देश के दुश्मनों के विरुद्ध आह्वान है मेरा देश के हर नौनिहाल से, क्योंकि दिन-ब-दिन सीमा पर जान गंवाने वाले शहीदों का लहू मुझे उद्वेलित करता है, मुझे चैन से सोने नहीं देता! समर्पित है उनको मेरी यह कविता- "यह कश्मीर हमारा है"
कण-कण से आवाज़ उठी है,
यह कश्मीर हमारा है।।
दया दिखाते दुश्मन को पर,
सीना वज्र भयंकर है।
हर बच्ची वीर भवानी है,
हर बच्चा शिवशंकर है।
जितेन्द्रिय है,अविनाशी है,
मृत्युंजय, प्रलयंकर है।
हमने उसे उबार लिया है,
जिसने हमें पुकारा है।
"कण-कण से... "
नहीं कभी हम डिगने वाले,
आतंकी फुफकारों से।
नहीं कभी हम डरने वाले,
गोली की बौछारों से।
नहीं कटेंगे वक्ष हमारे,
बरछी, तीर, कटारों से।
जान लगा देंगेअपनी हम,
देश जान से प्यारा है।
"कण-कण से..."
कश्मीर को तो भूल ही जा,
हम पीओके भी ले लेंगे।
हमारे नन्हे-मुन्ने कल को,
लाहौर कबड्डी खेलेंगे।
दिन दूर नहीं जब हम तेरे
चीनी अब्बा को पेलेंगे।
देख हमारी आँखों में अब,
दहक रहा अंगारा है।
दहक रहा अंगारा है।
"कण-कण से..."
पाकि!अब भी हार मान ले,
तुझे माफ़ी मिल जायगी।
वरना तेरी इस दुनिया से,
निशानी भी मिट जायगी।
नज़र हमारी तुझे मिटाने,
बिजली बन कर आएगी।
सूरज से लड़ने आया पर,
तू छोटा - सा तारा है।
"कण-कण से..."
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