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संदेश

न्यायाधीशों की नियुक्ति सरकार करे !

    हमारे घर में घर के छुट-पुट काम में मदद के लिए एक मेड रखी हुई है। वह एक आदिवासी महिला है। इससे पहले कि दलितों का कोई तथाकथित मसीहा इस पर ऐतराज करे कि हमने एक दलित (ST-SC) वर्ग की महिला को सेवा में क्यों रखा है और यह कि यह तो उसका शोषण

इसलिए आवश्यक था...

'      इसलिए आवश्यक था माननीय उच्च न्यायलय का ST-SC Act से सम्बंधित हाल में जारी आदेश, क्योंकि इस एक्ट के प्रावधानों के अंतर्गत यदि बिना उचित जांच के सवर्ण को गिरफ्तार कर लिया जाय और उनकी जमानत भी स्वीकार नहीं की जाए तो कभी द्वेषवष और कभी बदले की भावना से

आज का 'भारत-बन्द' आयोजन

           आरक्षण के विरोध में आज 10 अप्रेल, 18 को आहूत 'भारत बन्द' की सफलता के लिए कामना करता हूँ। हमारे दलित भाइयों द्वारा माननीय सुप्रीम कोर्ट के न्यायोचित आदेश का विरोध करने हेतु 2 अप्रेल को उनके द्वारा आयोजित भारत बन्द में जिस तरह से हिंसा व उपद्रव किये गए थे, उसकी जितनी निन्दा की जाए, कम है।  सच्चे लोकतन्त्र में हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता। हिंसा मानव जाति की स्वाभाविक प्रकृति नहीं है।     हमें चाहिये कि हम आज के बन्द को शांतिपूर्ण तरीके से सफलता प्रदान कर अपनी शालीनता का परिचय दें  और अपने गुमराह दलित भाइयों के समक्ष एक आदर्श उदाहरण स्थापित करें। अहिंसा, हिंसा से कहीं अधिक शक्तिशाली है और ऐसे ही अहिंसक आन्दोलन के कारण अंग्रेजों को हमारा देश छोड़कर भागना पड़ा था।    मित्रों, हम सत्य की राह पर हैं। हम आंदोलन करें और जोर-शोर से करें, लेकिन ध्यान रखें कि अपना आंदोलन पूर्णतः अहिंसक रहे। किसी भी प्रकार की षडयन्त्रकारी गतिविधियों से भी सावधान रहें।    और...और हमारा यह आन्दोलन आज के भारत-बन्द तक सीमित न रहे, यह क्रमबद्ध रूप से तब तक चलता रहे जब तक हम आरक्षण की भेदभाव

सत्ता-सुख के लिए...

    काले हिरन के शिकार के अपराध में अभिनेता सलमान खान को आज 5 वर्ष की कैद की सजा सुनाई गई। न्याय सभी के लिए समान है चाहे वह गरीब हो या अमीर या कितना भी हो साधन-संपन्न! हम प्रशंसा करते हैं अपराधी को कटघरे में लाने वाली एजेंसी की और प्रशंसा करते हैं न्यायाधिकारी की, जिन्होंने अपराधी को उसके अंजाम तक पहुंचाया।     बहुत सहजता से मैंने उपरोक्त वक्तव्य दे दिया, लेकिन न्यायिक प्रक्रियाओं तक पहुँचने योग्य अन्य मसलों के विषय में क्या हम नहीं सोचेंगे? क्या सरकारी शासन-प्रशासन और सरकार की हर गतिविधि की बखिया उधेड़ने को तत्पर रहने वाले विपक्षी नेता

'उदयपुर- हमारा स्मार्ट शहर!

         आज तक नहीं समझ पाया हूँ कि हमारे शहर उदयपुर को 'स्मार्ट शहर' बनाने के लिए क्यों नामजद किया गया है! हमारा उदयपुर तो प्रारम्भ से ही स्मार्ट है। राज्य-प्रशासन या केन्द्रीय शासन को यहाँ की स्मार्टनैस दिखाई नहीं दी- यही आश्चर्य की बात है। यहाँ कौन सी चीज़ स्मार्ट नहीं है?... शहर स्मार्ट बनता है अपने विन्यास से, निवासियों की जीवन-शैली से। यहाँ के स्थानीय प्रशासन से अधिक स्मार्ट तो यहाँ की जनता है और जब जनता ज़रुरत से ज्यादा स्मार्ट है तो प्रशासन अपना सिर क्यों खपाए! आखिर प्रशासन के नुमाइन्दों को अपना समय निकालते हुए अपने अस्तित्व की रक्षा भी तो करनी है।  ... तो हमारे यहाँ की स्मार्टनैस की बानगी जो सभी शहरवासियों ने देख रखी है, वही फिर दिखाना चाहूँगा।     सर्वप्रथम यातायात-व्यवस्था की बात करें। यातायात के नियम यहाँ भी वही हैं जो सब शहरों में होते हैं। शहर में यातायात को माकूल रखने के लिए चौराहों पर कहीं-कहीं इक्का-दुक्का सिपाही तैनात हैं। यदि दो-तीन सिपाही एक ही जगह हैं तो उनका ज्यादातर समय आपस में बातचीत में गुज़रता है और यदि एक ही है तो कुछ एलर्ट रहकर आते-जाते वाहनों को द

डायरी के पन्नों से ..."बोलो वह कौन जुआरी है?"

       रीजनल कॉलेज ऑफ एजुकेशन, अजमेर में तृतीय वर्ष के अध्ययन के दौरान लिखी गई यह कविता भी स्नेही पाठकों को अवश्य पसंद आएगी, ऐसा मानता हूँ।      प्रिय पाठक-बंधुओं! प्रारम्भिक रूप से इस कविता के छः छन्द मैंने लिखे थे। कॉलेज के एक समारोह में मुझे कविता-पाठ करना था और मैं यह कविता पढने के लिए हॉल में पहली पंक्ति में बैठा अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहा था। तभी मेरी नज़र दायीं पंक्ति में बैठी मेरी एक जूनियर 'वसुधा टीके' पर पड़ी। इस समारोह में कुछ लड़कियां साड़ी पहन कर आई थीं, उनमें से एक वसुधा भी थी। वसुधा हरे रंग की साड़ी में बहुत सुन्दर लग रही थी। मेरे कवि-मन में शरारत के कीड़े कुलबुलाये और मैंने अपनी कविता में एक आशुरचित (तुरत रचा गया) छन्द और जोड़ दिया। नाम पुकारे जाने पर मैंने स्टेज पर जाकर यह कविता सुनाई।   अब मैं अकेला खुराफाती तो था नहीं कॉलेज में, सो वसुधा से जुड़ा छन्द आते ही आगे-पीछे के कई साथी छात्र-छात्राओं की ठहाका भरी निगाहें वसुधा पर जम गईं और वसुधा थी कि शर्म से पानी-पानी! सच मानिए, वसुधा फिर भी मुझ पर नाराज़ नहीं हुई, बहुत भली लड़की थी वह!   (नोट :- आशुरचित छन्द को गहरे

क्योंकि मैं नेता नहीं हूँ..

       मुझे कोई शर्मिंदगी नहीं है और न ही कोई गर्व यह स्वीकारते हुए कि मैं धर्मनिरपेक्ष नहीं हूँ। मुझे यह कहने में भी कतई गुरेज नहीं है कि मेरी दृष्टि में धर्मनिरपेक्ष कोई भी नहीं होता सिवाय राजनीतिज्ञों और आडम्बर का लबादा ओढ़े कतिपय बुद्धिजीवियों के। धर्मनिरपेक्षता वह चोला है जिसे गाहे-बगाहे पहन कर मौकापरस्त कोई भी व्यक्ति स्वयं को एक विशेष जाति के मानव-समूह में खड़ा कर लेता है। घिनौना हो गया है धर्मनिरपेक्षता का आज का स्वरूप!       मुझे गर्व है कि मैं एक हिन्दू हूँ और हिंदुत्व में गहन आस्था रखता हूँ, लेकिन किसी भी अन्य धर्म के प्रति हेय दृष्टि नहीं रखता। जैसे मेरे मन में अपने धर्म के प्रति श्रद्धा-भाव है, उसी तरह अपने-अपने  धर्म के प्रति श्रद्धा रखने का अधिकार हर धर्म के अनुयायी को है, ऐसी मेरी मान्यता है। मैं अपने हिन्दू -मन्दिर में अपने आराध्य देवी-देवता के सम्मुख शीश झुकाता हूँ, उन्हें  नमन करता हूँ।      मैं किसी भी अन्य धर्मावलम्बी के आराध्य के सम्मुख भी नतमस्तक होता हूँ, क्योंकि मैं मानता हूँ कि ईश्वरीय सत्ता को इंसान ने नाम भले ही अलग-अलग दे दिए हैं पर है वह एक ही शक्ति