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सबका कल्याण हो...

वर्ष 2014 - इस खूबसूरत साल का समापन एक खूबसूरत अंदाज़ में हो रहा है मेरे लिए और आशा करता हूँ कि आप सब के लिए भी ऐसा ही कुछ रहा होगा। आइये, हम स्वागत करें आने वाले वर्ष का कुछ इस भावना के साथ कि आने वाला समय प्राणी-मात्र के लिए सुख और शान्ति का सन्देश ले कर आये। कोई भी व्यक्ति अभावग्रस्त न हो, नई आशा के साथ सब की सुबह हो, कोई भूखा नहीं सोये। सब के मन में सब के प्रति सद्भावना हो, सबका कल्याण हो। एवमस्तु !

भारत- 'विश्व का सरताज़'

    सही मायने में देखा जाये तो भारत में इस बार किसी पार्टी के सांसदों ने प्रधानमंत्री को नहीं चुना, सीधे ही जनता ने चुना है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी की आवाज़ में एक ताक़त है, उनके इरादों में मज़बूती है और कुछ कर गुज़रने का ज़ुनून भी दिखाई दे रहा है। अमेरिका में आज के उनके भाषण से तो यही लग रहा है। ईश्वर करे, मेरी यह सोच और समझ सही हो ! मोदी जी के नेतृत्व की संकल्प-शक्ति के सहारे हमारा भारत महात्मा गांधी के सपनों का भारत बन सके !! शहीद भगत सिंह और सुभाष चन्द्र बोस जैसे देश के सपूतों का त्याग और बलिदान सार्थक हो सके !!! और…और मेरे देश का हर नागरिक निस्वार्थ भाव से राष्ट्र के उत्त्थान के लिए जो कुछ भी सम्भव है, यथाशक्ति करे। हर नागरिक मोदी का हाथ और दिमाग बन जाए, तब ही बन सकेगा भारत 'विश्व का सरताज़' !

इतना तो करो मेरे देश के रहनुमाओं....

    कश्मीर में धारा 370 ख़त्म मत करो, महँगाई कम मत करो, भ्रष्टाचार भी ख़त्म मत करो, लेकिन इतना इन्तज़ाम तो  कम से कम करो ही मेरे देश के रहनुमाओं कि इस देश की बच्चियाँ और महिलाएँ मेहफ़ूज़ रह सकें, ईश्वर की दी हुई ज़िन्दगी को बेख़ौफ़ जी सकें- हम मान लेंगे कि अच्छे दिन आ गए हैं। 

सही समय, सही कदम.…

    प्रधानमंत्री मोदी जी के द्वारा राजकार्य में मातृभाषा हिंदी के अधिकतम प्रयोग पर बल दिया जाना स्वागत योग्य है। प्रारम्भ में जनता की सुविधा के लिए सम्बंधित क्षेत्र की क्षेत्रीय भाषा में अनुवाद संलग्न किया जाना भी वांछनीय है। कालान्तर में देश-विदेश के मंचों पर मात्र हिंदी का ही प्रयोग अनिवार्य किया जा सकेगा। जिस प्रकार कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष विदेशों में अपनी मातृभाषा का प्रयोग करते हैं व दुभाषिये उसका सम्बंधित देश की भाषा में या अंग्रेजी में रूपान्तरण कर देते हैं, ठीक उसी तरह हम भी हिंदी का प्रयोग अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आसानी से कर सकते हैं। हिंदी को गौरवान्वित करने वाले इस कदम की जितनी भी प्रशंसा की जाये, कम है। हाँ, क्षेत्र-विशेष में क्षेत्रीय भाषा या अंग्रेजी को द्वितीय भाषा के रूप में मान्यता दी जा सकती है। हिंदी का अधिकतम प्रयोग देश को एक सूत्र में बांधे रखने और मात्र क्षेत्रीय सोच की संकीर्णता के उन्मूलन में सहायक होगा। राष्ट्र-भाषा या ऐसा कोई भी मुद्दा जो राष्ट्र-भावना से सम्बन्धित हो, का विरोध करने वाले हर वक्तव्य को राष्ट्र-द्रोह के समकक्ष माना जाकर कार्यवाही की जानी चा

सन्देश-

  जिन नासमझों ने यीशु मसीह का उपहास किया था, उन्हें अपमानित करने का प्रयास किया था, उनको क्षमा करते हुए यीशु ने ईश्वर से यह शब्द कहे थे - " हे परमात्मा तू उन्हें क्षमा करना क्यों कि वह नहीं जानते कि वह क्या कर रहे हैं।"   हम जानते हैं केजरीवाल जी कि आप यीशु नहीं हैं, लेकिन निस्वार्थ भाव से आम आदमी के हितों के लिए लड़ने वाले, अपने सभी ऐशो-आराम छोड़कर भ्रष्टाचार के विरुद्ध जंग छेड़ने वाले और लक्ष्य-प्राप्ति तक जुझारू संघर्ष की ज़िद रखने वाले आप, यीशु से कम भी नहीं हैं।   आप की ओर से हम भी उन सभी नासमझों के लिए जो आपको भगोड़ा, नौटंकी, पल्टू और ऐसे ही अन्य अभद्र विशेषण (उनके शब्दकोष में जो भी उपलब्ध हैं) देने की धृष्टता कर रहे हैं, ईश्वर से वैसी ही प्रार्थना करते हैं।   हमें आप पर और AAP पर बहुत विश्वास है। हमारे विश्वास को जीवित रखते हुए, अपने आत्म-बल को कायम रखते हुए अपनी कुछ भूलों को परिमार्जित कर आप धनात्मक शक्ति के साथ अपने पवित्र उद्देश्य के लिए जुट जाइये। भूलें आपसे हुई हैं क्योंकि आप सीधे-सच्चे इन्सान हैं, कुटिल और चालबाज़ राजनीतिज्ञ नहीं। अब भूलों को दोहराएँ नहीं। हाँ, र

निर्बल व्यक्ति ही हिंसा का सहारा लेता है.…

मानसिक स्तर पर जिस ऑटो-चालक की दो पैसे की औकात नहीं है, उसने केजरीवाल को थप्पड़ मारा।  केजरीवाल पर यह दूसरा प्रहार था। ऐसा एक पागल व्यक्ति की व्यक्तिगत सोच के कारण नहीं होता, निश्चित ही दलगत संकीर्णता और छद्म संकेत ही इसके पीछे के कारण हुआ करते हैं। इससे पहले कितने भूतपूर्व मुख्यमंत्रियों को किसी आम आदमी ने थप्पड़ मारा है ? केजरीवाल ने उस घिनौने आदमी को क्षमा भी कर दिया है। कमीनेपन की इस पराकाष्ठा को देखकर ऐसी ही सोच वाले कुछ घटिया लोग इसे भी 'आप' की ही नौटंकी कह रहे हैं। इस घटना की निंदा के बजाय इस तरह का कमेंट करने वाले, क्या उस ऑटो-चालक से भी अधिक निम्न स्तर के लोग नहीं हैं? विपक्षियों की यह कुटिल राजनीति क्या सामान्य-जन के गले उतरेगी ?  सुमन शेखर का चवन्ना मसखरापन भी काम नहीं आने वाला है। आम आदमी को अधिक समय तक गुमराह नहीं किया जा सकेगा।  भगोड़ा कहने वाले ओछी सोच के लोग यदि थोड़ा भी अपने दिमाग (अगर हो तो) का इस्तेमाल करें तो समझ सकेंगे कि C.M. की कुर्सी के आकर्षण को अपने उसूलों के खातिर ठोकर मार देने वाले केजरीवाल किसी भी प्रकार की सुरक्षा स्वीकार न कर अपनी पार्टी का प्रचा

राजनीति में दो दलीय प्रणाली

    विश्व में ऐसे कुछ देश हैं जहाँ मात्र दो राजनैतिक दल हैं और इसका सबसे अच्छा उदाहरण अमेरिका है। कितना अच्छा हो अगर हम भी इसी प्रणाली का अनुसरण कर सकें। इस प्रणाली को हमारे देश में बाध्यकारी बना लिया जाना निश्चित ही हितकारी सिद्ध होगा, ऐसी मेरी मान्यता है।    यदि मात्र दो दलों  की अवधारणा स्वीकार कर ली जाय तो वह दल कौन से हों इसका निर्धारण भी करना होगा। इन दो दलों को चुनने की प्रक्रिया यह हो सकती है कि वर्त्तमान में जो राजनैतिक दल मौज़ूद हैं उनमें से अधिक स्वीकार्य दो दलों का चयन चुनाव पद्धति से देश की जनता द्वारा किया जावे। शेष सभी राजनैतिक दल या तो इच्छानुसार इन दोनों दलों में स्वयं का विलय कर दें या उन्हें राजनीति छोड़नी पड़ेगी।      अब इस तरह चयनित दो दल 'राइट टु रिकॉल' के नियम से बंधे रहकर स्थायी रूप से देश की राजनीति  का केन्द्र बनेंगे। दो दलीय व्यवस्था के साथ देश की वर्त्तमान प्रणाली ही कायम रखी जा सकती है या फिर अमेरिका के समान डायरेक्ट डेमोक्रेसी प्रणाली के द्वारा राष्ट्रपति-पद्धति अपनाई जा सकती है।     इन दिनों एक-दो दल अपना भावी प्रधानमंत्री घोषित कर तक़रीबन

मंत्री जी की आपत्तिजनक टिप्पणी

  राजस्थान के जनजाति विकास मंत्री नन्दलाल मीणा के द्वारा ब्राम्हण-बनियों के विरुद्ध की गई अनर्गल टिपण्णी से दोनों वर्गों में जबर्दस्त आक्रोश है। स्वयं की नहीं तो कम से कम अपने संवैधानिक पद की गरिमा का तो ध्यान उन्हें रखना ही चाहिए था। जाट व क्षत्रिय समाज का साथ इस मुद्दे पर ब्राम्हण-बनिया वर्ग को नहीं मिल रहा है, आश्चर्य है। क्षत्रिय समाज को सिद्धांत और नैतिकता के इस गम्भीर विषय पर चिन्तन करना चाहिए और समझना चाहिए कि क्यों नन्दलाल मीणा ने अपने विष-वमन में क्षत्रियों का नाम नहीं उछाला। शायद मीणा जी ने जाटों व क्षत्रियों को इसलिए नहीं लपेटा क्योंकि इसमें मुख्यमंत्री राजे जी का लिहाज आड़े आ गया होगा।     इस विषय में प्रबुद्ध मीणा बंधुओं से भी मेरी अपेक्षा है कि हिन्दू-समाज को तोड़ने वाली नंदलाल मीणा के द्व्रारा की गई टिप्पणी के विरुद्ध आवाज़ उठाकर राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ बनाने में भागीदार बनें। 

दिल्ली के नये मुख्यमंत्री को शुभकामना-सन्देश -

    केजरीवाल जी को को उनके नए कार्य-क्षेत्र में प्रवेश के लिए बधाई !   आपको मेरी तथा तरक्की-पसंद हर भारतीय की ओर से शुभकामना कि 'AAP' सफलता के नए आयाम स्थापित कर सके। आपको सावधान भी रहना होगा सम्भावित कुचक्रों के विरुद्ध क्योंकि यह तो जानी-समझी हुई बात है कि पड़ौसी की उन्नति किसी से बर्दाश्त नहीं होती, फिर यह तो राजनीति-क्षेत्र है। राजनीति में तो बाप-बेटा भी एक-दूसरे के नहीं होते। वही लोग जो अब तक 'AAP' पर सरकार बनाने का दबाव डाल रहे थे, अब पानी पी-पी कर आपको कोस रहे हैं। कितना हास्यास्पद है यह सब....कोई दीन-ईमान-धर्म नहीं राजनीतिज्ञों और उनके पिछलग्गुओं का। आपके हर आदर्श कदम की आलोचना भी होगी क्योंकि लाल बहादुर शास्त्री और अटलबिहारी बाजपेयी तथा इन जैसे कुछ ही अन्य नेताओं के द्वारा अपनाई गई राजनीति से परे अब तक की भारतीय राजनीति में शुचिता और पारदर्शिता की संस्कृति कभी रही ही नहीं है।   केजरीवाल जी ! आप मूल रूप से 'राजनीतिज्ञ' नहीं हैं, इसलिए अब तक परम्परा में रही 'बदले की राजनीति' से भी परहेज रखना चाहिए आपको, क्योंकि यह तो तथाकथित राजनीतिज्ञों का ही

सुविचार--Posted on Facebook by me...before a few days-मेरा आज का विचार -- 4 जून, 2013

सर्द रात में अपने कमरे में जब गर्म लिहाफ़ ओढ़ कर सो रहे हो तो सड़क के किनारे बिना चादर, पांव  सिकोड़ कर सो रहे गरीब व्यक्ति का स्मरण कर लो, शायद कभी एक लिहाफ़ उसको भी ओढाने की इच्छा  आपके मन में जाग जाए । -गजेन्द्र भट्ट