काले हिरन के शिकार के अपराध में अभिनेता सलमान खान को आज 5 वर्ष की कैद की सजा सुनाई गई। न्याय सभी के लिए समान है चाहे वह गरीब हो या अमीर या कितना भी हो साधन-संपन्न! हम प्रशंसा करते हैं अपराधी को कटघरे में लाने वाली एजेंसी की और प्रशंसा करते हैं न्यायाधिकारी की, जिन्होंने अपराधी को उसके अंजाम तक पहुंचाया।
बहुत सहजता से मैंने उपरोक्त वक्तव्य दे दिया, लेकिन न्यायिक प्रक्रियाओं तक पहुँचने योग्य अन्य मसलों के विषय में क्या हम नहीं सोचेंगे? क्या सरकारी शासन-प्रशासन और सरकार की हर गतिविधि की बखिया उधेड़ने को तत्पर रहने वाले विपक्षी नेता
देश में होने वाले अपराधों और अपराधियों के प्रति सतर्क हैं? नहीं, कतई नहीं!
पैसा कई बार न्याय को नहीं खरीद पाता, लेकिन घृणित राजनीति कई बार अपराधी को न्याय के दरवाज़े तक ले जाने ही नहीं देती! जघन्य अपराध करके भी आप अपराधी नहीं हैं, यदि एक लम्बी-चौड़ी भीड़ आपके साथ है। क़ानून के रक्षक ही नहीं , क़ानून के निर्माता भी आपके भीषण अपराध को छोटी-सी भूल का नाम देकर अपने दायित्व से किनारा कर लेंगे।
माननीय सुप्रीम कोर्ट के पूर्णतः न्यायोचित आदेश को अपने पक्ष का न मानकर, भारत-बंद की आड़ में अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग की असंयमित, उपद्रवी भीड़ ने पूरे देश में अभी हाल विनाश का जो तांडव रचा था, उसमें यही सब-कुछ हुआ। कई जानें इस तांडव की भेंट चढ़ गई तो करोड़ों की संपत्ति नष्ट-भ्रष्ट हो गई। इस उन्माद को उकसाने वाले लोग तबाही के बाद ताली बजा रहे थे तो शासक-वर्ग और विपक्ष के लोग इस विनाश-लीला में अपना भविष्य तलाश रहे थे। अपने आप को सताए हुए और पीड़ित कहने वाले आततायी अपने उन भाइयों पर अत्याचार कर रहे थे जिन्होंने उनको सभी सुख-सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए बरसों से अपना सुख-चैन गवां रखा है। इस नृशंस पाप-लीला को कहीं-कहीं तो पुलिस भी मूक-दर्शक बनी देख रही थी। क्या इन लोगों का अपराध सलमान खान के अपराध से कई गुना अधिक नहीं है?
सुप्रीम कोर्ट ने एक न्यायसंगत बात यह कह दी कि S.C./S.T. Act के तहत बिना जांच किये किसी की जमानत स्वीकार नहीं किया जाना उचित नहीं है तो इतना बवाल मचाने की बात कहाँ से आ गई? क्या यह कोर्ट की अवमानना नहीं है? कोई एक व्यक्ति कोर्ट के आदेश की अवहेलना करे तो अवमानना कही जाती है, लेकिन एक पगलाया हुआ झुण्ड ऐसा अपराध करे तो क्या वह अवमानना नहीं कहलाएगी?
विपक्षी नेता इस नारकीय कृत्य की निंदा करने और अपराधियों को दण्डित करने के लिए आवाज़ उठाने के बजाय उपद्रव से निपटने में सरकार की विफलता का रोना रो रहे हैं, उसकी कमियां ढूढ़ रहे हैं। इसकी एक बानगी श्री राहुल गांधी का कल का ताजा बयान है।
यदि किसी दलित पर अत्याचार होता है तो निश्चित ही अत्याचारी को कठोर दण्ड दिया जाना चाहिए, लेकिन संदेह या कुचक्र में फंसे निरपराध को सिर्फ सवर्ण होने के कारण गिरफ्तार कर जमानत भी नहीं स्वीकारी जाए- यह कैसी अमानवीय सोच है!
हिन्दू-समाज में अलगाव पैदा करने के कुचक्र को हमें समय रहते कुचल डालना होगा अन्यथा तबाही मच जायेगी। वोटों के लालची भेड़िये सत्ता-सुख के लिए जनता के अमन-चैन को दांव पर लगा रहे हैं, लेकिन वह भावी पीढ़ी का जीवन कितना बीभत्स बनाने जा रहे हैं, नहीं जानते।
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