प्रस्तुत है सामाजिक असमानता और उससे मुक्ति की सोच का निरूपण करती मेरी यह कहानी- "धुंध से आगे" नन्हे विशु को उसके खिलौनों के साथ माली के पास लॉन में छोड़कर नीलिमा रसोईघर में चली आई। महरी आज आई नहीं थी सो घर का सारा काम-काज उसे ही निपटाना था। सोचा, विशु थोड़ी देर बाहर खेलता रहेगा तो आराम से कुछ काम कर लेगी। दो बार अम्मा जी (सासू माँ) चाय के लिए कह चुकी थीं सो सबसे पहले चाय बना कर वह अम्मा जी के पास आकर बैठी। शाम के वक्त चाय लेना वह कम पसंद करती है पर आज अकेले-अकेले काम करते थक गई थी तो आधा कप चाय खुद के लिए भी बना ली थी। अम्मा जी बातों की कुछ ज्यादा ही शौक़ीन थीं। इधर-उधर की सौ-पचास बातें नहीं कर लेतीं, चैन नहीं पड़ता था उन्हें। नीलिमा ने अपनी चाय अम्मा जी की बातों के जवाब में 'हाँ-हूँ' करते जल्दी ही ख़त्म कर ली और फुर्ती से वापस रसोईघर में पहुँची। सब्जी सुबह की काटी हुई फ्रिज में रखी थी सो निकाल कर भागौनी में छौंक लगा कर पकने के लिए छोड़ दी। वर्मा साहब (विशु के पापा) आधे घंटे में ऑफ...