"अरे रे रे... यह क्या कर रहे हो? क्या जला रहे हो? कौन सी किताब है यह?" -सारिका ने बरामदे में तन्मय को एक पुस्तक जलाते देख कर सवालों की झड़ी लगा दी। ड्रॉइंग रूम से अब बरामदे में तन्मय के पास आ गई सारिका ने देखा, तन्मय उस पुस्तक को जला रहा था जिसका तीन-चार दिन पहले ही विमोचन हुआ था और विमोचन-कार्यक्रम में वह गया भी था। पुस्तक का नाम था- 'वृद्धाश्रम का सच!' सारिका को याद आया, तन्मय ने विमोचन-कार्यक्रम से लौटने पर बताया था कि कार्यक्रम में उपस्थित कुछ वरिष्ठ लेखकों ने पुस्तक व उसके नवोदित लेखक की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी। तन्मय ने उस पुस्तक को पढ़ने के बाद कहा था- "आजकल की गैरज़िम्मेदार सन्तानों की आँखें खुल जाएँगी इसको पढ़ कर। लोगों की स्वार्थपरता पर करारा प्रहार करने के साथ ही वृद्धाश्रम की व्यवस्थाओं की भी पोल खोल दी है लेखक ने!" तन्मय इतना प्रभावित हुआ था कि उसने उसे भी इस पुस्तक को पढ़ने की सलाह दी थी। सारिका ने देखा, किताब के पृष्ठों के जलने से धुआँ भी