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घर का दरवाज़ा खोलने पर...

       आधा घंटा ऊपर हो गया स्कूल का समय ख़त्म हुए, अभी तक मुन्ना घर नहीं आया....एक घंटे में लौट कर आ जाऊंगा, यह कह कर गया था मुन्ना अपने दोस्त के साथ और डेढ़ घंटा होने को आया, अभी तक नहीं आया लौट कर !.... कुछ आहट आ रही है, शायद वह आ गया- यह सोचकर दरवाज़े तक जाकर वापस निराश और बेचैन, घर के भीतर लौटती माँ और बेतहाशा फ़ोन घनघनाते पापा के मन की उस समय की पीड़ा को जिस संतान ने नहीं जाना हो, नहीं समझा हो, उसका इस धरती पर अवतरित होना क्या किसी भी रूप में सार्थक कहा जा सकता है ?      कल के अख़बार 'राजस्थान पत्रिका' में प्रकाशित एक समाचार के नायक ऋतुराज साहनी की करनी निश्चित ही एक ऐसी ही संतान का ज्वलन्त उदाहरण है। ऋतुराज से उसकी बूढ़ी माँ आशा ने पिछले साल अप्रेल में फोन पर अपने अकेलेपन के चलते 'ओल्ड एज होम' भिजवाने की गुज़ारिश की थी पर न तो उसके बाद वह अमेरिका से यहाँ आया, न उसने फोन पर बात की और न ही माँ की समस्या का समाधान किया।     अब स्वदेश लौटने के बाद घर का दरवाज़ा खोलने पर ऋतुराज को नज़र आया वृद्धा माँ का कंकाल !    पड़ौसी भी इतने संवेदनहीन हो गए हैं, आत्मकेन्द्रित  हो गए हैं

डायरी के पन्नों से ... "उसी उद्यान में..."

     प्राप्त करना ही प्रेम की अंतिम परिणिति हो, ऐसा सदैव नहीं होता। प्रेम एक साधना है, एक उपासना है, एक सम्पूर्ण जीवन है- यही दर्शाने का प्रयास किया है मैंने अपनी इस कविता में। कविता कुछ लम्बी अवश्य है किन्तु मेरे रसग्राही मित्रों को इसे पढ़कर आनन्द की एक अलग ही अनुभूति

मंजिल मौत की...!

     बारिश में सफर रूमानी भी होता है तो रोमांचक भी, लेकिन कई बार यह कहर भी बन जाता है हाल की एक घटना में मुम्बई की मशहूर बाइकर (biker) जागृति होगले बारिश में अपने सफर में एक गांव के पास की सड़क पर एक ट्रक को ओवरटेक करते समय एक गड्ढे के कारण असन्तुलित होकर गिरी और ट्रक उसे रौंदता हुआ निकल गया। सड़क पर पानी भरा होने से गड्ढा दिख नहीं पाया और एक हंसती-खेलती ज़िन्दगानी गुमनाम अंधेरों में खो गई।      ऐसी ही बानगी आप-हम अपने शहर की व हाइवे की सड़कों पर तथा क्षत-विक्षत पुलियाओं पर अक्सर देखते हैं और कभी प्रशासनिक खामियों को कोसते हुए तो कभी अपने भाग्य को ज़िम्मेदार ठहराते हुए मन मसोस कर रह जाते हैं, क्योंकि अपनी ही चुनी हुई अपंग सरकार और उसके अकर्मण्य और दूषित मानसिकता के नुमाइन्दों की धृतराष्ट्री आँखों को यह सब दिखाई नहीं देता।    हर वर्ष सड़कों का या तो सुधारीकरण किया जाता है या पुनर्निर्माण। सड़कें कभी ठीक से बनाई ही नहीं जाती क्योंकि यदि सड़कें गुणवत्तापूर्ण बना दी जाएँ तो सम्बन्धित ठेकेदारों और इंजीनियरों/नेताओं की अनवरत उदरपूर्ति कैसे हो सकेगी ? एक मामूली सी वर्षा होते ही सड़कें ऐसे टूट-फूट ज

डायरी के पन्नों से..."पगली वह प्रेमी पगला"

    रस-परिवर्तन करते हुए प्रस्तुत कर रहा हूँ अपनी सन् 1968 की यह हास्य कविता -             'पगली वह प्रेमी पगला...'                                                                                                   

चीन की चुनौती ...!

 1) डोकलाम विवाद को लेकर चीनी सेना ने भारत को चेतावनी दी है- भारत को किसी तरह की गलतफहमी नहीं होनी चाहिए. अपने इलाके की सुरक्षा के चीन के इरादे को कोई हिला नहीं सकता। एक पहाड़ को हिलाना आसान है, चीनी सेना को नहीं।   2) चीनी विचार समूह के एक विश्लेषक ने रविवार को कहा कि जिस तरह भूटान की ओर से सिक्किम सैक्टर के डोकलाम इलाके में सड़क निर्माण से चीनी सेना को भारतीय सेना ने रोका, उसी तर्क का इस्तेमाल करते हुए पाकिस्तान के आग्रह पर कश्मीर में 'तीसरे देश' की सेना घुस सकती है।    .... भारत के मज़बूत रुख की प्रतिक्रिया में चीन लगातार इस तरह की भड़काऊ धमकियाँ दे रहा है।    हमारे रक्षा मंत्री जेटली ने अपने बयानों में चीन को अभी हाल ही

डायरी के पन्नों से... "स्वर्ग मैंने देख लिया है"

     सन् 1971 की मेरी यह कृति "स्वर्ग मैंने देख लिया है" जगन्नियता ईश्वर की सुन्दरतम रचना 'नारी' के लिए है।  नारी उसके हर रूप में श्लाघनीय है, स्तुत्य है - इसी भावना को मैंने अपनी इस कविता में उकेरा है...                                  

कौन रोता है...?

     सच कहना जितना कठिन होता है मित्रों, उससे भी कठिन होता है सच को स्वीकार करना।     मैं यहाँ मानवीय आचरण एवं पारस्परिक व्यवहार-विनिमय पर अपना दृष्टिकोण आपसे साझा करना चाहूंगा। सही या गलत का निर्णय आप अपने विवेक से करें। हम लोग समाज (मित्रों, सम्बन्धियों व परिचितों का समूह ) में किसी व्यक्ति की ख़ुशी के अवसर पर भी सम्मिलित होते हैं तो उसके दुःखके