क्या हो गया है मेरे देश को चलाने वाले कर्णधारों की संवेदनशीलता को ? देश में कैसी भी अनहोनी हो जाय, कैसा भी अनर्थ हो जाय, क्या किसी के भी कानों में जूँ नहीं रेंगेगी ? जनता के धैर्य की परीक्षा कब तक ली जाती रहेगी ?
अपनी किशोरावस्था में मैंने जासूसी उपन्यासों में पढ़ा था कि शहर में दो-तीन अस्वाभाविक मौतें होते ही पुलिस-विभाग में तहलका मच जाता था। पुलिस के आला अधिकारी अपने मातहतों को एक बहुत ही सीमित अवधि का समय देते हुए बरस पड़ते थे कि गृह मंत्री को क्या जवाब दिया जाएगा ! बहुत अच्छा लगता था, जब पुलिस अधिकारी / जासूस बहुत ही काम समय में अपराधी को ढूंढ निकालते थे।
यह सही है कि कहानियों के आदर्श नायक, वास्तविक दुनिया में कभी-कभार ही मिला करते हैं, लेकिन दिन-ब-दिन जिस तरह से नायक के भेष में खलनायकों का इज़ाफ़ा हो रहा है, उसे देखते हुए देश के भयावह भविष्य की कल्पना की जा सकती है। आज के समय में अपराधी, पुलिस और नेताओं का जो दोस्ताना गठजोड़ पनप रहा है और दूसरी ओर जिस तरह से न्याय-व्यवस्था को पंगु बनाने का प्रयास किया जा रहा है, उसके चलते एक आम आदमी को अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए अब केवल और केवल ईश्वर पर निर्भर रहना पड़ेगा, अगर ईश्वर है तो !
आज देश का हर बुद्धिजीवी मेरी ही तरह व्यथित हो रहा होगा, मेरी ही तरह कुछ नहीं कर पाने की विवशता से स्वयं को धिक्कार रहा होगा कि वह इस सामाजिक व्यवस्था का हिस्सा है।
मैं चर्चा कर रहा हूँ बहुचर्चित उस खेल के सन्दर्भ में जो 'व्यापम-घोटाला' के नेपथ्य में खेला जा रहा है। पिछले कई वर्षों पूर्व घटित इस घोटाले के सूत्रधार कौन हैं, इस रहस्य का पटाक्षेप न हो सके इसके लिए सम्पूर्ण प्रयास किये जा रहे हैं। एक के बाद एक अब तक में 47 लोग अपने प्राण गवां चुके हैं और पिछले तीन दिनों से तो रोज़ एक इंसान की मौत हो रही है। यह सभी मरने वाले लोग इस घोटाले से किसी न किसी तरह सम्बंधित हैं और घोटाला जहाँ हुआ है उस प्रदेश के मुख्यमंत्री कह रहे है कि हर मौत का सम्बन्ध इस घोटाला-कांड से जोड़ना गलत है। कितना भोलापन है उनकी बात में !
इधर हमारे देश के गृहमंत्री इस मामले में CBI के द्वारा जाँच की विपक्ष की मांग के जवाब में कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश होने पर ही ऐसा किया जा सकेगा।
टी.वी. पर निरंतर यह अमानवीय नज़ारा देख रहा देशवासी किंकर्तव्यविमूढ़ है और भारी मन से इस पीड़ा को पीये जा रहा है ………
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