सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

क्या वाक़ई में...?

        एक समाचार के अनुसार सरकारी योजना-  योजना तो अच्छी है, लेकिन किसी ईमानदार अधिकारी (अगर कोई हो तो) को नियुक्त किया जाकर उसे निर्देश दिया जाना चाहिए कि वह सप्ताह में कम से कम एक-दो बार इन प्राणियों से पूछ ले कि क्या वाक़ई में इन्हें यह सब मिल रहा है 😜 ।

मुझसे रूठी मेरी कविता (लघु कविता)

                 'मुझसे रूठी मेरी कविता'                                                                                              नैन  तुम्हारे किससे उलझे, क्यों पास मेरे तुम ना आती?  तुम ऐसी छलना नारी हो, डगर-डगर फिरती मदमाती।  हर दिन औ' हर रात-सवेरे, नई  राहों  से निकल जाती।  मैं तुम्हारा  सन्त  उपासक, तुम औरों  के दर इठलाती।  रातें  कितनी  भी  गहराएँ, आँखों  में  नींद  नहीं आती।  काव्य-कविता नाम तुम्हारा,तुम रसिकों का मन बहलाती। बाट जोहती कलम हमारी, क्यों हमको इतना तरसाती? चाहे तुम कितना भी रूठो,लेकिन मुझको अब भी भाती।                                       *******

पंजाब में

    आप पार्टी ने पंजाब में भी इतिहास रच दिया। साथ ही भगवंत मान की प्रतिभा देख कर उन्हें मुख्यमंत्री के लिए चुन लिया गया है। बधाई पंजाब के इस नये युवा मुख्यमंत्री को! इनके अभी के वक्तव्यों से तो लगता है कि वह कुछ कर दिखाएंगे, बस कुटिल राजनीति का रंग इन पर ना चढ़े। पंजाबियों की कृपा से अभिभूत केजरीवाल व मनीष सिसोदिया ने अब से सिख वेशभूषा धारण करने का निश्चय कर लिया है, ऐसा भगवंत मान के आज के शपथ ग्रहण समारोह की इस तस्वीर से प्रतीत हो रहा है। यह सब तो ठीक है, लेकिन एक झूठ (राजनैतिक आडम्बर) जो इसके साथ ही कहा गया है, उसे देख कर मन में विरक्त-भाव सा उपजा। दैनिक भास्कर में दिये गए इनके विज्ञापन के अनुसार पंजाब के तीन करोड़ लोगों को CM पद की इकठ्ठे शपथ लेनी थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं😜। देखते हैं, आगे क्या होता है😊! *********

वसुधैव कुटुम्बकम् 'व्यंग्य लघुकथा'

                                                                                                                                                      आज रविवार था, सो बाबू चुन्नी लाल जी शहर के चौपाटी वाले बगीचे में अपने परिवार को घुमाने लाए थे। कुछ देर इधर-उधर घूमने के बाद अचानक उन्हें बगीचे के किनारे पान की दूकान पर माधव जी खड़े दिखाई दे गए। माधव जी पहले इनके मोहल्ले में ही रहा करते थे, लेकिन अब दूसरे मोहल्ले में चले गए थे। तथाकथित समाज-सेवा का जूनून था माधव जी को, तो पूरे मोहल्ले के लोगों से अच्छा संपर्क रखते थे। मोहल्ले की कमेटी के स्वयंभू मुखिया भी बन गए थे। मोहल्ले के विकास के लिए चन्दा उगाहा करते थे और उस चंदे से समाज-सेवा कम और स्वयं की सेवा अधिक किया करते थे। वह कड़वा किसी से नहीं बोलते थे, किन्तु किस से कैसे निपटना है, भली-भांति जानते थे। वाकपटु होने के साथ कुछ दबंग प्रवृत्ति के भी थे, अतः किसी की हिम्मत नहीं होती थी कि उनसे चंदे का हिसाब मांग सके। एक चुन्नी लाल जी ही थे, जो उनसे कुछ कहने में झिझक नहीं रखते थे। चुन्नी लाल जी उनसे संपर्क करने का प्रयास पहले भी कर चुके थे, लेकिन उ

इन्तहा (कहानी)

                                                                                                                                                                    "एक तो रास्ता इतना ख़राब, ऊपर से अंधेरे में बाइक की हैडलाइट के सहारे चलना... तौबा-तौबा! यार अनिरुद्ध! अब और कितना दूर है तुम्हारा माधोपुर?" -बाइक पर पीछे बैठे डॉ. आलोक सिन्हा ने हल्की झुंझलाहट के साथ अपने मित्र से पूछा। "बस, एक किलोमीटर दूर है अब तो। पहुँचने को ही हैं हम लोग।" -सड़क पर नज़र गड़ाए डॉ. अनिरुद्ध ने जवाब दिया।  माधोपुर पहुँचे दोनों मित्र, तो रात के साढ़े आठ बज रहे थे। अपने चाचा पण्डित गोरख नाथ की तबीयत ख़राब होने की ख़बर मिलने से अनिरुद्ध अपने घनिष्ठ मित्र  डॉ. अलोक को साथ लेकर यहाँ आया था। पण्डित जी के घर पहुँच कर बाइक एक ओर खड़ी कर के अनिरुद्ध ने दरवाजा खटखटाते हुए आवाज़ लगाई- "चाचाजी!"  लगभग 65 वर्षीय बुज़ुर्ग महिला ने दरवाजा खोला- "आओ बेटा, भीतर आ जाओ।" पहले अनिरुद्ध और फिर आलोक ने उनके पाँव छूए। दोनों के भीतर आने पर कमरे में एक ओर रखे तख़्ते पर दरी बिछा कर वृद्धा ने उन्हें इशार

'सिलसिला' (रुबाई)

                                                                                                                                 न तुम्हारे हो सके हम, न किसी और ने थामा हमको, ताउम्र मुन्तशिर रहे हम, ऐसा सिलसिला दे दिया तुमने!  कभी कहा करते थे तुम, हमें इश्क करना नहीं आता, तुम्हें तो इल्म ही नहीं, कितने आशिक पढ़ा दिये हमने!  ***** मुन्तशिर = बिखरा-बिखरा  इल्म = जानकारी 

संवेदना

   कदम-कदम पर जब हम अपने चारों ओर एक-दूसरे को लूटने-खसोटने की प्रवृत्ति देख रहे हैं, तो ऐसे में इस तरह के दृष्टान्त गर्मी की कड़ी धूप में आकाश में अचानक छा गये घनेरे बादल से मिलने वाले सुकून का अहसास कराते हैं। मैं चाहूँगा कि पाठक मेरा मंतव्य समझने के लिए सन्दर्भ के रूप में अख़बार से मेरे द्वारा लिए संलग्न चित्र में उपलब्ध तथ्य का अवलोकन करें। एक ओर वह इन्सान है, जिसने एक व्यक्ति के देहान्त के बाद उससे अस्सी हज़ार रुपये में गिरवी लिये मकान पर अपना अधिकार कर उसकी पत्नी सोनिया वाघेला को परिवार सहित सड़क पर  बेसहारा भटकने के लिए छोड़ दिया और दूसरी ओर वह दिनेश भाई, जिन्होंने उस पीड़ित महिला की स्थिति जान कर अपनी संस्था एवं वाघेला-समाज के लोगों की मदद से सेवाभावी लोगों से चन्दा एकत्र कर आवश्यक धन जुटाया और उस परिवार का  घर वापस दिलवाया। धन्य है यह महात्मा, जिसने अपने नेतृत्व में अन्य सहयोगियों को भी मदद के लिए उत्साहित कर यह पुण्य कार्य किया।  सोनिया बेन घरबदर होने के बाद छः माह से फुटपाथ पर रह कर कबाड़ बीन कर अपने चार बच्चों के साथ गुज़र-बसर कर रही थी। इस लम्बी अवधि में कई और लोग भी उस महिला के हा