हमारे शहर की फतहसागर झील का शाम से रात तक का आलम इतना खूबसूरत होता है कि पर्यटक तो पर्यटक, शहर के नुमाइन्दों के पैर भी खुद-ब-खुद इसकी ओर चले आते हैं। जैसे अन्य शहरवासी अपनी शाम को खुशनुमां बनाने के लिए यहाँ आते हैं, मैं भी अपने परिवार के साथ अक्सर यहाँ आ जाया करता हूँ। यहाँ चहलकदमी करते हुए जब हमारी आँखें यहाँ के दिलकश नज़ारे को पी रही होती हैं, हवा के मदहोश झौकों से रिदम मिलाती झील के निर्मल पानी की तरंगों के साथ-साथ उड़ता-मंडराता हमारा मनपंछी वहीं कहीं खो जाता है।
इस स्वप्नलोक से जब अनायास ही हम वास्तविक लोक में लौटते हैं और वहाँ के जन-समुदाय पर नज़र पड़ती है, तब लोगों के बीच पुलिस विभाग के कुछ सिपाही वहाँ गश्त करते नज़र आते हैं। हठात् मन में एक ख़याल उभर आता है कि इस खूबसूरत जगह पर अपने परिवार के साथ घूमने आने का क्या इन सिपाहियों का मन नहीं करता होगा! इस ख़याल के साथ ही उनके प्रति, उनकी मुस्तैद ड्यूटी के प्रति मन शृद्धा से भर जाता है। यह भी विचार आता है कि ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठ पुलिसकर्मियों को यदा-कदा पुरस्कृत भी किया जाना चाहिए।
... लेकिन जब इनकी बिरादरी के कुछ लोगों की ऐसी हरकतों पर ध्यान जाता है जैसा कि यहाँ शेयर किये गये अख़बार के आलेख में दिखाई दे रहा है तो ऐसी हैवानियत देखकर मन वितृष्णा और घृणा से भर जाता है। मन की समस्त भावुकता जो कभी-कभी इनके लिए उमड़ती है, एकदम तिरोहित हो जाती है।
यहाँ मैं यह कहना चाहूंगा कि पुलिसिया खाल में छिपे ऐसे भेड़ियों को चिन्हित किया जाकर पकड़ा जाए और इनको दण्डित करने के लिए कठोरतम सजा का प्रावधान किया जावे। देखा गया है कि कई बार पुलिस-कर्मियों का अपराध सामने आने पर उन्हें लाइन हाज़िर कर दिया जाता है और कुछ समय बाद मामला ठंडा होने पर वापस मलाईदार जगह पर पदस्थापित कर दिया जाता है। मिलीभगत के इस खेल को फ़ौरन ख़त्म किया जाना चाहिए।
समाज को सही दिशा और नैतिकता का पाठ पढ़ाने का जिम्मा लेने की आड़ में भ्रष्ट आचरण करने वाले धूर्त बाबा (तथाकथित संत) जिस दर्जे के गुनहगार हैं, उससे भी अधिक गुनहगार वह पुलिसकर्मी हैं जो जनता की सुरक्षा के लिए क़ानून-रक्षक का कर्तव्य निबाहने की बजाय चन्द रुपयों के लिए भक्षक की भूमिका में रहते हैं।
जनता के वोट लेकर ऐश की ज़िन्दगी जी रहे और पुलिस को अपनी ही कार्य-सिद्धियों के लिए मोहरा बना कर रखने वाले नेताओं को अब सुधर जाना चाहिए तथा अपराध से जुड़े पुलिसकर्मियों के लिए आजीवन कारावास का प्रावधान किया जाना चाहिए। समान अपराध के लिए सामान्य-जन के मुकाबले पुलिसकर्मियों को अधिक कठोर दण्ड दिया जाना चाहिए।
जनता थक चुकी है, परेशां हो चुकी है। उसके सब्र का और अधिक इम्तहान नहीं लिया जाना चाहिए।
इस स्वप्नलोक से जब अनायास ही हम वास्तविक लोक में लौटते हैं और वहाँ के जन-समुदाय पर नज़र पड़ती है, तब लोगों के बीच पुलिस विभाग के कुछ सिपाही वहाँ गश्त करते नज़र आते हैं। हठात् मन में एक ख़याल उभर आता है कि इस खूबसूरत जगह पर अपने परिवार के साथ घूमने आने का क्या इन सिपाहियों का मन नहीं करता होगा! इस ख़याल के साथ ही उनके प्रति, उनकी मुस्तैद ड्यूटी के प्रति मन शृद्धा से भर जाता है। यह भी विचार आता है कि ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठ पुलिसकर्मियों को यदा-कदा पुरस्कृत भी किया जाना चाहिए।
... लेकिन जब इनकी बिरादरी के कुछ लोगों की ऐसी हरकतों पर ध्यान जाता है जैसा कि यहाँ शेयर किये गये अख़बार के आलेख में दिखाई दे रहा है तो ऐसी हैवानियत देखकर मन वितृष्णा और घृणा से भर जाता है। मन की समस्त भावुकता जो कभी-कभी इनके लिए उमड़ती है, एकदम तिरोहित हो जाती है।
यहाँ मैं यह कहना चाहूंगा कि पुलिसिया खाल में छिपे ऐसे भेड़ियों को चिन्हित किया जाकर पकड़ा जाए और इनको दण्डित करने के लिए कठोरतम सजा का प्रावधान किया जावे। देखा गया है कि कई बार पुलिस-कर्मियों का अपराध सामने आने पर उन्हें लाइन हाज़िर कर दिया जाता है और कुछ समय बाद मामला ठंडा होने पर वापस मलाईदार जगह पर पदस्थापित कर दिया जाता है। मिलीभगत के इस खेल को फ़ौरन ख़त्म किया जाना चाहिए।
समाज को सही दिशा और नैतिकता का पाठ पढ़ाने का जिम्मा लेने की आड़ में भ्रष्ट आचरण करने वाले धूर्त बाबा (तथाकथित संत) जिस दर्जे के गुनहगार हैं, उससे भी अधिक गुनहगार वह पुलिसकर्मी हैं जो जनता की सुरक्षा के लिए क़ानून-रक्षक का कर्तव्य निबाहने की बजाय चन्द रुपयों के लिए भक्षक की भूमिका में रहते हैं।
जनता के वोट लेकर ऐश की ज़िन्दगी जी रहे और पुलिस को अपनी ही कार्य-सिद्धियों के लिए मोहरा बना कर रखने वाले नेताओं को अब सुधर जाना चाहिए तथा अपराध से जुड़े पुलिसकर्मियों के लिए आजीवन कारावास का प्रावधान किया जाना चाहिए। समान अपराध के लिए सामान्य-जन के मुकाबले पुलिसकर्मियों को अधिक कठोर दण्ड दिया जाना चाहिए।
जनता थक चुकी है, परेशां हो चुकी है। उसके सब्र का और अधिक इम्तहान नहीं लिया जाना चाहिए।
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