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कल्प-वृक्ष

    जुनून की हद तक बागवानी का शौक पालने वाली मेरी धर्मपत्नी जयप्रभा ने सन् 1997 में कल्पवृक्ष का एक शिशु-पौधा ख़रीदा था। पहले एक छोटे गमले में और कुछ बड़ा होने के बाद उसे एक बड़े गमले में सहेजा गया। जयप्रभा के द्वारा की गई नित्य साज-सम्हाल और पूजा- अर्चना से गत् 18 वर्षों में इस पौधे ने लगभग 12 फ़ीट की ऊंचाई हांसिल कर ली थी। पौधे ने अब वृक्ष का रूप तो ले लिया था, लेकिन वह वृहद् आकार अभी तक नहीं पा सका था जो इन 18 वर्षों में ज़मीन में होने पर मिलता। पिछले कुछ माहों से जयप्रभा के मन में यह विचार उभर रहा था कि क्यों नहीं इस कल्पवृक्ष का रोपण किसी मंदिर जैसे सार्वजानिक स्थान पर कर दिया जाय ताकि इसे इसका स्वाभाविक आकार भी प्राप्त हो और अन्य लोग भी इसकी पूजा-अर्चना का लाभ प्राप्त कर सकें ! विचार को मूर्त रूप देने के लिए उन्होंने हमारी कॉलोनी में ही स्थित एक निजी मंदिर की स्वामिनी सेे बातचीत की और अनुमति प्राप्त कर हम बाग़वान उदयलाल की मदद से आज इस वृक्ष को गमले सहित मंदिर में ले गए। मंदिर में अनूकूल स्थान पर खड्डा खोद कर गमले से निकाले गए इस वृक्ष का रोपण कर दिया और प्रारम्भिक लघुपूजा भी जयप्रभा ने की। अपने घर से जुदा करने में कुछ कष्ट अवश्य हुआ, लेकिन अब इस वृक्ष का जो रूप निखरेगा तथा अन्य लोगों के द्वारा भी यह पूजा जायेगा- इस अनुभूति की कल्पना का जो सुख हमें मिल रहा है वह अवर्चनीय है...


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