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डायरी के पन्नों से..."शेष है..."

सन्  2017 जाने को है, महज़ कुछ घंटे ही शेष हैं और मेरे द्वारा आज प्रस्तुत की जा
रही है एक कविता - 'शेष है'। ......और.....और...मुखवास के रूप में पेश है एक धड़कता-फड़कता शेर!

           
                                                                                

           


                                                          ----------------------------------------


         "शेष है..."


बातें,

रातें,

मुलाकातें,

याद कर तो रहा हूँ। 

वे खोई-सी-

धुंधली-सी,

ढूंढ़ तो रहा हूँ। 

... लेकिन, 

लगता है,

मिलें तब भी,

गिनना शेष है। 


सुन लो,

खो न जाएँ,

अटकते-

भटकते,

ये स्वर,

श्वांस के पहरों में,

वायु की लहरों में। 

... लेकिन,

लगता है कुछ 

अब भी  कहना शेष है। 


तुम्हें याद कर, 

मैं रोता रहा,

तड़पता रहा,

निष्ठुर पवन 

सुखाती रही,

अश्रुओं की 

धारा को। 

... लेकिन,

एक बूँद अश्रु का,

अब भी बहना शेष है। 


स्वप्न के सामान, 

ढ़ह गए अरमान, 

आमोद के,

प्रमोद के,

मोद के,

विनोद के,

बन गए श्मशान। 

... लेकिन,

पहाड़-सा जीवन हे,

इसका ढ़हना शेष है। 


        *****



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