क्या हो गया है मेरे देश को चलाने वाले कर्णधारों की संवेदनशीलता को ? देश में कैसी भी अनहोनी हो जाय, कैसा भी अनर्थ हो जाय, क्या किसी के भी कानों में जूँ नहीं रेंगेगी ? जनता के धैर्य की परीक्षा कब तक ली जाती रहेगी ? अपनी किशोरावस्था में मैंने जासूसी उपन्यासों में पढ़ा था कि शहर में दो-तीन अस्वाभाविक मौतें होते ही पुलिस-विभाग में तहलका मच जाता था। पुलिस के आला अधिकारी अपने मातहतों को एक बहुत ही सीमित अवधि का समय देते हुए बरस पड़ते थे कि गृह मंत्री को क्या जवाब दिया जाएगा ! बहुत अच्छा लगता था, जब पुलिस अधिकारी / जासूस बहुत ही काम समय में अपराधी को ढूंढ निकालते थे। यह सही है कि कहानियों के आदर्श नायक, वास्तविक दुनिया में कभी-कभार ही मिला करते हैं, लेकिन दिन-ब-दिन जिस तरह से नायक के भेष में खलनायकों का इज़ाफ़ा हो रहा है, उसे देखते हुए देश के भयावह भविष्य की कल्पना की जा सकती है। आज के समय में अपराधी, पुलिस और नेताओं का जो दोस्ताना गठजोड़ पनप रहा है और दूसरी ओर जिस तरह से न्याय-व्यवस्था को पंगु बनाने का प्रयास किया जा रहा है, उसके चलते एक आम आदमी को अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए अब के