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विकास की ओर कदम (?)

राजस्थान के ताज़ातरीन मंत्री बने श्री कृपलानी ने 30 फीट रोड़ पर मकानों में बनी दुकानों व शोरूम आदि के नियमन की सिफारिश की है। 30 फीट रोड़ वाली कॉलोनी में जहाँ दूकानें चल रही हैं वहाँ के हालात कुछ इस तरह के हैं कि मकानों की चारदीवारी के पास तो दाएं-बाएं कॉलोनी-वासियों के कार-स्कूटर खड़े रहते हैं और अगल-बगल जहाँ भी जगह मिल जाती है, दुकानों के ग्राहक अपने वाहन खड़े कर देते हैं। अब वहाँ से गुजरने वाले वाहन और बूढ़े-बच्चे व महिलाएं पुरस्कार योग्य कौशल से निकल तो लेते हैं पर कभी कभार अपने गंतव्य पर पहुँचने के बजाय हॉस्पिटल पहुँचने की नौबत आ जाती है। अगरचे इस विभीषिका से मंत्रीजी अन्जान नहीं हैं और वहां दुकानों का नियमन भी आवश्यक है तो रहवासी लोगों की संख्या का आंकलन कर छोटे-छोटे यान बनवाकर उन्हें उपलब्ध कराएं ताकि लोग अपने कार्यस्थल से सीधे ही अपने मकान की छतों पर उतर सकें। मंत्री है आप, क्या नहीं कर सकते! दुखद आश्चर्य है कि राजस्थान पत्रिका जैसे स्तरीय समाचार पत्र ने अपने 'पत्रिका न्यूज़ नेटवर्क' में इस अवांछनीय प्रक्रिया को 'नगरपालिका क्षेत्रों को बड़ी राहत' बतलाया है। काश

अगर नहीं रहना साथ तो...

 तो दे दो इन्हें पृथक आदिवासी राज्य! ऐसा राज्य दे दो इन्हें जहाँ केवल आदिवासी जनता हो, केवल आदिवासी कर्मचारी-अधिकारी हों और सभी मंत्री भी आदिवासी हों। यदि मिश्रित समाज एवं सहबन्धुत्व की भावना से इन्हें इतना ही परहेज है तो दे ही दो इन्हें पृथक राज्य!    इस तरह की मांग करने वाले पृथकतावादी क्यों भूल जाते हैं कि विभाजन कितना कष्टदायी होता है, 1947 के भारत-विभाजन का दंश नासूर बनकर अभी तक भी हर देशवासी को कितनी पीड़ा दे रहा है! दे दो इन्हें पृथक राज्य, लेकिन भारत-विभाजन के समय विभाजन के मूल उद्देश्य को जिस तरह से दरकिनार कर दिया गया था,   उस भूल की पुनरावृत्ति न हो। आदिवासी राज्य हो, लेकिन हो वह केवल आदिवासियों का।              (कृपया अवलोकन करें राजस्थान पत्रिका, दि. 24 -12-2016 से ली गई निम्नांकित  खबर का)

कितना बड़ा कंफ्यूज़न है !!!

      कितना बड़ा कंफ्यूज़न है ! या तो जनता की पाचनशक्ति बहुत ही अच्छी है या फिर अजीर्ण के बाद भी डकार नहीं ले पाने की विवशता है। जनता में से ही बुद्धिजीवी वर्ग से एक अराजनैतिक दल बनाने का प्रावधान क्यों नहीं रखा जा सकता जिसमें से चुना गया एक प्रतिनिधिमण्डल सर्वशक्तिमान राजनेताओं से पूछे कि जनता अपने दिए हुए वोट का खामियाजा कब तक भुगतेगी और उसे भस्मासुर बनने के लिए क्यों प्रेरित किया जा रहा है ?      बात कर कर रहा हूँ मैं प्रधानमंत्री मोदी जी और विपक्षी नेताओं के मध्य चल रहे शीत-युद्ध की। राहुल गाँधी और केजरीवाल जी मोदी जी पर गुजरात के मुख्यमंत्रित्व-काल में करोड़ों के अनैतिक लेनदेन का आरोप लगाते हुए निरंतर प्रहार कर रहे हैं और मोदी जी हैं कि अन्य सभी क्षेत्रों में तो मुखर हैं लेकिन इस मसले पर मौन साधे हुए हैं। प्रश्न यह उठता है कि यदि आरोप सही हैं तो विपक्षी पुख़्ता साक्ष्य एकत्र कर कोर्ट में मोदी जी के विरुद्ध मुकद्दमा क्यों नहीं दायर करते हैं और यदि आरोप मिथ्या हैं तो मोदी जी उन पर मान-हानि का मुकद्दमा क्यों नहीं करते ? ड्रॉ होने देने के लिए घिनौनी राजनीति का यह दूषित खेल कब तक खे

यह मुद्दा सदैव ज्वलंत ही रहने वाला है...

      "कॉंग्रेस ने उनके शासन के दौरान कुछ नहीं किया, केवल गलत ही गलत काम किये।"  पहले हम गलत कामों की बात करें तो उन्हें सही करने से वर्तमान शासन को कौन रोक रहा है? बीजेपी वाले जितना करते हैं उससे दस गुना जताते हैं और कॉंग्रेस के कामों को नकारते हैं, यह बात कुछ जंचती नहीं। हर इंसान में खामियां होती हैं तो इंसान से गलती होना भी अवश्यम्भावी है। भारत ने अभी तक की जिन बुलन्दियों को छुआ है, वह सब क्या बीजेपी का करा-धराया है? नेहरू जी, इंदिरा जी और नरसिंहराव जी ने देश के लिए जो कुछ किया, उसे कौन नकार सकता है? इंदिरा जी के बांगला देश के उद्भव के साहसी निर्णय का ही परिणाम है कि पूर्व की तरफ से पाक की नापाक हरकतों से महफूज़ हैं हम। युगपुरुष अटल जी ने तो उन्हें 'दुर्गा' (माता) तक कह दिया था। मैं कॉंग्रेस का समर्थक नहीं हूँ (पर केजरीवाल जी का अवश्य हूँ)।       मानता हूँ कि मोदी जी का अभी कोई विकल्प नहीं है, लेकिन अभी उन्हें अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करनी होगी।       क्यों निकम्मे और अपराधी कुछ तत्व सांसदों के रूप में उनकी टीम में हैं? संसद में मात्र हुड़दंग का काम करने वाले सां

पदस्थापन हेतु विज्ञप्ति :-

   निम्नांकित पद के लिए उत्साही युवाओं के आवेदन आमन्त्रित हैं - पद नाम -  आतंकवादी पदों की संख्या -  असीमित अनुभव -  आग्नेयास्त्र चलाने में दक्षता। अनुभव नहीं होने पर भी आवेदन स्वीकार्य, यदि प्रार्थी होनहार है। (तीव्र राष्ट्र-द्रोह की भावना रखने वालों को प्राथमिकता) कार्यक्षेत्र -  सम्पूर्ण भारतवर्ष वेतन -  मनचाहा (पाकिस्तान के सौजन्य से मिलेगा) अन्य लाभ (हिन्दुस्तान से मिल सकेंगे) - 1) पेन्शन स्वरूप मरणोपरान्त एक मुश्त राशि,  2) शहीद का दर्जा भी मिल सकता है (यदि प्रार्थी का कोई रहनुमा हुआ तो)।   इच्छुक आवेदक साक्षात्कार हेतु अविलम्ब मंत्रालय, जम्मू-कश्मीर सरकार,  ;) श्रीनगर  में उपस्थित हों। नोट - सफल अभ्यर्थी को आने का इकतरफा किराया-खर्च देय होगा। (राजस्थान पत्रिका, दि. 14 -12 -2016 में छपी इस खबर से प्रेरित)

यही तो है गीता का ज्ञान ...

क्या लेकर आया था, क्या लेकर जायेगा ? जो आज तेरा है वह कल किसी और का होगा। इसलिए हे प्राणी! तू कल की चिंता छोड़ दे! बैंक में तेरे पास कितना रुपया है यह भूल जा और जितना आज मिल रहा है (या नहीं मिल रहा है), उसी को अपना भाग्य समझ! भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था कि कलियुग में वह 'कल्कि' अवतार लेंगे। तो अपने ज्ञान-चक्षु खोलो मित्रों, 'कल्कि' अवतार हो चुका है।

साहस के कुछ कदम और...

   आज अपने शहर के व्यस्ततम चौराहे से निकलते हुए मैं अपनी कार को बांयीं ओर मोड़ने जा रहा था और इसके लिए मुड़ने का संकेत भी दे चुका था लेकिन मेरी कार के बांयें से आ रहे वाहन जिन्हें सीधा सामने की ओर जाना था, लगातार निकले चले जा रहे थे। मैंने कार को कुछ बांयीं ओर मोड़ा भी लेकिन फिर भी पीछे से आ रही एक और कार ने कुछ बांयें होते हुए अपनी कार को आगे बढ़ा ही दिया। मेरा आक्रोश सीमा लांघ रहा था। एकबारगी तो इच्छा हुई कि उस कार से भिड़ा ही दूँ, लेकिन ऐसा कर नहीं सका मैं। मेरे विवेक ने सावधान किया मुझे कि यदि मैंने ऐसा किया तो मेरी कार को भी क्षति पहुंचेगी।    ऐसी ही बानगी हमारे प्रधानमंत्री जी की विवशता के मामले में नज़र आती है। अभी हाल पांच सौ और एक हज़ार रुपये के नोटों को अचानक चलन से बाहर कर देने की घोषणा कर उन्होंने जो अप्रतिम साहस दिखाया है, क्या ऐसा वह अन्य वांछनीय क्षेत्रों में कर सकते हैं?...शायद नहीं।    प्रधानमंत्री की उपरोक्त घोषणा से जनता में खलबली मच गई। बड़े नोटों से भरे भंडारों के स्वामी भी कुलबुला गए तो मान्य मुद्रा (छोटे नोट) की कमी के चलते दैनिक जीवन-यापन की सामग्री का जुगाड़ न कर प