसकी जितनी निन्दा की जाए, कम है।  सच्चे लोकतन्त्र में हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता। हिंसा मानव जाति की स्वाभाविक प्रकृति नहीं है।     हमें चाहिये कि हम आज के बन्द को शांतिपूर्ण तरीके से सफलता प्रदान कर अपनी शालीनता का परिचय दें  और अपने गुमराह दलित भाइयों के समक्ष एक आदर्श उदाहरण स्थापित करें। अहिंसा, हिंसा से कहीं अधिक शक्तिशाली है और ऐसे ही अहिंसक आन्दोलन के कारण अंग्रेजों को हमारा देश छोड़कर भागना पड़ा था।    मित्रों, हम सत्य की राह पर हैं। हम आंदोलन करें और जोर-शोर से करें, लेकिन ध्यान रखें कि अपना आंदोलन पूर्णतः अहिंसक रहे। किसी भी प्रकार की षडयन्त्रकारी गतिविधियों से भी सावधान रहें।    और...और हमारा यह आन्दोलन आज के भारत-बन्द तक सीमित न रहे, यह क्रमबद्ध रूप से तब तक चलता रहे जब तक हम आरक्षण की भेदभाव

सत्ता-सुख के लिए...

    काले हिरन के शिकार के अपराध में अभिनेता सलमान खान को आज 5 वर्ष की कैद की सजा सुनाई गई। न्याय सभी के लिए समान है चाहे वह गरीब हो या अमीर या कितना भी हो साधन-संपन्न! हम प्रशंसा करते हैं अपराधी को कटघरे में लाने वाली एजेंसी की और प्रशंसा करते हैं न्यायाधिकारी की, जिन्होंने अपराधी को उसके अंजाम तक पहुंचाया।     बहुत सहजता से मैंने उपरोक्त वक्तव्य दे दिया, लेकिन न्यायिक प्रक्रियाओं तक पहुँचने योग्य अन्य मसलों के विषय में क्या हम नहीं सोचेंगे? क्या सरकारी शासन-प्रशासन और सरकार की हर गतिविधि की बखिया उधेड़ने को तत्पर रहने वाले विपक्षी नेता

'उदयपुर- हमारा स्मार्ट शहर!

         आज तक नहीं समझ पाया हूँ कि हमारे शहर उदयपुर को 'स्मार्ट शहर' बनाने के लिए क्यों नामजद किया गया है! हमारा उदयपुर तो प्रारम्भ से ही स्मार्ट है। राज्य-प्रशासन या केन्द्रीय शासन को यहाँ की स्मार्टनैस दिखाई नहीं दी- यही आश्चर्य की बात है। यहाँ कौन सी चीज़ स्मार्ट नहीं है?... शहर स्मार्ट बनता है अपने विन्यास से, निवासियों की जीवन-शैली से। यहाँ के स्थानीय प्रशासन से अधिक स्मार्ट तो यहाँ की जनता है और जब जनता ज़रुरत से ज्यादा स्मार्ट है तो प्रशासन अपना सिर क्यों खपाए! आखिर प्रशासन के नुमाइन्दों को अपना समय निकालते हुए अपने अस्तित्व की रक्षा भी तो करनी है।  ... तो हमारे यहाँ की स्मार्टनैस की बानगी जो सभी शहरवासियों ने देख रखी है, वही फिर दिखाना चाहूँगा।     सर्वप्रथम यातायात-व्यवस्था की बात करें। यातायात के नियम यहाँ भी वही हैं जो सब शहरों में होते हैं। शहर में यातायात को माकूल रखने के लिए चौराहों पर कहीं-कहीं इक्का-दुक्का सिपाही तैनात हैं। यदि दो-तीन सिपाही एक ही जगह हैं तो उनका ज्यादातर समय आपस में बातचीत में गुज़रता है और यदि एक ही है तो कुछ एलर्ट रहकर आते-जाते वाहनों को द