सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

व्यंग्य लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बहुत हो गया...

   गहन अध्ययन और शोध के उपरान्त यह तथ्य उजागर हुआ कि भक्तों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-    1) सामान्य भक्त                   2) अन्ध भक्त     तो मित्रों, सन्दर्भ है अभी हाल ही दिल्ली में हुए चुनावों का। चुनाव के परिणामों के बाद सामान्य भक्तों ने वस्तु-स्थिति को समझा, गुणावगुणों के आधार पर अपने भक्ति-भाव की समीक्षा की और अन्ततः सत्य को स्वीकार कर केजरीवाल की विजय का स्वागत भी किया। सत्य की राह पर आने के लिए उन्हें हार्दिक बधाई!    अन्ध भक्त अखाड़े में उतरे उस दम्भी पहलवान के समान हैं जो चित्त होने के बाद भी अपनी टांग ऊँची कर कहे कि वह हारा नहीं है। यह लोग 'खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे' के ही अंदाज़ में अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं मानो सच्चाई को ही बदल देंगे। इनको कोई समझाए कि वह उनके नेताओं के झूठ, चापलूसी व अकर्मण्यता से उपजी विफलता को समझें और स्वीकारें।    जितना झूठ और विष केजरीवाल के विरुद्ध उंडेला गया, जितनी भ्रान्तियाँ उनके विरुद्ध फैलाई गईं, उसके कारण जनता में उपजा आक्रोश केजरीवाल को प्राप्त होने वाले वोटों में तब्दील होता चला गया। इसीलिए हालत यह हो गई है कि

कोई तो दोषी है …

     कितनी अच्छी व्यवस्था थी- हर 15-20 फीट पर सड़कों पर छोटे-बड़े गड्ढे यानि कि अघोषित स्पीड-ब्रेकर थे। किशोर, जवान, बुजुर्ग, सभी बहुत ही सावधानी से वाहन चलाते थे।     नगर निगम के चुनावों के चलते इन दिनों सड़कों का डामरीकरण करके यातायात एकदम सुगम कर दिया गया है।     अब आलम यह है कि लम्बे समय की आदत के कारण बुजुर्गों सहित कुछ जिम्मेदार किस्म के लोग अब भी सड़कों पर धीमे-धीमे  ही वाहन चला रहे हैं और रफ़्तार के बाज़ीगर, शोहदे किस्म के लोग बेतहाशा अपने वाहन दौड़ाते हुए कई बार धीमे चलने वाले व्यक्ति को टक्कर मार देते हैं। धीमे चलने वाले लोग कुसूरवार भी तो हैं, वह क्यों नहीं सड़कों पर फर्राटे मारते, जबकि सड़कें शानदार बना दी गई हैं।     कोई न कोई तो दोषी है। कुल मिलाकर यही कहना उचित होगा कि बेड़ा गर्क हो चुनावी राजनीति का, जिसके कारण सड़कों का उद्धार हुआ है। 

इस तत्परता के लिए बधाई !

    राजनैतिक परिवर्तन के साथ ही प्रशासन चुस्त हुआ। नितिन गडकरी के द्वारा दायर मानहानि के मामले में अरविन्द केजरीवाल को आज हिरासत में लिया गया और जमानत नहीं दी जाने के कारण दो दिन के लिए जेल भेजा गया। कार्य-निष्पादन में वाकई में तेजी आ गई है। इस तत्परता के लिए बधाई !    गडकरी सही हैं या गलत- यह तय होगा न्यायिक प्रक्रिया से, लेकिन केजरीवाल तो दोषी हैं ही। क्यों वह भ्रष्टाचार के विरुद्ध इतना मुखर हो रहे हैं, जब कि भ्रष्टाचार तो इस देश की हवा में भी रच-बस गया है। यहाँ की जनता भी भ्रष्टाचार के साथ जीना सीख गई है, जीना ही नहीं सीख गई अपितु इस माहौल का आनंद उठा रही है। इसीलिए तो उसने AAP को मात्र चार सांसदों तक सीमित रखा है। 

राजनीति ऊंची चीज़ है

  सच ही राजनीति बहुत ही ऊँची चीज़ है। मोदी जी अभी अमेठी में भाषण दे रहे थे और करबद्ध मीडिया इसका लाइव प्रसारण कर रहा था। मोदी जी कह रहे थे कि चाय वाले का उभरना सब को रास नहीं आ रहा है और यह कि मेरे भविष्य का मत सोचो, मैं तो वापस चाय बना कर बेच सकता हूँ और यह भी कि एक गरीब माँ का बेटा हूँ। यही बात वह पहले भी कई बार कह चुके हैं। समझ से परे है कि जो व्यक्ति 10 वर्षों से मुख्य-मंत्री है वह अभी भी चाय बेचने वाला और गरीब माँ का बेटा कैसे हैं। उनकी माँ अभी तक गरीब क्यों हैं, मध्यम वर्ग की क्यों नहीं हो पाई हैं ? चलो भाई, कह रहे हैं तो मान लेते हैं, हमसे मनवाने के लिए ही तो कह रहे हैं।  हाँ, केजरीवाल जी इतना अच्छा नहीं बोल पाते। 

16 मई, 2014 के बाद.....

  16 मई, 2014 के बाद भारत देश की धरती पर कोई इंसान मौज़ूद नहीं होगा क्योंकि मोदी के विरोधियों को गिरिराज सिंह के अनुसार पाकिस्तान जाना होगा और मोदी के समर्थकों को फ़ारूक़ अब्दुल्ला के अनुसार समुद्र में डूब जाना होगा। ....... जय हिन्द !

कई रूप शैतान के

   कहते हैं इस धरती पर भगवान कई रूपों में  मिल जाता है, ठीक उसी तरह शैतान भी अलग-अलग रूपों में कई चेहरों के पीछे छिपा नज़र आता है। इसका नज़ारा इस चुनावी माहौल में हाल के दिनों में खूब ही देखने को मिला है। चन्द दिनों की बात है, कॉन्ग्रेसी नेता इमरान मसूद ने भाजपा के नरेंद्र मोदी की बोटी-बोटी काटने का प्रलाप किया था, इसके कुछ ही समय बाद सपा के मुलायम सिंह बलात्कारियों पर नरमी की वकालत कर जनता की थू-थू का पात्र बने थे और अब भाजपा (बिहार) नेता गिरिराज सिंह ने भी एक घृणित, आतंककारी बयान दिया है कि मोदी का विरोध करने वालों को पाकिस्तान जाना होगा। ऐसा कहते वक्त उन्होंने ऐसी कोई वसीयत भी नहीं दिखाई जिसमें भारत देश के पौराणिक किसी सम्प्रभु स्वामी ने इस देश की जागीर उनके नाम कर दी हो। उपरोक्त बयान देकर गिरिराज सिंह ने सम्भवतः मोदी जी (यदि PM बनते हैं) के मंत्रिमण्डल में स्थान तलाशने का प्रयास किया है, लेकिन वस्स्तुतः तो उन्होंने मोदी जी और भाजपा दोनों का ही अहित किया है। यही नहीं, उन्होंने उक्त कुटिल वक्तव्य से स्वयं अपना भी अहित ही किया है। तानाशाही सोच वाले ऐसे लोगों के कारण ही भाजपा अपने बू

प्रत्युत्तर

  मुझसे मेरे मित्रों ने पूछा कि भाई आप तो राजनैतिक स्वच्छता की बहुत बातें करते हो फिर मोदी जी के लिए जहरीली और हिंसक भाषा का प्रयोग कर साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने  का प्रयास करने वाले कॉन्ग्रेसी उम्मीदवार (सहारनपुर से) इमरान मसूद के बारे में कुछ क्यों नहीं लिखा। मैंने उन्हें बताया कि मैं केवल इन्सानों के बारे में लिखना पसंद करता हूँ। 

मीठा सा, प्यारा सा ख्वाब …

 'दि. 19-2-14 को राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित समाचार के अनुसार यू.पी. के मंत्री शिवाकांत ओझा ने एक समारोह में कहा कि यदि किसी कर्मचारी या अफ़सर ने रिश्वत मांगी तो उल्टा लटकाकर उसकी चमड़ी उधेड़ दी जायेगी। इससे पहले एक मंत्री शिवपाल यादव अफ़सरों के सामने यह कह चुके हैं कि यदि वह मेहनत से काम करते हैं तो  थोड़ी-बहुत चोरी कर सकते हैं।'     ऐसे नमूना-मन्त्रियों से सजी अखिलेश सरकार की अगुआई में तीसरा मोर्चा केंद्र में अगली सरकार बनाने का ख्वाब देख रहा है। खैर, ख्वाब ख्वाब ही तो है, कोई भी देख सकता है।   ख़ुशी-ख़ुशी एक ख्वाब मैंने भी कल देखा। ख़्वाब में मैंने देखा, अन्ना जी ने मुझसे कहा कि यदि उनके 17 सूत्रीय एजेंडे को मैंने मान लिया तो वह मुझे पी.एम. बनवा देंगे। अन्ना जी यह कह कर चले गए और साथ ही मेरा ख्वाब भी टूट गया, सोचने लगा कि अभी कल ही तो उन्होंने कुछ ऐसा ही आश्वासन ममता बेनर्जी को भी दिया है। सिर झटक कर मैंने अपनी आँखों के आगे आया जाला साफ़ किया कि हमारे यहाँ तो इलेक्शन होता है, अन्ना जी पी.एम. सेलेक्ट थोड़े ही कर सकते हैं। ख्वाब तो ख्वाब ही है चाहे मैं देखूं , ममता बेनर्जी देखें,

विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र :

मैंने देखा है विश्व-पटल पर उभरते मेरे देश के समग्र विकास को -   सुदूर किसी गांव में कहीं एकाध जगह लगे हैंडपम्प से  निकलती पतली-सी धार और पास में घड़े थामे पानी के लिए आपस में झगड़ती ग्रामीण बालाओं की कतार में;  शहर में सर्द रात में सड़क के किनारे पड़े, हाड़ तोड़ती सर्दी से किसी असहाय भिखारी के कंपकपाते बदन में;  कहीं अन्य जगह ऐसी ही किसी विपन्न, असमय ही बुढ़ा गई युवती के सूखे वक्ष से मुंह रगड़ते, भूख से बिलबिलाते शिशु के रूदन में;  किसी शादी के पंडाल से बाहर फेंकी गई जूठन में से खाने योग्य वस्तु तलाशते अभावग्रस्त बच्चों की आँखों की चमक में;                                                                       और....…और इससे भी आगे, विकास की ऊंचाइयों को देखा है -  पड़ौसी मुल्कों की आतंकवादी एवं विस्तारवादी हरकतों के प्रति मेरे देश के नेताओं की बेचारगी भरी निर्लज्ज उदासीनता में;  चुनावों से पहले मीठी मुस्कराहट के साथ अपने क्षेत्र की जनता के साथ घुल-मिल कर उनके जैसा होने का ढोंग रचकर, किसी मजदूर के हाथ से फावड़ा लेकर मिट्टी खोदते हुए, तो किसी लुहार से हथौड़ी लेकर लोहा पीटते हु

'मुंबई के बलात्कारी'---Posted by me on Facebook...on Dt.24-8-13

    मुंबई के बलात्कारियों ! काश, तुमने संत का चोला पहना होता तो यूँ आसानी से गिरफ्तार तो नहीं होते। तुम्हारे समर्थन में भोले- भाले, अन्धविश्वासी अनुयायियों की भीड़ भी तो नहीं है जो तुम्हें बचाने के लिए शोर मचाये। लेकिन … लेकिन फिर भी शायद तुम बच जाओगे फिर से ऐसा नारकीय कुकर्म करने के लिए क्योंकि मेरे देश का न तो कानून ही सक्षम है और न ही कानून के रखवाले। और नहीं, तो कोई नेता ही तुम्हारी ढाल बन जायेगा। अभी तो तुम्हारे जैसे नरपिशाचों की शिकार बनी दिल्ली की मासूमा के लहू के दाग सूखे भी नहीं हैं। कुछ समय तक कुछ संवेदनशील लोग तुम्हारी इस नामर्दगी को धिक्कारेंगे और फिर चुप हो जाएंगे, क्योंकि पंगु प्रशासन की संवेदनहीनता से अनेकों बार रूबरू हो चुके हैं। तुमसे ही एक सवाल -यह धरती तो पहले से ही कितने ही पापियों के बोझ से दबी पड़ी है फिर तुम्हारा पैदा होना क्यों ज़रूरी था ? … मेरे देशवासियों, हमारा देश शांति-पूर्वक जीने के लिए अब सुरक्षित नहीं रहा है…तब तक नहीं, जब तक कि कोई कृष्ण जन्म नहीं ले लेता ऐसे पापियों के संहार के लिए।

'आरक्षण' (लघुकथा)--Posted by me on Facebook...Dt.7-9-12

Gajendra Bhatt September 7, 2012   Likhne ka shauk bachpan se tha lekin kuchh mood hi nahin ban raha tha in dino, so tahalte-tahalte railway station ke platform par ja pahuncha. Do jano ko wahan ladte dekha to mein bhi pas mein chala gaya. Dono mein se ek S (Upper class) bola- "Lekin mein yahaan majdoori kyon nahin kar sakta, mein bhi to majdoor hun". Doosre majdoor R (Reserved class) ne kaha- "Kyonki ye jagah hum logon ke liye reserved hai. Tumhare varg ke  majdoor platform ke bahar majdoori kar sakte hain." S (samanya varg ka) bola- "Lekin bhaiya, platform ke bahar passenger bhi kam milenge aur paisa bhi kam milega?"  R (reserve varg ka)- "Ye tumhari problem hai. Akhbar nahin padhte kya? Sarkar se puchho. Aur han ye bhaiya- bhaiya kya hota hai, aukaat mein rehkar baat karo." Paas hi khada R ka saathi ( Reserved class) bola- "Akhbar kaise padhega, school mein admission milta to padhta na. ha ha ha ha..." S mayoo