दिल्ली की प्रबुद्ध जनता ने 'मफ़लरमैन' को अपना नेता चुन लिया है- एक बुद्धिमतापूर्ण, दूरदर्शिता से परिपूर्ण चयन। हार्दिक बधाई ! यह कहते हुए मैं गर्व अनुभव कर रहा हूँ कि मेरा सम्पूर्ण विश्वास जिसके साथ खड़ा था, वह नायक जीत गया। मेरे मित्र कह रहे हैं- 'करिश्मा हो गया', लेकिन मैं इससे सहमत नहीं क्योंकि हुआ वही है जो होना था, होना चाहिए था। पूर्व में अनुशासित कही जाने वाली पार्टी के एक असभ्य नेता ने इस नायक के लिए 'हरामखोर' तथा शीर्ष पर विराजमान नेता ने 'बाज़ारू' शब्दों का जब प्रयोग किया था, उस पार्टी की हार तभी तय हो गई थी। किरण बेदी जो कभी केजरीवाल की हमराह थीं, वह भी केजरीवाल को 'भगोड़ा' कहने से नहीं चूकी थीं। उन्होंने यह भी कहा था कि केजरीवाल का स्तर उनसे बहस करने लायक नहीं हैं। खैर, बेदी तो मोहरा बनाई गई थीं, यह हार तो बीजेपी की समग्र हार है। अहंकार कभी विजयी नहीं हो सकता। केजरीवाल को भगौड़ा, नौटंकी, खुजलीवाल, जैसे अभद्र सम्बोधन देने वाले कटुभाषी भी अवाक् हैं, उनकी वाणी स्पंदन खो चुकी है।
देश भर से बुलाये गए अपने नेताओं की सम्पूर्ण शक्ति लगाकर, जीत की सभी तिकड़में आज़माकर भी इस आम आदमी को नहीं हराया जा सका, इस बात से यह तो स्पष्ट हो ही जाता है कि बन्दे में दम है। सत्य की डगर पर चल रहा यह नौजवान नेता अपने आदर्शों से पीछे नहीं हटेगा, जो कुछ कहता रहा है कर के दिखायेगा, जनता व अपने समर्थकों को निराश नहीं करेगा- ऐसा मुझे विश्वास है और उसे स्वयं को सिद्ध करना ही होगा।
लोक सभा में विपक्ष के नेता का पद कॉन्ग्रेस को नहीं मिल पाया था और अब दिल्ली में बीजेपी की यह स्थिति हो गई है। मतलब यह कि बीजेपी का सूपड़ा साफ़! लोकसभा वाला दृश्य पुनरावर्तित हुआ है, फर्क है तो सिर्फ इतना कि नायक बदल गया है। अंततोगत्वा, राजनीति ने एक खूबसूरत करवट ली है।
अब केजरीवाल राजनीतिज्ञ बन गए हैं अतः सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वह अपनी स्वभावगत सरलता व सुसंस्कृत आचरण को बरकरार रखते हुए तथा पारदर्शी नीतियों का अनुसरण करते हुए दिल्ली को उससे किये गए वादे के अनुसार सुशासन दें।
आज दिल्ली ....और बीजेपी स्वयं नहीं सुधरी व AAP अधिक उभरी तो कल पूरा देश!
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