'
इसलिए आवश्यक था माननीय उच्च न्यायलय का ST-SC Act से सम्बंधित हाल में जारी आदेश, क्योंकि इस एक्ट के प्रावधानों के अंतर्गत यदि बिना उचित जांच के सवर्ण को गिरफ्तार कर लिया जाय और उनकी जमानत भी स्वीकार नहीं की जाए तो कभी द्वेषवष और कभी बदले की भावना से
इसका दुरूपयोग होने की पूरी संभावना रहती है और निरपराध सवर्ण की जान सांसत में आ जाएगी। ऐसा निरंकुश क़ानून अमानवीय ही कहा जायेगा।
इसमें कोई संदेह नहीं कि कभी-कभार किसी सिरफिरे सवर्ण द्वारा दलित वर्ग के किसी व्यक्ति के साथ ज्यादती की जाती है, लेकिन उसे उसके अपराध के लिए दण्डित करने के पूर्ण प्रावधान सामान्य क़ानून-प्रणाली में मौजूद हैं। लेकिन ST-SC Act के प्रावधानों के तहत यदि बिना किसी जांच के किसी निर्दोष सवर्ण को सलाखों के पीछे डाल दिया जाय तो क्या उस व्यक्ति की खंडित गरिमा को क़ानून पुनः सहेज सकेगा?
मैं यहाँ विपरीत प्रकृति के दो नवीनतम दृष्टांत मेरी बात के समर्थन में संलग्न कर रहा हूँ जिनसे मेरे कथन की सत्यता और सारगर्भिता को समझा जा सकता है। एक दृष्टान्त से स्पष्ट हो रहा है कि कैसे एक झूठ का सहारा लेकर दलित वर्ग के व्यक्ति ने सवर्ण को फंसाने की कोशिश की थी। क्या फिर भी माननीय न्यायालय के आदेश का विरोध करने की धृष्टता क्षमायोग्य कही जा सकेगी ?
इसलिए आवश्यक था माननीय उच्च न्यायलय का ST-SC Act से सम्बंधित हाल में जारी आदेश, क्योंकि इस एक्ट के प्रावधानों के अंतर्गत यदि बिना उचित जांच के सवर्ण को गिरफ्तार कर लिया जाय और उनकी जमानत भी स्वीकार नहीं की जाए तो कभी द्वेषवष और कभी बदले की भावना से
इसका दुरूपयोग होने की पूरी संभावना रहती है और निरपराध सवर्ण की जान सांसत में आ जाएगी। ऐसा निरंकुश क़ानून अमानवीय ही कहा जायेगा।
इसमें कोई संदेह नहीं कि कभी-कभार किसी सिरफिरे सवर्ण द्वारा दलित वर्ग के किसी व्यक्ति के साथ ज्यादती की जाती है, लेकिन उसे उसके अपराध के लिए दण्डित करने के पूर्ण प्रावधान सामान्य क़ानून-प्रणाली में मौजूद हैं। लेकिन ST-SC Act के प्रावधानों के तहत यदि बिना किसी जांच के किसी निर्दोष सवर्ण को सलाखों के पीछे डाल दिया जाय तो क्या उस व्यक्ति की खंडित गरिमा को क़ानून पुनः सहेज सकेगा?
मैं यहाँ विपरीत प्रकृति के दो नवीनतम दृष्टांत मेरी बात के समर्थन में संलग्न कर रहा हूँ जिनसे मेरे कथन की सत्यता और सारगर्भिता को समझा जा सकता है। एक दृष्टान्त से स्पष्ट हो रहा है कि कैसे एक झूठ का सहारा लेकर दलित वर्ग के व्यक्ति ने सवर्ण को फंसाने की कोशिश की थी। क्या फिर भी माननीय न्यायालय के आदेश का विरोध करने की धृष्टता क्षमायोग्य कही जा सकेगी ?
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें