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जुलाई, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मंजिल मौत की...!

     बारिश में सफर रूमानी भी होता है तो रोमांचक भी, लेकिन कई बार यह कहर भी बन जाता है हाल की एक घटना में मुम्बई की मशहूर बाइकर (biker) जागृति होगले बारिश में अपने सफर में एक गांव के पास की सड़क पर एक ट्रक को ओवरटेक करते समय एक गड्ढे के कारण असन्तुलित होकर गिरी और ट्रक उसे रौंदता हुआ निकल गया। सड़क पर पानी भरा होने से गड्ढा दिख नहीं पाया और एक हंसती-खेलती ज़िन्दगानी गुमनाम अंधेरों में खो गई।      ऐसी ही बानगी आप-हम अपने शहर की व हाइवे की सड़कों पर तथा क्षत-विक्षत पुलियाओं पर अक्सर देखते हैं और कभी प्रशासनिक खामियों को कोसते हुए तो कभी अपने भाग्य को ज़िम्मेदार ठहराते हुए मन मसोस कर रह जाते हैं, क्योंकि अपनी ही चुनी हुई अपंग सरकार और उसके अकर्मण्य और दूषित मानसिकता के नुमाइन्दों की धृतराष्ट्री आँखों को यह सब दिखाई नहीं देता।    हर वर्ष सड़कों का या तो सुधारीकरण किया जाता है या पुनर्निर्माण। सड़कें कभी ठीक से बनाई ही नहीं जाती क्योंकि यदि सड़कें गुणवत्तापूर्ण बना दी जाएँ तो सम्बन्धित ठेकेदारों और इंजीनियरों/नेताओं की अनवरत उदरपूर्ति कैसे हो सकेगी ? एक मामूली सी वर्षा होते ही सड़कें ऐसे टूट-फूट ज

डायरी के पन्नों से..."पगली वह प्रेमी पगला"

    रस-परिवर्तन करते हुए प्रस्तुत कर रहा हूँ अपनी सन् 1968 की यह हास्य कविता -             'पगली वह प्रेमी पगला...'                                                                                                   

चीन की चुनौती ...!

 1) डोकलाम विवाद को लेकर चीनी सेना ने भारत को चेतावनी दी है- भारत को किसी तरह की गलतफहमी नहीं होनी चाहिए. अपने इलाके की सुरक्षा के चीन के इरादे को कोई हिला नहीं सकता। एक पहाड़ को हिलाना आसान है, चीनी सेना को नहीं।   2) चीनी विचार समूह के एक विश्लेषक ने रविवार को कहा कि जिस तरह भूटान की ओर से सिक्किम सैक्टर के डोकलाम इलाके में सड़क निर्माण से चीनी सेना को भारतीय सेना ने रोका, उसी तर्क का इस्तेमाल करते हुए पाकिस्तान के आग्रह पर कश्मीर में 'तीसरे देश' की सेना घुस सकती है।    .... भारत के मज़बूत रुख की प्रतिक्रिया में चीन लगातार इस तरह की भड़काऊ धमकियाँ दे रहा है।    हमारे रक्षा मंत्री जेटली ने अपने बयानों में चीन को अभी हाल ही

डायरी के पन्नों से... "स्वर्ग मैंने देख लिया है"

     सन् 1971 की मेरी यह कृति "स्वर्ग मैंने देख लिया है" जगन्नियता ईश्वर की सुन्दरतम रचना 'नारी' के लिए है।  नारी उसके हर रूप में श्लाघनीय है, स्तुत्य है - इसी भावना को मैंने अपनी इस कविता में उकेरा है...                                  

कौन रोता है...?

     सच कहना जितना कठिन होता है मित्रों, उससे भी कठिन होता है सच को स्वीकार करना।     मैं यहाँ मानवीय आचरण एवं पारस्परिक व्यवहार-विनिमय पर अपना दृष्टिकोण आपसे साझा करना चाहूंगा। सही या गलत का निर्णय आप अपने विवेक से करें। हम लोग समाज (मित्रों, सम्बन्धियों व परिचितों का समूह ) में किसी व्यक्ति की ख़ुशी के अवसर पर भी सम्मिलित होते हैं तो उसके दुःखके

डायरी के पन्नों से ... "सरस्वती-वन्दना"

     डायरी के पन्नों से...      सन् 1973 में अपने शब्द-पुष्पों से सृजित 'सरस्वती-वन्दना' से अपने ब्लॉग को अभिषिक्त कर रहा हूँ अपने लिए, मित्रों के लिए, अन्य सुधि पाठकों के लिए! अब से यदा-कदा मैं अपनी उन पूर्व रचनाओं से पाठकों का परिचय कराऊँगा जो मेरी तत्कालीन डायरी में संगृहित हैं। और...और उसके बाद यदि मन-आँगन में कविता ने जन्म लिया, यदि लेखनी मुखरित हुई, तो मेरी नई रचनाओं (कविता) से रूबरू होंगे पाठक-बन्धु।      प्रस्तुत कर रहा हूँ 'सरस्वती-वन्दना' -

मुंहासों का प्रभावी उपचार

    आज हम शरीर के सबसे महत्वपूर्ण अंग की चर्चा करेंगे। निर्विवाद रूप से शरीर का प्रमुख और सबसे महत्वपूर्ण अंग होता है चेहरा। चेहरे को मनुष्य सबसे अधिक प्यार करता है क्योंकि उसी से उस की पहचान होती है। वैसे तो चेहरे की देख-रेख के लिए वय-विशेष आधार नहीं हुआ करती, लेकिन युवावस्था में इसका ध्यान रखा जाना अधिक आवश्यक हो जाता है। युवावस्था मनुष्य के जीवन का वह स्वर्णिम काल होता है जब उसके मन-पंछी के उड़ान

रिश्ते सहेजें...

   (तनिक संशोधन के साथ, एक मित्र की फेसबुक पोस्ट से साभार !...तर्क की हर कसौटी पर खरा, सटीक सत्य!) पानी ने दूध से मित्रता की और उसमें समा गया. जब दूध ने पानी का समर्पण देखा तो उसने कहा, "मित्र, तुमने अपने स्वरूप का त्याग कर मेरे स्वरूप को धारण किया है। अब मैं भी मित्रता निभाऊंगा और तुम्हें अपने मोल बिकवाऊंगा"। दूध बिकने के बाद जब उसे उबाला जाता है तब पानी कहता है, "अब मेरी बारी है, मै मित्रता निभाऊंगा और तुमसे पहले मै चला जाऊँगा।" उबलते वक्त दूध से पहले पानी उड़ जाता है। जब दूध मित्र को अलग होते देखता है तो वह भी उफन कर गिरता है और अलगाव के लिए जिम्मेदार आग को बुझाने लगता है। अब, जब पानी की बूंदे उफनते दूध पर छिड़क कर उसे अपने मित्र से मिलाया जाता है, तब वह फिर शांत हो जाता है। इस अगाध प्रेम में थोड़ी सी खटास ( निम्बू की दो-चार बूँद ) डाल दी जाए तो दूध और पानी अलग हो जाते हैं।     मित्रों, इसी तरह से थोड़ी सी भी मन की खटास अटूट प्रेम को मिटा देती है।    "सच्ची मित्रता से बढ़ कर कोई दूसरा रिश्ता नहीं हो सकता। इस रिश्ते को और अन्य रिश्तों को भी किसी भी प