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'अपराधी कौन?' (कहानी)

                                                           दर्शकों से भरे अदालत-कक्ष में शहर के एक प्रतिष्ठित आभूषण-व्यवसायी के घर पर एक वर्ष पूर्व हुई चोरी और व्यवसाय-स्वामी चितरंजन दास की हत्या के मुकद्दमे के आखिरी दिन की सुनवाई चल रही थी। सरकारी वकील व बचाव पक्ष का वक़ील, दोनों अपनी जिरह पूरी कर चुके थे।  जिरह के अंत में सरकारी वक़ील हेमन्त सिंह ने कहा- "मी लॉर्ड, तमाम हालात के मद्देनज़र सारा मामला आईने की तरह साफ है। सेठ जी की पत्नी व उनका बेटा, दोनों चश्मदीद गवाहों ने अपने बयानों में बताया है कि उन्होंने सेठ चितरंजन दास के कातिल, मुनीम उमेश कुमार को उस रात सेठ जी के कमरे से निकल कर ब्रीफ़केस सहित भागते हुए देखा था। उनके कदमों की आहट सुन लेने से क़त्ल के बाद भागते समय मुजरिम हड़बड़ी में चाकू वहीं छोड़ गया था। ब्रीफकेस में वह सेठ जी के आठ करोड़ रुपये के हीरेजड़ित स्वर्णाभूषण ले गया था। सेठ जी का मुलाजिम होने के कारण उन तक उसकी पहुँच भी आसान थी, इसलिए उसे अपना मकसद पूरा करने में कोई कठिनाई नहीं हुई। क़त्ल में इस्तेमाल चाकू पर मुलज़िम उमेश की हथेली या उंगलियों के निशान

CAA का विरोध (?)... एक नज़रिया !

"मैडम जी, म्हूं काले कॉम पे नीं आऊँगा (कल मैं काम पर नहीं आऊँगी)।"- गृह-सहायिका ने मेरी पत्नी को अग्रिम सूचना दी। "क्यों रूपा? कोई ज़रूरी काम है कल? कल तो मेरे यहाँ मेहमान आ रहे हैं और कल ही तुझे छुट्टी लेनी है।" "हाँ मैडम जी, काले कईं है के म्हने जलूस में जाणों है (क्या है कि कल मुझे जुलूस में जाना है)।" "अरे, काहे का जुलूस है?" "अरे, वो कईं के, सर्कार कोई नियो कानूण बणायो है नी, कईं के विणें शीशिए-वीशिए (अरे वह कुछ सरकार ने कोई नया क़ानून बनाया है न, क्या कहते हैं उसे, शीशिए-वीशिए)!" मैं भी पास में ही खड़ा था, समझ गया कि CAA के बारे में कह रही है। पत्नी जी भी समझ गई थीं, मुस्करा कर उन्होंने पूछा उससे- "तू जानती है क्या होता है शीशिये?" "नईं जी, म्हने तो नी पतो, पण वो कशी पार्टी वाड़ा आया, जोईज के र्या  के सर्कार खोटो काम कर्यो ए (नहीं जी, मुझे तो नहीं पता, किन्तु वह किसी पार्टी वाले आये थे, उन्होंने ही बताया कि सरकार ने ग़लत काम किया है)।"    सुन कर हम दोनों को हँसी आई, पर उसे स्वीकृति दे दी। उसे CAA के बारे मे

हैदराबादी एन्काउन्टर

      हैदराबाद के चारों बलात्कारियों का आज प्रातः एन्काउन्टर हुआ और वह भी उस स्थान पर जो उन चारों शैतानों की बर्बरता का गवाह था। पूरे देश में उत्सव का  माहौल है। एन्काउन्टर किन परिस्थितियों में हुआ, इसे विवाद का विषय बना कर कई लोग इसे सही या गलत ठहराने का प्रयास कर रहे हैं। कुछ गिद्धदृष्टा वकील व पाखण्डी मानवाधिकारवादी भी ऐसे मामलों में अपनी विद्वता प्रदर्शित करना चाहेंगे, लेकिन मैं तो एन्काउन्टर किसे कहते हैं और यह कब किया जाना चाहिए, मात्र यही समझना चाहता हूँ।    एन्काउन्टर की परिभाषा अब तक तो देश की जनता ने यही देखी और समझी है कि जब कोई पुलिस वाला किसी भ्रष्ट किन्तु प्रभावी नेता के इशारे पर या किसी दबंग धनपति अपराधी से चांदी के कुछ टुकड़े ले कर या फिर अपनी अथवा अपने किसी अफसर की व्यक्तिगत दुश्मनी के चलते किसी निरपराध व्यक्ति को गोली चला कर मार डालता है तो उसे एन्काउन्टर कहते हैं।      आज प्रातः हैदराबाद के पुलिस-कर्मियों ने वहाँ की पशु-चिकित्सक के बलात्कारी हत्यारे चारों दरिन्दों को गोली मार दी क्योंकि उन बदमाशों ने पुलिस-कर्मियों से हथियार छीन कर उन पर आक्रमण किया व वहाँ से

'सच्ची श्रद्धाञ्जलि' (कहानी)

    मैं अपने स्वास्थ्य के प्रति अधिक जागरूक कभी नहीं रहा हूँ, लेकिन जब डॉक्टर ने कहा कि अब बढ़ती उम्र के साथ मुझे कुछ सावधानियाँ अपने खान-पान में बरतनी होंगी तथा नित्यप्रति आधे घंटे का समय सुबह या शाम को भ्रमण के लिए निकालना होगा, तो मैंने पिछले एक सप्ताह से अपने शहर की झील 'फतहसागर' की पाल पर नियमित भ्रमण शुरू कर दिया। जुलाई माह समाप्ति की ओर था सो मौसम में अब गर्माहट नहीं रही थी। भ्रमण का भ्रमण होता, तो झील के चहुँ ओर प्रकृति की सायंकालीन छटा को निहारना मुझे बेहद आल्हादित करता था। मंद-मंद हवा के चलने से झील में उठ-गिर रही जल की तरंगों का सौन्दर्य मुझे इहलोक से परे किसी और ही दुनिया में ले जाता था। मन कहता, काश! डॉक्टर ने मुझे बहुत पहले इस भ्रमण के लिए प्रेरित किया होता!     मैं फतहसागर झील की आधा मील लम्बी पाल के दो राउण्ड लगा लेता था। इस तरह दो मील का भ्रमण रोजाना का हो जाता था। पिछले दो-तीन दिनों से मैं वहाँ टहलते एक बुजुर्ग को नोटिस कर रहा था। वह सज्जन, जो एक पाँव से थोड़ा लंगड़ाते थे, पाल के एक छोर से दूसरे छोर तक जाते, कुछ देर वहाँ विश्राम करते और फिर वापस लौट जाते

'कमरा नं. 7' (कहानी)

बहुत आग्रह-मनुहार के बाद नीरव ने मेरी इच्छा पूरी करने के लिए पुष्कर जी जाने का कार्यक्रम बनाया। मनुहार कराने में उनकी भी ग़लती नहीं थी, उनका जॉब ही ऐसा था कि छुट्टियाँ बहुत मुश्किल से मिलती थीं। आज भी वह ऑफिस की ड्यूटी कर के आये थे। तीन दिन के सफर की पूरी तैयारी मैंने दिन में ही कर ली थी। एक सूटकेस और एक बैग में सारा सामान समा गया था। रात सवा आठ बजे की बस थी, सो हम साढ़े सात बजे घर से रवाना हो गये। विक्की तो घूमने जाने के नाम से कल से ही उछल रहा था।    बस में बहुत भीड़ थी, लोग ठसाठस भरे हुए थे। बस में ही पता चला कि ख्वाजा साहब का उर्स है, इसीलिए भीड़ ज़्यादा है। हमें तो इसका ध्यान ही नहीं रहा था। शुक्र है कि हमने अजमेर तक का रिज़र्वेशन करवा लिया था सो सीट तो मिल ही गई। इस रूट पर अभी निगम की कोई ए.सी. बस नहीं थी, अतः सामान्य बस का टिकट लेना हमारी मजबूरी थी। रात का वक्त था फिर भी गर्मी लग रही थी। गर्मी से हम तो परेशान थे ही, किन्तु विक्की का हाल बुरा था। मैं बार-बार उसे पानी का घूँट पिला रही थी। मोबाइल में डूबे नीरव कभी-कभी हमारी ओर देख लेते थे।     बस अपनी रफ़्तार से चलती चली जा

'और कोहरा छँट गया' (कहानी)

                                                                                                      "तुम खुद को समझती क्या हो वैभवी? क्या तुम्हें नहीं पता कि कितनी लड़कियाँ मुझ पर जान छिड़कती हैं? एहसान मानो कि तुम्हें मैंने इतनी तवज़्ज़ो दी और अपने प्यार के काबिल समझा। अरे, प्यार तो क्या, तुम तो मेरी दोस्ती के लायक भी नहीं हो।"    "मैं तुम्हारे उस एहसान को कभी नहीं भूलूँगी श्रीकान्त! मैं वास्तव में तुम्हारी दोस्ती के लायक भी नहीं हूँ और इसीलिए आज से मैं तुम्हारी सारी रिलेशनशिप से स्वयं को मुक्त करती हूँ। भूल जाऊँगी मैं तुम्हें और तुम्हारी दोस्ती को, एक बुरा ख्वाब मान कर।... गुड बाय!"- आहत वैभवी ने श्रीकान्त की आँखों में आँखें डाल कर गम्भीर स्वरों में उत्तर दिया व श्रीकांत की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा न कर अपनी क्लास की ओर चल दी। "हाँ-हाँ, गुड बाय! 'हमारे बीच इतनी दूरी आ चुकी है वैभवी कि अब हम कभी नज़दीक आ ही नहीं सकते। मैं अब तुमसे कभी बात नहीं करूँगा।"-श्रीकान्त की तल्खी भरी आवाज़ जा रही वैभवी के कानों में पड़ी।     श्रीकान्त और वैभवी किंग मेमोर