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नवंबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

डायरी के पन्नों से ..."भूतपूर्व मिनिस्टर"

दि. 19-12-1969 को लिखी गई मेरी इस कविता में मैंने पहले 'सोनिया' की जगह 'गप्पा' (निजलिंगप्पा) तथा 'मोदी' की जगह 'इंदिरा' लिखा था, बस मात्र इतना ही परिवर्तन समय के हिसाब से किया है, शेष कविता

'झाँसी की रानी'- "कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान"

         स्वाधीनता-संग्राम से सम्बद्ध यह रचना बहुत लुभाती है मुझे। मैं नहीं समझता कि झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई की वीरता विषयक इससे अधिक अच्छी कविता किसी और कवि/कवयित्री द्वारा लिखी जा सकती थी। तो मित्रों, आपकी सुषुप्त यादों और संवेदनाओं को

अपने तरीके से ...

     18 वर्षीया स्कूली लड़की एक पार्टी में अपनी दोस्त के साथ जाती है। पार्टी के दौरान एक बदमाश नशेड़ी लड़का उसे जबरन डांस के लिए प्रोपोज़ करता है, लेकिन लड़की इन्कार कर देती है। उसके रवैये से परेशान लड़की पार्टी छोड़कर अपने घर जाने के लिए बाहर निकल आती है। वह लड़का भी बाहर निकल कर अपने तीन साथियों के साथ लड़की को वहीं दबोच लेता है और चारों मिल कर उसे कार में डाल कर ले जाते हैं। चारों कार में ही उसका रेप करते हैं और बीच राह एक गंदे नाले में फेंक कर चले जाते हैं।  लड़की का पिता उसी दिन विदेश गया होता है अतः लड़की की माँ  (सौतेली, लेकिन अच्छी) देवकी लड़की को खोजने के लिए पुलिस का सहारा लेती है। लड़की को जख़्मी हालत में बरामद कर अस्पताल के ICU में भर्ती कराया जाता है। सूचना पर लड़की का पिता भी विदेश से लौट आता है। कुछ समय में लड़की स्वस्थ हो जाती है और उधर पुलिस लड़कों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश करती है। जैसा कि कई मामलों में होता है, कुछ समय बाद अदालत पुख्ता सबूत न होना मानकर चारों अपराधियों को रिहा कर देती है।      कहानी आगे चलती है और क़ानून और न्याय से निराश देवकी अपने पति की गैर जानकारी में उन चारो

डायरी के पन्नों से ... "नील सरोवर"

       एक और प्रस्तुति मित्रों...              पलकों की छाया में सुन्दर,             आँखों का यह नील सरोवर।     इन नयनों से जाने कितने,  दीवानों  ने  प्यार  किया।  देवलोक  से आने  वाली,  परियों ने अभिसार किया।  कुछ गर्व से, कुछ शर्म से,  छा जाती लाली मुख पर।                 "पलकों की..."                                                   सांझ  हुई जब  दीप जले,               वीराने  भी  चमक  उठे।              दम भर को लौ टिकी नहीं               कुछ ऊपर जब नयन उठे।               पलकें उठ, झुक जाती हैं,               कुछ कह  देने को तत्पर।                              "पलकों की..." जब भी पलकें उठ जाती हैं, वक्त  वहीं  रुक  जाता  है। हँस  उठती  हैं  दीवारें  भी, ज़र्रा   ज़र्रा   मुस्काता  है। किन्तु  प्रलय भी हो जाता, देखें  जब  तिरछी  होकर।                 "पलकों की..."                              पलकों की  कोरों से शायद,                बादल  ने  श्यामलता  पाई।                शायद इनको निरख-निरख,                फूलों   में 

चलचित्र 'पद्मावती' का दूषित कथानक- एक समीक्षा

        प्राप्त जानकारी के अनुसार चलचित्र 'पद्मावती' में दर्शाए गये नराधम सुल्तान अल्लाउद्दीन और प्रातःस्मरणीया रानी पद्मिनी (पद्मावती) के अन्तरंग दृश्यों को कुत्सित विचारधारा वाले कुछ व्यक्ति यह कह कर समर्थन दे रहे हैं कि वह सभी दृश्य चलचित्र में अल्लाउद्दीन की कल्पना में होना दर्शाया गया है न कि हकीकत में।      यह भी कहा जा रहा है कि पद्मिनी या पद्मावती की कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है, इस तरह की रानी का कोई वजूद होना इतिहास में प्रामाणिक नहीं है।      इस सम्बन्ध में मेरा तर्क

'कौन बनेगा करोड़पति'

'कौन बनेगा करोड़पति'       जी हाँ, मैं अमिताभ बच्चन जी के हाल ही समाप्त हुए शो 'कौन बनेगा करोड़पति' के विषय में अपने कुछ विचार रखने जा रहा हूँ। इस बार के शो को मैं पिछले लगभग एक माह से देख रहा था।      मित्रों, आपने भी सब नहीं तो, कुछ एपिसोड तो देखे ही होंगे। वैसे तो इस महानायक या इस लोकप्रिय शो के विषय में कुछ भी कहना सूर्य को दीपक दिखाने के सामान है, पर मेरा भी अपना स्वतन्त्र व्यक्तित्व है सो कुछ कहने का

नोटबंदी की वर्ष-गाँठ

नोटबंदी की वर्ष-गाँठ - अन्वेषण व समीक्षा :-     तीन बिन्दु- 1) कितना काला धन सरकार के पास आया ? आया भी

डायरी के पन्नों से ... 'नई रचना'

पेश हैं मेरी दो नई रचनायें मेरे दोस्तों...  बेवफ़ा तेरी बेवफ़ाई  का,                                 कब तुझसे हमने शिकवा किया है, उम्मीदेवफ़ा में जिए जायेंगे क़यामत तक,                                 गर ज़िन्दगी ने हमें धोखा न दिया।                          -------------         आरज़ू हो तुम, मेरी चाहत हो, दिल का इक अरमान हो तुम।         ज़र्रा  नहीं  हो, सितारा नहीं  हो,  मेरे लिए, मेरी जां हो तुम। 

अहंकार क्यों झलकने लगता है?

     सन् 2016 में रियो  डि जेनेरियो में  ग्रीष्मकालीन   ओलम्पिक में  बैडमिंटन के फाइनल में  अपने जीवट खेल के बावजूद भी स्पेन की  कैरोलिना मैरिन से हारने के बाद भारतीय स्टार खिलाड़ी पी.वी.सिन्धु ने 

आप 'पन्ना धाय' को जानते हैं...?

      'पन्ना धाय' राजस्थान में ही नहीं, सम्पूर्ण भारत में गर्व और श्रद्धा से लिया जाने वाला वह नाम है जिसके समकक्ष विश्व में कोई भी नाम बौना हो जाता है जब चर्चा होती है स्वामिभक्ति व त्याग की।       पन्ना धाय, एक माता, जिसने राजद्रोही बनवीर के सम्मुख अपने स्वामी-पुत्र (राजकुमार उदय सिंह) की रक्षा हेतु अपने ही पुत्र को मरने के लिए प्रस्तुत कर दिया। ऐसा उदहारण विश्व में न कभी इससे पहले देखा गया है और सम्भवतः न ही कभी देखा जा सकेगा। भारतीय इतिहास को जानने वाले महानुभाव इस पवित्र नाम से अपरिचित नहीं हो सकते, अतः मेरा यह आलेख 'पन्ना धाय' से अनभिज्ञ जिज्ञासु व्यक्तियों के लिए केवल पठनीय ही नहीं होगा, अपितु वह उस महान अलौकिक आत्मा का परिचय पाकर स्वयं को धन्य भी समझेंगे।       यहाँ, मेरे शहर उदयपुर में गोवर्धन सागर तलैया किनारे  सन् 1914 में निर्मित एक भवन में पन्ना धाय की गाथा कहती स्थायी प्रदर्शनी स्थापित की गई है। इस प्रकोष्ठ में पन्ना धाय से सम्बंधित एक डॉक्यूमेंट्री मूवी भी प्रदर्शित की जाती है। कल मैंने वहाँ जाकर पन्ना धाय को पुनः जानने का प्रयास किया, जबकि उस देवी की